श्रद्धा हत्याकांड में हड्डियां देख और कातिल की कहानी सुन खुश न हों, पिक्चर और कोर्ट अभी बाकी है!

श्रद्धा हत्याकांड में कातिल की मुंहजुबानी पर कथित रूप से बरामद की जा रहीं हड्डियों को देखकर और, कातिल की कहानी सुनकर खुश मत होइए. क्योंकि ऐसे सनसनीखेज खूनी कांडों में ही अक्सर पिक्चर अंत तक बाकी रह ही जाती है. क्योंकि पुलिसिया पड़ताल के बाद कोर्ट भी बाकी होता है. जांच एजेंसी एड़ी से चोटी तक का जोर लगाकर श्रद्धा वाकर हत्याकांड से जिन मुकदमों को कोर्ट तक घसीट कर ले जाती है. उन्हीं में से कुछ का अंत छावला गैंगरेप और हत्याकांड सा देश की ऊपरी अदालतों में ही होता है. इसलिए अभी वक्त है सब्र के साथ श्रद्धा हत्याकांड में निकल कर आ रहे, हर पहलू को पैनी नजर से चुपचाप देखने भर का

क्योंकि कोर्ट में पहुंचते ही अच्छी से अच्छी पुलिसिया तफ्तीश भी औंधे मुंह गिरते देर नहीं लगती है. टीवी9 भारतवर्ष इनसाइड स्टोरी में बता रहा है ऐसे ही तमाम बिंदुओं के बलबूते अंदर की कहानी. देश के मशहूर तफ्तीशी अफसर, फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स और कानूननविदों की मुंहजुबानी. टीवी9 भारतवर्ष से विशेष बातचीत के दौरान देश के मशहूर फारेंसिक मेडिसन एक्सपर्ट रह चुके डॉ. के.एल. शर्मा ने कहा, “अब जब श्रद्धा हत्याकांड में इस्तेमाल हथियार आरी मिल चुकी है. तो हाल-फिलहाल तो पड़ताल मजबूती की ओर बढ़ती कही जा सकती है.

फॉरेंसिक मेडिसन एक्सपर्ट ने कहा
आइंदा मगर यह मजबूती तब सही साबित हो सकेगी जब, कोर्ट इसे (जब्त हथियार आरी) वारदात में इस्तेमाल हथियार के रूप में कबूल कर ले! कोर्ट यह तब ही स्वीकार करेगी जब पुलिस आरी के ऊपर से खून के धब्बे और श्रद्धा के मांस के रेशे, फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट से तलाश करवा सके. आरी के ऊपर से खून के धब्बे और मांस के रेशे कोई बिरला कहूं या फिर बहुत ही काबिल फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट ही तलाश करके दे पाएगा. आज की भीड़ में मौजूद हर फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट के बूते की बात तो मुझे नहीं लगती है केमिकल से साफ की जा चुकी आरी को ऊपर से खून के दाग और मांस के रेशे तलाश करके जांच एजेंसी के हवाले कर पाना.”

कील पैरोकारी की नजर से बढ़ते हैंं
इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया में वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर और निर्भया कांड में सजायाफ्ता मुजरिमो के सुप्रीम कोर्ट में पैरोकार वकील रहे डॉ. ए.पी. सिंह ने टीवी9 भारतवर्ष से कहा, “इस वक्त मेरे जैसे जिम्मेदार वकील का श्रद्धा हत्याकांड पर कुछ बोल पाना बेहद मुश्किल है. क्योंकि यह मर चुकी लड़की (श्रद्धा वाकर) के साथ न्याय और उसे मारने के आरोपी, संदिग्ध कातिल आफताब अमीन पूनावाला की जिंदगी-मौत का सवाल है. मैं चूंकि क्रिमिनल लॉयर हूं तो कोर्ट में जज के सामने ही अपनी दलीलें रखने में विश्वास करता हूं. कोर्ट में अगर मैं श्रद्धा के पक्ष का वकील बनकर खड़ा होऊंगा तो, मुलजिम को अधिकतम सजा कराने के लिए जांच एजेंसी की तफ्तीश का सपोर्ट करूंगा. अगर मैं बचाव पक्ष (कातिल के बचाव में) का वकील बनकर कोर्ट के सामने पहुंचूंगा तो हर हाल में जांच एजेंसी और उसके सबूतों को कमजोर सिद्ध करने की कोशिश करुंगा.”

कोर्ट में तफ्तीश का सबकुछ संभव
फिर भी किसी पक्ष का पैरोकारी वकील न मानकर सिर्फ एक क्रिमिनल लॉयर की हैसियत आप क्या सोचते है? पूछने पर एपी सिंह ने कहा, “इस सवाल के जवाब में तो इतना ही कहूंगा कि, अगर देश में निर्भया के हत्यारे फांसी टंग सकते हैं. और छावला गैंगरेप, अपहरण और हत्याकांड के आरोपी हत्याकांड को अंजाम देकर भी ब-इज्जत बरी हो सकते हैं. तो फिर कोर्ट में जाकर मुकदमे की हालत क्या होगी? यह अदालत ही तय करेगी. इसलिए मेरा तो मानना यही है कि, अभी दिल्ली पुलिस द्वारा संदिग्ध कातिल के बयान पर खोदी-खोजी जा रही हड्डियों को देखकर मीडिया और जनता को खुश होने की जरूरत नहीं है. क्योंकि अभी पिक्चर और कोर्ट दोनो ही बाकी हैं. इसका इंतजार करिए कि पुलिस कोर्ट में चार्जशीट क्या दाखिल करती है? मुझसा क्रिमिनल लॉयर तो चार्जशीट में मौजूद कमियां छांटकर कोर्ट में पांव रखेगा. क्योंकि चार्जशीट पर ही आकर पुलिस की कहानी खतम और कोर्ट की कानूनी नजरें मुकदमे को देखना शुरु कर देती हैं.”

चार्जशीट से पहले बोलना गलत
इस बारे में दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट के वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर और सुएब इलियासी की पत्नी, अंजू इलियासी उर्फ अंजू सिंह हत्याकांड में अंजू के कानूनी पैरोकार रहे चुके एडवोकेट सतेंद्र शर्मा से टीवी9 भारतवर्ष ने बात की. बकौल सतेंद्र शर्मा, “अभी सिर्फ मीडिया और पुलिस का शोर दिखाई सुनाई पड़ रहा है. जो हर ऐसे सनसनीखेज घटना के बाद दिखाई सुनना पड़ना देश में आम बात हो चुकी है. मुझे इंतजार है कोर्ट में इस मुकदमे की चार्जशीट दाखिल होने का. क्योंकि चार्जशीट ही वो कानूनी दस्तावेज है जो, कोर्ट-कचहरी, जज वकील और कानून सबके लिए होता है. चार्जशीट दाखिल करने के बाद पुलिस कोर्ट में कानून कुछ और बाकी करने की हालत में नहीं बचती है.

उसे अपनी चार्जशीट को ही सही सिद्ध करने के लिए मुकदमे में सजा न होने तक जूझना पड़ता है. इसीलिए किसी भी सनसनीखेज घटना के मुकदमे में वकील भी चार्जशीट की कापी ही सबसे पहले पढ़ना चाहता है. उसी के आधार पर हम (क्रिमिनल लॉयर) मुकदमे की पैरवी शुरु करते हैं. श्रद्धा हत्याकांड में सिर्फ हड्डियों की बरामदगी और आरोपी के बयानो पर ही सब कुछ मान लेना ठीक नहीं है. संभव है कि कोर्ट में पहुंचते ही पूरा मुकदमा ही बदल जाए.”

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