मुंबई हाई कोर्ट ने एक हाउसिंग सोसाइटी में 62 वर्षीय महिला को घायल करने वाले नौ साल के साइकिल चालक के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है. साथ ही कोर्ट ने मुंबई पुलिस की कार्रवाई पर नाराजगी भी जताई. कोर्ट ने कहा कि यह हैरान करने वाली बात है कि पुलिस ने एक नाबालिग बच्चे के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. उन्होंने कहा कि यह एक दुर्घटना के अलावा और कुछ नहीं था, यह स्पष्ट रूप से अनजाने में हुआ था.
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आठ हफ्ते के भीतर याचिकाकर्ता को 25,000 रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है. वहीं यह धनराशि एफआईआर दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारी से वसूलने का निर्देश भी दिया है. मुंबई हाईकोर्ट ने इस मामले में पुलिस की तरफ से दायर एक क्लोजर रिपोर्ट पर कोई उचित आदेश पारित नहीं करने के लिए डोंगरी मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अदालत की भी खिंचाई की.
वनराई पुलिस स्टेशन में दर्ज FIR को चुनौती
दरअसल न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और न्यायमूर्ति श्रीम एम मोदक की पीठ ने 20 अक्टूबर को नाबालिग लड़के की मां की याचिका पर आदेश पारित किया, जिसने धारा 338 के तहत वनराई पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी थी. याचिका में इस केस की मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के सामने लंबित कार्यवाही को भी चुनौती दी गई है.
महिला को साइकिल से लगी थी टक्कर
शिकायतकर्ता के अनुसार, उसके माता-पिता 27 मार्च को शाम करीब 7.30 बजे सोसायटी बिल्डिंग के पोडियम पर गए थे. इसी दौरान साइकिल चला रहे 9 साल के नाबालिग लड़के ने उसकी मां को टक्कर मार दी, जिसमें उनको चोट लग गई थी. वहीं घटना के एक हफ्ते बाद 5 अप्रैल को मुकदमा दर्ज कराया गया था.
मीडिया कवरेज से नाबालिग को आघात
वहीं अधिवक्ता श्रवण गिरी ने सुनवाई के दौरान कहा कि नाबालिग लड़के के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती थी क्योंकि भारतीय दंड संहिता की धारा 83 में कहा गया था कि जो सात साल से अधिक और 12 साल से कम उम्र के बच्चे द्वारा किया जाता है, वो अपराध नहीं है. वकील ने कहा कि इस शिकायत पर पुलिस को कोई कार्रवाई करने की आवश्यकता नहीं थी. उन्होंने कहा कि मामले की मीडिया कवरेज से नाबालिग लड़के को आघात भी पहुंचा है.
जांच से पहले ही मजिस्ट्रेट कोर्ट में रिपोर्ट पेश
वहीं अतिरिक्त लोक अभियोजक जेपी याज्ञनिक ने कोर्ट को क्लोजर रिपोर्ट और रिपोर्ट दर्ज करने वाले सहायक पुलिस आयुक्त के खिलाफ कार्रवाई के बारे में बताया. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि जांच से पहले ही, पुलिस ने मामले में मजिस्ट्रेट कोर्ट में सी-समरी रिपोर्ट दायर कर दी थी. कोर्ट ने पुलिस उप-निरीक्षक तानाजी संतू पाटिल के एक हलफनामे का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि एफआईआर कानून की गलत धारणा के कारण दर्ज की गई थी.
पुलिस को कोर्ट की फटकार
पुलिस अधिकारी ने कहा कि लड़के के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की गई और उसने प्राथमिकी के लिए बिना शर्त माफी मांगी. उन्होंने कहा कि एक क्लोजर-रिपोर्ट किशोर न्यायालय को प्रस्तुत की गई थी लेकिन कोई आदेश पारित नहीं हुआ. हालांकि इस पर कोर्ट ने कहा कि गलतफहमी या कानून की अनभिज्ञता एक पुलिस अधिकारी के लिए बहाना नहीं है.