बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने ज्यादातर राजनीति नीतीश कुमार के साथ की. वह नीतीश कुमार के करीबी और विश्वसनीय कहे जाते थे. इतने विश्वसनीय कि 2014 लोकसभा चुनाव में जब हार की जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया, तब उन्होंने बिहार का मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को बनाया था. तब नीतीश कुमार की शायद यह मंशा रही होगी कि वह इस्तीफा देकर पद त्यागने का उदाहरण पेश करने में भी कामयाब होंगे और जीतन राम मांझी के सहारे कठपुतली सरकार की डोर अपने हाथ में रखेंगे.
इसके साथ ही जब चाहेंगे तब दोबारा बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो जाएंगे, लेकिन जीतनराम मांझी ने सीएम बनने के बाद ऐसी पलटी मारी कि नीतीश कुमार भी तब भौचक्के रह गए थे. जीतन राम मांझी को कुर्सी से हटाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. सीएम पद से हटने के बाद जीतन राम मांझी ने अपनी अलग पार्टी हिन्दूस्तानी आवाम मोर्चा बना ली. इसके बाद बिहार में फिर चाहे एनडीए की सरकार रही हो या महागठबंधन की, वह उसमें शामिल रहते हैं. एक-दो साल को अगर छोड़ दें तो बिहार में जब सरकार बदलती है तो वह पलटी मारकर उसमें शामिल हो जाते हैं.
दबाव की राजनीति में माहिर जीतन राम मांझी
2017 में महागठबंधन में थे नीतीश ने पाला बदला तो 2020 विधानसभा में एनडीए के साथ आ गए. नीतीश ने फिर पाला बदला तो मांझी भी उनके साथ महागठबंधन की रथ पर सवार हो गए हैं. मांझी की पार्टी के महज चार विधायक हैं इसके बाद भी नीतीश मंत्रिमंडल में एक सीट उनके या उनके बेटे के लिए रिजर्व रहता है. जबकि 19 विधायकों वाली कांग्रेस को सरकार में दो मंत्रिपद से ही संतोष करना पड़ रहा है. जीतनराम मांझी दबाव की राजनीति करने में माहिर माने जाते हैं.
नीतीश कुमार से जीतन राम मांझी के अलग सुर
पिछले कुछ दिनों से जीतन राम मांझी नीतीश सरकार में अपनी पार्टी के लिए एक और मंत्री पद की मांग कर रहे हैं. साथ ही राज्यपाल कोटे से खाली हुई उपेंद्र कुशवाहा वाली सीट पर भी उनकी नजर है. मांग पूरी नहीं होने पर गाहे-बगाहे वह शराबबंदी पर सवाल खड़े करते हैं. महागठबंधन में कोआर्डिनेशन कमेटी नहीं बनने पर नाराजगी जाहिर करते हैं. फिर अगर इन सबको लेकर नीतीश कुमार नाराजगी जाहिर करें तो उससे पहले हमेशा उनके साथ रहने की मां कसम खा कर अपनी निष्ठा भी साबित कर देते हैं.
महापुरुषों को सम्मान तो बहाना!
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब दिल्ली में विपक्ष को गोलबंद करने पहुंचे तो पीछे से जीतन राम मांझी भी महापुरुषों के सम्मान का बेड़ा उठाकर अमित शाह के दरबार में हाजिर हो गए. जीतन राम मांझी दशरथ मांझी, श्रीकृष्ण सिंह और जयप्रकाश नारायण को मरणोपरांत भारत रत्न देने की मांग कर रहे हैं. इन्हीं महापुरुषों को सम्मान दिलाने के
बहाने अपने लिए सम्मान जनक जगह की तलाश में मांझी दिल्ली पहुंच गए. इसके बाद कहा जा रहा है कि जीतन राम मांझी 2024 से पहले एक बार फिर एनडीए के रथ पर सवार होने की तैयारी कर रहे हैं. मांझी इस बार राज्य की सत्ता नहीं, बल्कि केंद्र की सत्ता में शामिल होने के लिए अमित शाह के दरबार पहुंचे हैं.
छोटे दलों से बड़ा वोट पैकेट
भले ही जीतन राम मांझी या उनकी पार्टी का कोई उम्मीदवार कभी लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाया है. इसके बाद भी अमित शाह उन्हें तरजीह दे रहे हैं. इसके पीछे जीतन राम मांझी के पीछे करीब छह प्रतिशत मुसहर और उसकी उपजाति नईया-भुइयां का वोटर हैं. जीतन राम मांझी इस जाति के निर्विवाद सबसे बड़े नेता हैं.
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार शिवेंद्र नारायण सिंह कहते हैं कि बीजेपी बिहार छोटे दलों को साधकर वोट का बड़ा पैकेट बनाना चाह रही है. इसको लेकर जीतन राम मांझी, चिराग पासवान की अहमियत ज्यादा हो जाती है. बिहार में करीब 16 फीसदी दलित वोटर हैं, जिसमें पासवान जाति के करीब सात और मुसहर जाति का छह प्रतिशत वोटर हैं. रविदास जाति से बीजेपी के पास बड़ा चेहरा जनक राम हैं.
बिहार में दलित वोटर निर्णायक
बिहार के हर लोकसभा क्षेत्र में करीब 40 से 50 हजार दलित वोटर हैं. 13 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां दलित खासकर पासवान और मुसहर वोटर मिलकर जीत-हार तय कर सकते हैं. इसके बाद बीजेपी की कोशिश है कि दलित वोटों को पाले में लाने के लिए दलित नेताओं को साथ लाए.
इससे जहां बीजेपी का कुनबा मजबूत होगा वहीं पार्टी के साथ बड़ा वोट बैंक भी जुड़ेगा. बीजेपी चिराग पासवान को साथ लाने में लगभग कामयाब हो गई है. अब उनकी नजर जीतन राम मांझी पर है. इसके साथ ही बीजेपी मुकेश सहनी को भी साधने की तैयारी कर रही है.