शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) की पत्रिका सामना ने भारतीय जनता पार्टी पर हमला करते हुए कहा कि हाल में हुए विधानसभा चुनावों में 3 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली है. इस जीत को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए रुझान माना जा रहा है. जबकि सच्चाई यह है कि विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA का गणित महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों पर टिका हुआ है. साथ ही दक्षिण भारत भी बीजेपी के साथ नहीं है. ऐसे में क्या बीजेपी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की 65 सीटों के जरिए केंद्र में हैट्रिक लगाने का सपना देख रही है? हार का सामना करने वाली कांग्रेस के खाते में 40 फीसदी वोट आए जबकि बीजेपी की तुलना में कांग्रेस को करीब 10 लाख अधिक वोट मिले हैं. ये आंकड़े आम चुनाव के लिए कड़े मुकाबले की तस्वीर दिखाते हैंसामना कहता है कि जिस दिन बीजेपी को 3 राज्यों में जीत मिली उसी शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी ऑफिस में विजयोत्सव मनाने के दौरान जीत के लिए देशभर की जनता का आभार माना. पीएम मोदी का भाषण शुरू होते समय सोशल मीडिया पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आने लगीं, साहेब, पहले ईवीएम का आभार मानो. फिर जनता का. 5 राज्यों के नतीजों का देश की राजनीति पर क्या असर होगा, यह पहला सवाल और महाराष्ट्र में 2024 की तस्वीर इस पृष्ठभूमि पर कैसी होगी, यह अहम दूसरा सवाल है.
चमत्कार के जनक पीएम मोदी
चमत्कार के जनक पीएम मोदी के कारण विजय का चमत्कार तीन राज्यों में हुआ, लेकिन यही चमत्कार दक्षिणी राज्य तेलंगाना में नहीं हो सका. मोदी और शाह दोनों ने तेलंगाना को हिलाकर रख दिया, लेकिन यहां उनका जादू नहीं चला. तेलंगाना में बीजेपी कहीं नहीं दिखी. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का शासन था. वहां एंटी इनकम्बेंसी की वजह से कांग्रेस को हार मिली हारी, ऐसा कहना उचित नहीं है. बीजेपी के राज्य में उसी एंटी इनकम्बेंसी का फटका क्यों नहीं लग रहा है, इस पर विचार होना चाहिए. बीजेपी हाईकमान ने मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को अपमानित करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा. अब दिल्ली का हाईकमान जिसे कहेगा, वही प्रदेश का मुख्यमंत्री होगा.
यह सारी कवायद इसलिए है कि अगर 2024 के आम चुनाव के बाद दिल्ली में अस्थिर तस्वीर पैदा हुई तो शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी जैसे नेता परिस्थितियों का फायदा न उठा सकें, इसलिए इन सभी के पंख पहले ही कतरने की कोशिश की गई है. शिवराज मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं थे. फिर भी शिवराज ने हार नहीं मानी और एमपी में लड़खड़ाई बीजेपी को विजय के शिखर पर लेकर गए. बीजेपी के यश में कांग्रेस के कमलनाथ का भी बड़ा योगदान है. स्थानीय पत्रकार बताते हैं ‘ये सरदार सुबह 10 बजे प्रचार के लिए बाहर निकलते थे, दोपहर में एक बजे छिंदवाड़ा में ही कोई जनसभा करके घर लौट जाते थे. लेकिन शिवराज एक दिन में 15-15 सभाएं करके माहौल में जोश पैदा करते रहते थे.’
ऐसे ‘सरदारों’ पर लगाए अंकुश कांग्रेस
कमलनाथ पर बरसते हुए सामना लिखता है, ‘मुंबई में INDIA गठबंधन की बैठक में पहली सभा भोपाल में लेना तय हुआ था, लेकिन कमलनाथ ने भोपाल में INDIA गठबंधन की सभा नहीं होने दी. इस गठबंधन ने कुछ टीवी चैनलों के एंकर्स का बहिष्कार किया, लेकिन चुनाव के दौरान कमलनाथ ने उन्हीं एंकरों को बुलाकर इंटरव्यू दिया. एमपी में अखिलेश यादव के समाजवादी पार्टी का कुछ जिलों में अच्छा दबदबा है. उनके 2 विधायक चुनकर भी आए थे, लेकिन कमलनाथ ने सीट बंटवारे में अखिलेश से चर्चा करने से मना कर दिया. कौन अखिलेश? इस तरह का सवाल पूछा जिससे पूरा माहौल बदल गया. ऐसे में कांग्रेस को राज्य में ऐसे सरदारों का समय पर बंदोबस्त करना पड़ेगा. जबकि राजस्थान में अशोक गहलोत ने शिवराज सिंह की तरह लड़ाई लड़ी. वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार अच्छा काम कर रही थी, फिर भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ गया.
मोदी को पराजित करना कांग्रेस के लिए संभव नहीं, ये दंतकथा है. छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी मोदी की बीजेपी को कांग्रेस ने इससे पहले पराजित किया है तो वहीं तेलंगाना में कांग्रेस ने मोदी की दाल नहीं गलने दी. इसलिए तीन राज्यों में मिली जीत के कारण महाराष्ट्र में बीजेपी और उनकी सहयोगी पार्टियां दिवाली मना रही हैं, लेकिन इसका आनंद ज्यादा दिनों तक नहीं रहेगा.
क्या चुनाव में खेल हुआ?
सामना के अनुसार, ‘चुनाव में नया क्या हुआ? मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने सफलता पाई, लेकिन इन राज्यों में पोस्टल मतदान बैलेट पेपर द्वारा हुआ. बैलेट पेपर द्वारा हुए मतदान का आंकड़ा आश्चर्यजनक है. मध्य प्रदेश में 199 स्थानों में कांग्रेस आगे है, लेकिन ईवीएम मशीन खुलने पर रुझान बीजेपी की ओर चला गया, इस पर ध्यान देना होगा. इस जीत से बीजेपी जमीन से पांच फुट ऊपर चलती दिख रही है. इस अहंकार का गुब्बारा 2024 में फूट जाएगा. 3 राज्यों में जीत का डंका पीटने वाली बीजेपी को कुल 4,81,33,463 वोट मिले. जबकि कांग्रेस को 4,90,77,907 वोट मिले. इस तरह बीजेपी की तुलना में कांग्रेस को 9 लाख अधिक वोट मिले. राजस्थान में बीजेपी को 41.7 फीसदी वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 39.6 फीसदी वोट मिले. यहां मुश्किल से दो फीसदी वोट का अंतर है.
छत्तीसगढ़ में बीजेपी को 46.3 फीसदी, जबकि कांग्रेस 42.2 फीसदी वोट मिले, ऐसे में यहां पर 4 फीसदी का अंतर है. हालांकि मध्य प्रदेश में 8 प्रतिशत का अंतर दिखता है. बीजेपी को यहां 48.6 फीसदी वोट मिले तो कांग्रेस 40 फीसदी पर खिसक गई. 3 राज्यों में हार के बावजूद कांग्रेस के पास 40 फीसदी वोट हैं. अगर पार्टी की ओर से राज्य में छोटे दल को नजरअंदाज नहीं किया गया होता, तो कांग्रेस 45 फीसदी तक पहुंच गई होती. बीजेपी की जीत का गणित मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों पर निर्भर करता है. तो नहीं ‘INDIA’ गठबंधन का गणित महाराष्ट्र, कर्नाटक, बंगाल, बिहार पर टिका है. यहीं नहीं केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य भी अहम भूमिका निभाएंगे. इसलिए यह तय है कि 3 राज्यों में मिली जीत 2024 में बीजेपी की हैट्रिक की तैयारी नहीं कह सकते हैं.
सामना की ओर से केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा गया कि ‘INDIA’ गठबंधन को हार की निराशा से आगे बढ़ना होगा. मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस को जीत मिली होती तो 2924 के चुनाव से पहले पीएम मोदी ने पाकिस्तान से मिलीभगत करके कई बम गिरा दिए होते. खुली आंखों से हम कोई नया पुलवामा की घटना देखते. साथ ही वह कश्मीर में हिंसाचार में पाकिस्तान का हाथ और देश खतरे में की गर्जना करके देशभक्ति के लिए जनता से वोट मांग रहे होते. उम्मीद है, 3 राज्यों में विजय के कारण ‘INDIA’ की योजना कुछ समय के लिए रुक गई है, लेकिन 3 राज्यों में विजय यानी 2024 के विजय का शंखनाद, इस भ्रम में जो हैं, उन्हें उसी भ्रम में रहना देशहित में है.