समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर दाखिल की गईं कई याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. संविधान बेंच कल यानी 19 अप्रैल को भी इस मामले में सुनवाई करेगी. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस एसके कौल, एसआर भट, हिमा कोहली और पीआर नरसिम्हा की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है.
केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए, जबकि सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखा.
आपको बता दें कि केंद्र ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता के मामले में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पर आपत्ति जताई है. सरकार का कहना है कि नए सामाजिक संबंध के निर्माण पर निर्णय संसद में लिया जाना चाहिए.
तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि जो भी कार्यवाही में भाग ले रहे हैं वो देश के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. इसके साथ ही अदालत को पहले यह जांच करनी चाहिए कि क्या कोर्ट इस मामले में सुनवाई कर सकती है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने पिछले महीने इस मामले से जुड़ी कम से कम 15 याचिकाएं बड़ी बेंच को रेफर की थीं.
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाओं पर फैसला करते समय बेंच पर्सनल लॉ के पहलुओं को नहीं छूएगी. पीठ ने कहा कि इस मामले में विधायी कार्रवाई का एक एलिमेंट शामिल है और इस प्रकार स्पेशल मैरिज एक्ट (SMA) के तहत समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने के मामले के दायरे को सीमित करना विवेकपूर्ण होगा.
एसजी ने कहा कि याचिकाकर्ता अदालत से समलैंगिक विवाह की मान्यता का कानूनी अधिकार मांगते हैं, जो कि गलत है. कोर्ट के पास इस तरह का अधिकार देने का अधिकार क्षेत्र नहीं है. तुषार मेहता ने अदालत से मामले की सुनवाई नहीं करने को कहा और इस बात पर जोर दिया कि विधायी मंशा स्पष्ट है कि केवल बायोलॉजिकल पुरुष और बायोलॉजिकल महिला के विवाह को ही वैध माना जाएगा.
हालांकि अदालत ने इस पर सहमति नहीं जताई. बेंच ने कहा कि आप एक वैल्यू जजमेंट कर रहे हैं. इसमें एक जैविक पुरुष और एक जैविक महिला शामिल है. यह गलत है. आदमी या औरत की कोई पूर्ण अवधारणा नहीं है. यह आपके जननांगों के बारे में नहीं हो सकता. ये उससे कहीं अधिक जटिल है. एक पुरुष और एक महिला की धारणा केवल इस बात पर निर्भर नहीं हो सकती कि आपके गुप्तांग क्या हैं.