यहां के कुतुब मीनार (Qutub Minar ) परिसर में रखी मूर्तियों की पूजा करने की मांग को लेकर दायर याचिका की सुनाई आज होगी. यह सुनवाई दिल्ली के साकेत कोर्ट (Saket Court)में होगी. खुद को इस मामले में पक्षकार बनाने की मांग करने वाले महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह के वकील 24 अगस्त को हुई सुनवाई में अदालत नहीं पहुंचे थे. इससे सुनवाई टल गई थी. महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह का दावा है कि आगरा से मेरठ तक की जमीन उनकी पुश्तैनी है. इसलिए कुतुब मीनार के आसपास की जमीन पर निर्णय लेने का अधिकार सरकार के पास नहीं है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) (Archaeological Survey of India)इन याचिकाओं का विरोध कर रहा है.कुतुब मीनार को 1993 में यूनेस्को (UNESCO) ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था.इस समय यह परिसर एएसआई के संरक्षण में है.
कुतुब मिनार को कौन अपना बता रहा है
महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह का दावा है कि कुतुब मीनार जिस जमीन पर बना है, वह उनके परिवार की है.उन्होंने कहा कि जमीन बेसवान परिवार और राजा रोहिणी रमन के उत्तराधिकारी धवज प्रसाद सिंह और राजा नंद राम के वंशज की है, जिनकी मौत 1695 में हो गई थी. इसलिए सरकार कुतुब के आसपास की जमीन पर निर्णय नहीं ले सकती है. याचिकाकर्ता का कहना है कि 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद सरकार ने न तो कोई संधि की और न ही कोई विलय किया.
एएसआई ने कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह की याचिका का विरोध किया है.पिछली सुनवाई पर एएसआई ने कहा कि उन्होंने पिछले 150 साल से कुछ क्यों नहीं कहा. एएसआई ने कहा,”वह किसी सुबह उठते हैं और बिना किसी आधार के वकील के रूप में इस अदालत में आते हैं.”
मूर्तियों की पूजा का अधिकार मांगा
साकेत कोर्ट ने नौ जून को कुतुब मीनार परिसर के अंदर हिंदुओं और जैनियों के लिए पूजा के अधिकार की मांग करने वाली अपीलों पर अपने आदेश की घोषणा को 24 अगस्त तक के लिए टाल दी थी.अदालत ने कुतुब मीनार के मालिकाना वालि याचिका को देखते हुए यह फैसला किया. अदालत का कहना था कि मालिकाना तय किए बिना पूजा की इजाजच देने वाली याचिका पर फैसला नहीं दिया जा सकता है.इस मामले में हिंदू पक्ष ने मांग की थी कि उन्हें सिर्फ पूजा का अधिकार दिया जाए.वहीं मुस्लिम पक्ष ने परिसर में नमाज पढ़ने की मांग की थी.कोर्ट को इस बात पर फैसला करना है कि इमारत का स्वरूप कैसा है.
इससे पहले दिल्ली की एक निचली अदालत कुतुब मीनार परिसर में पूजा की मांग वाली याचिका को खारिज कर चुकी है.याचिकाकर्ता का कहना है कि निचली अदालत ने तथ्यों की जांच किए बिना ही उनकी याचिका को खारिज कर दी थी.उनकी दलील है कि कानून के अनुसार इस याचिका पर विचार करने के बाद निचली अदालत को कुतुब मीनार परिसर में रखी हुई मूर्तियों की जांच और सर्वे के आदेश देना चाहिए था.इसके बाद ही सही आदेश दिया जा सकता था.
एएसआई क्या दलील दे रही है
कुतुब मीनार परिसर में रखी मूर्तियों की पूजा का अधिकार मांगने पर एएसआई का कहना है कि यह कोई उपासना स्थल नहीं है. उसका कहना है कि स्मारक की मौजूदा स्थिति को बदला नहीं जा सकता.एएसआई ने कहा है कि केंद्र संरक्षित इस स्मारक में उपासना के मौलिक अधिकार का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति की दलील से सहमत होना कानून के विपरीत होगा.इस परिसर में पूजा नहीं की जा सकती है.