‘एक देश-एक चुनाव’ को लेकर सरकार एक्शन मोड में आ गई है. शनिवार को केंद्र सरकार की ओर से ‘एक देश-एक चुनाव’ के लिए एक हाई लेवल कमेटी की अधिसूचना जारी कर दी गई है. विधि एवं न्याय मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक, कमेटी में कुल आठ सदस्य शामिल हैं जबकि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अध्यक्ष बनाया गया है.
कमेटी के सदस्यों की बात करें तो इसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अलावा लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, कांग्रेस के पूर्व नेता और डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी के मुखिया गुलाम नबी आजाद, पूर्व योजना आयोग के सदस्य रह चुके एन के सिंह, संसदीय मामलों के एक्सपर्ट सुभाष सी कश्यप, सीनियर वकील हरीश साल्वे, पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल हैं.
केंद्रीय कानून मंत्री इस उच्चस्तरीय समिति की बैठकों में हिस्सा लेंगे और विधि मंत्रालय के सचिव इस समिति के सचिव होंगे. जहां तक विधेयक की बात है तो इसमें लोकसभा-विधानसभा चुनाव के साथ-साथ नगर पालिका और पंचायत प्रधान को भी साथ-साथ कराने की संभावनाओं पर विचार किया जाएगा. समिति ने इसके लिए जरूरी और संबंधित कानूनों में संशोधन पर भी विचार और सिफारिश कर सकती है.
इन अहम बिन्दुओं पर गौर करेगी कमेटी
यह कमेटी त्रिशंकु विधानसभा, विश्वास और अविश्वास प्रस्ताव तथा दल बदल की सूरत में उभरने वाली परिस्थितियों का विश्लेषण और विचार करेगी. एकल निर्वाचक नामावली और निर्वाचक पहचानपत्रों के उपयोग की जांच और उसके तरीकों, लॉजिस्टीक, मैनपॉवर, ईवीएम, वीवीपैट आदि भी विचार करके सिफारिश करेगी. यह कमेटी तुरंत ही काम शुरू कर देगी और जल्द से जल्द रिपोर्ट देगी. कमेटी का मुख्यालय दिल्ली में होगा.
सरकार की ओर से 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र भी बुलाया गया है. माना जा रहा है सरकार ने ‘एक देश-एक चुनाव’ के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए यह विशेष सत्र बुलाई है. इसी सत्र में सरकार बिल भी पेश कर सकती है. संसद के इस विशेष सत्र के दौरान कुल पांच बैठकें होनी हैं. इन बैठकों को दौरान एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर विस्तृत चर्चा होगी.
1967 के बाद से एक साथ चुनाव पर ब्रेक
जानकारी के लिए बता दें कि देश में 1967 के बाद से एक देश एक चुनाव पर ब्रेक लगा हुआ है. आजादी के बाद देश में जब 1951-1952में पहली बार आम चुनाव हुआ था तब राज्यों के विधानसभा चुनाव भी साथ ही हुए थे. इसके 1957, 1962 और 1967 में देश में आम चुनाव और राज्यों के विधानसभा चुनाव साथ ही हुए थे.
जब देश में एक साल पहले ही हो गया आम चुनाव
1972 में भी चुनाव साथ कराने की योजना थी, लेकिन 1971 में देश में ऐसा कुछ राजनीतिक परिदृश्य बना कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक साल पहले ही आम चुनाव कराने की घोषणा कर दी.इसी के बाद से ही एक देश एक चुनाव पर ब्रेक लग गया. तब से लेकर अभी तक राज्यों और आम चुनाव अलग ही होते आ रहे हैं. ये वो दौर था जब बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग कराने में इंदिरा गांधी ने अहम भूमिका निभाई थी. इसकी वजह से इनकी लोकप्रियता काफी बढ़ गई थी.
1999 में विधि आयोग ने सौंपी थी रिपोर्ट
हालांकि, 90 के दशक में एक देश एक चुनाव की मांग फिर से तेज हुई थी. 1999 में विधि आयोग ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए अपनी रिपोर्ट दी थी. इस बीच पीएम मोदी ने 2018 में एक देश एक चुनाव की वकालत की. इसके बाद यह मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया. अब सरकार इस पर कदम बढ़ाने जा रही है.