इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि निजी संपत्ति पर मंदिर बनाने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षित है। ऐसा निर्माण किसी अन्य समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाता। निजी जमीन पर कानून के दायरे में मंदिर बनाने का मूल अधिकार है।
केवल अन्य समुदाय की काल्पनिक आपत्ति पर निर्माण नहीं रोका जा सकता। 144 मीटर की दूरी पर मस्जिद होने से यह आशंका नहीं की जा सकती कि सांप्रदायिक शांति या कानून व्यवस्था खराब हो जाएगी। कोर्ट ने जिलाधिकारी का आदेश रद करते हुए जिला पंचायत संभल को मंदिर निर्माण के प्रस्ताव पर नियमानुसार आदेश पारित करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय तथा न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने आचार्य प्रमोद कृष्णन की ओर से दाखिल याचिका निस्तारित करते हुए दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता शैलेन्द्र ने बहस की। याची का कहना था कि निजी भूमि पर मंदिर का निर्माण करना चाहते हैं। वर्ष 2016 में शिलान्यास किया है।
कुछ मुस्लिमों की आपत्ति पर जिलाधिकारी ने निर्माण पर रोक लगा दी। हाई कोर्ट ने याची की मांग पर विचार करने का निर्देश दिया। इसके बाद भी जिलाधिकारी ने यह कहते हुए निर्माण की अनुमति नहीं दी कि सांप्रदायिक तनाव होगा और पास में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण की आशंका है।
मुस्लिम किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मंदिर का विरोध करते हुए जिला मजिस्ट्रेट से शिकायत की थी। जिलाधिकारी ने कहा, संभल सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र है और प्रस्तावित मंदिर निर्माण का धार्मिक समूह द्वारा विरोध किया जा रहा है।
यह क्षेत्र में कानून व्यवस्था को बिगाड़ सकता है, इसलिए, याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का दावा नहीं कर सकता। याची ने कहा कि जिलाधिकारी का आदेश आशंकाओं पर आधारित है। उसे उसके भूखंड पर मंदिर बनाने से रोकने के समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं है।
कोर्ट ने कहा, जिस भूखंड में मंदिर बनाया जाना प्रस्तावित है। उसके मालिकाना हक को लेकर किसी तरह का विवाद नहीं है। रिकार्ड पर कुछ ऐसा नहीं है कि मुस्लिम समुदाय को कोई भी बड़ा वर्ग मंदिर के निर्माण के विरोध में था और यदि ऐसा है भी तो यह किसी भी व्यक्ति द्वारा मंदिर निर्माण मात्र है। यह किसी अन्य समुदाय की धार्मिक संवेदनाओं को ठेस नहीं पहुंचाता।