इस्तीफे की आड़ में अभय सिंह जेजेपी को कमजोर करना चाहते हैं और खोई हुई जमीन वापस पाने की लालसा रखते हैं. जेजेपी अपने को चौधरी देवीलाल का असली उत्तराधिकारी कहती है.
हरियाणा में खेले जा रहे सियासी लड़ाई ने सोमवार को एक नया मोड़ ले लिया. इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) नेता अभय सिंह चौटाला ने विधानसभा स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता को अपना इस्तीफा भेज दिया. अभय सिंह INLD के इकलौते विधायक हैं. अभय सिंह के इस्तीफे के बाद दूसरे दलों के कई अन्य विधायकों पर दबाव बन सकता है कि किसान आंदोलन के समर्थन में वे भी विधानसभा सदस्य के रूप में अपना इस्तीफा दे दें.
अभय सिंह ने अपने अपने इस्तीफे की जानकारी चंडीगढ़ में एक प्रेस कांफ्रेंस में दी. अभय सिंह के इस फैसले को चतुराई भरा कदम माना जा रहा है. अभय सिंह ने अपने इस्तीफे में विधानसभा स्पीकर से कहा है कि अगर 26 जनवरी तक किसान आंदोलन खत्म नहीं हुआ तो 27 जनवरी को उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाए. अभय सिंह का यह कदम ‘सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे’ वाली कहावत से प्रेरित लगती है.
अभय सिंह का इस्तीफा
अभय सिंह ने अपना ‘कंडीशनल’ इस्तीफा तब भेजा जब यह लगभग साफ हो चुका है कि कृषि कानून की लड़ाई अब सड़कों की जगह सुप्रीम कोर्ट में लड़ी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट के सोमवार के रवैये को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि तीनों विवादित कृषि कानून के कार्यान्वयन पर न्यायालय रोक लगा सकती है. वैसे आंदोलनकारी किसानों के एक वर्ग ने हाल ही में कहा था कि कृषि कानून को जब तक वापस नहीं लिया जाता, तब तक वे सड़कों पर बैठे रहेंगे, उनका आंदोलन जारी रहेगा और वह सुप्रीम कोर्ट की बात ही नहीं मानेंगे.
अगर सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी और किसी कमेटी के गठन का फैसला किया तो यह स्थिति प्रदर्शनकारी किसानों को एकजुट बने रहने के लिए काफी चुनौतीपूर्ण हो सकती है. जहां कुछ किसान नेता आंदोलन को जारी रखना चाहेंगे, ऐसे बहुत सारे किसान भी हैं जो न्यायालय की अवहेलना करना पसंद नहीं करेंगे और घर वापस जा कर देखना चाहेंगे कि सुप्रीम कोर्ट का कृषि कानून पर कब और क्या फैसला होगा.
क्या मास्टरस्ट्रोक है इस्तीफा
रही बात अभय सिंह की तो उनका इस्तीफे वाला कदम उनकी राजनीतिक जीवन का मास्टरस्ट्रोक बन सकता है. बशर्ते वे अपनी रणनीति पर समझदारी से बढ़ें. अभय सिंह के पास फिलहाल खोने के लिए सिर्फ उनकी विधानसभा सदस्यता है और पाने के लिए बहुत कुछ. INLD को सत्ता खोए 16 वर्ष से ज्यादा हो चुका है और धीरे-धीरे पार्टी हरियाणा की राजनीति में अपना वजूद खोती जा रही है.
INLD शुरू से ही ग्रामीणों और किसानों की पार्टी मानी जाती रही है. पहले ओमप्रकाश चौटाला को जेल की सजा और फिर पारिवारिक कलह की वजह से INLD का विभाजन का सीधा असर अभय सिंह चौटाला पर पड़ा. एक के बाद एक लिया गया गलत फैसला और अपने भतीजों को पार्टी से निकाल देना अभय सिंह के लिए भारी पड़ गया. पिछले विधानसभा चुनाव में INLD मात्र एक सीट ही जीत सकी और INLD से अलग हो कर बनी उनके भतीजों की जननायक जनता पार्टी 10 सीटों पर सफल रही और अब सरकार का हिस्सा है. जेजेपी नेता दुष्यंत सिंह चौटाला प्रदेश के उपमुख्यमंत्री हैं, जो चाचा अभय सिंह को नागवार है.
जेजेपी से भिड़ंत
इस्तीफे की आड़ में अभय सिंह जेजेपी को कमजोर करना चाहते हैं और खोई हुई जमीन वापस पाने की लालसा रखते हैं. जेजेपी अपने को चौधरी देवीलाल का असली उत्तराधिकारी कहती है. किसान आंदोलन शुरू होने के बाद जेजेपी घिरी हुई दिख रही है. अगर किसान आंदोलन के कारण जेजेपी सरकार से इस्तीफा देती है तो सत्ता जाती रहेगी और सरकार में बने रहे तो किसानों की नाराजगी का खतरा है. दुष्यंत चौटाला ने बाद में स्पष्ट किया था कि हरियाणा के किसानों की फसल निर्धारित न्यूनतम मूल्य पर सरकार द्वारा खरीदी जाएगी, अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे.
अभय सिंह के निशाने पर दुष्यंत चौटाला और उनकी पार्टी है. संभव है कि चाचा अभय सिंह भतीजे दुष्यंत की राह में कांटे बिछा दें. अभी तक दुष्यंत चौटाला ने दिखा दिया है कि अगर चाचा डाल-डाल चलते हैं तो वे पात-पात. उनके पास अभय सिंह के हरेक सवाल का काट होता है. ऐसा भी हो सकता है कि हरियाणा के आंदोलनकारी किसान घर वापस चले जाएं और उनका इस्तीफा स्वीकार भी हो जाए. अभय सिंह का खेल सफल रहा तो वे राजा बन सकते हैं और पासा गलत चल गया तो रंक भी.