काबुल: अफगानिस्तान पर तालिबान का कंट्रोल हो चुका है, अब दुनिया के सामने सबसे बड़ा सवाल है कि आगे क्या होगा ? और कौन होगा तालिबान का चेहरा, जो अफगानिस्तान के भविष्य का फैसला करेगा. किसके हाथ में होगी करोड़ों लोगों की जिंदगी?
तख्तापलट के बाद अफगानिस्तान की कमान 53 साल के मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के हाथ में है. मुल्ला अब्दुल गनी बरादर तालिबान का संस्थापक सदस्य और वर्तमान में अंतरिम तालिबान सरकार का प्रमुख है. लेकिन इसका ताजा परिचय ये है कि अफगानिस्तान का अगला राष्ट्रपति बनना लगभग तय है.
रविवार को अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अब वहां नई सरकार को लेकर कवायदें तेज हो गई हैं. ऐसे में तालिबान के सबसे ताकतवर चेहरे मुल्ला अब्दुल गनी बरादर का नाम सबसे आगे माना जा रहा है.
तालिबान के मौजूदा पांच बड़े चेहरे के बारे में जान लीजिए
- हैबतुल्ला अखुंजादा
2016 से तालिबान का प्रमुख
2.मुल्ला अब्दुल गनी बरादर
तालिबान का संस्थापक सदस्य
- मुल्ला मोहम्मद याकूब
डिप्टी चीफ, तालिबान
मुल्ला उमर का बेटा - सिराजुद्दीन हक्कानी
डिप्टी चीफ, तालिबान
हक्कानी नेटवर्क का चीफ - अब्दुल हकीम हक्कानी
वार्ता टीम का प्रमुख
कब्जे के बाद बरादर का कद सबसे बड़ा हो गया
वैसे तो ये पांच बड़े चेहरे हैं लेकिन काबुल पर कब्जे के बाद बरादर का कद सबसे बड़ा हो गया है. बरादर ने अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान लड़ाकों के लिए बयान जारी करते हुए कहा है, ”हमने असंभव दिखने वाली जीत हासिल की है. अब हमें अल्लाह के हुक्म के मुताबिक नरमदिली से काम करना होगा. हमारे लिए ये इम्तिहान का वक्त है. अब हमपर ये जिम्मेदारी है कि हम लोगों की कैसे खिदमत करते हैं और कैसे उनकी हिफाजत करते हैं . लोगों की बेहतर जिंदगी के लिए हम अपनी पूरी कोशिश करेंगे.”
चीन के नेताओं से मुलाकात करने वाला भी बरादर ही था
तालिबान प्रमुख रहे मुल्ला उमर के बेहद करीबी माने जाने वाले बरादर का कद इस बात से भी समझा जा सकता है कि बीते दिनों सत्ता परिवर्तन की आहट के बीच बीजिंग जाकर चीन के नेताओं से मुलाकात करने वाला भी बरादर ही था. 1978 में जब सोवियत के खिलाफ तालिबानियों ने गोरिल्ला वार छेड़ा था तब बरादर उसमें सक्रिय था. सोवियत सेना की वापसी के बाद बरादर का कद बढ़ता गया. उसने मुल्ला उमर के साथ मिलकर कई मदरसे बनाए जहां तालिबान लड़ाके तैयार किए.
1996 में अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनी तब भी बरादर की अहम भूमिका था. 2001 में अमेरिकी हमले के बाद बरादर को भागना पड़ा.. 2010 में बरादर की कराची से गिरफ्तारी हुई. लेकिन शांति वार्ता के लिए 2018 में बरादर को रिहा करना पड़ा. इसके अलावा तालिबान को आर्थिक रूप से मजबूत करने के पीछे भी बरादर की बड़ी भूमिका मानी जाती है.