वन रैंक, वन पेंशन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला रखा सुरक्षित

नई दिल्‍ली : सशस्त्र बलों में वन रैंक वन पेंशन ( OROP) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है. कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा है.वन रैंक वन पेंशन की मांग को लेकर इंडियन एक्स सर्विसमेन मूवमेंट द्वारा याचिका दाखिल की गई है.केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि 2014 में तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने कैबिनेट की सिफारिश के बिना दिया OROP पर चर्चा के दौरान बयान दिया था जबकि 2015 की वास्तविक नीति अलग थी. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उसके वित्तीय परिव्यय का खाका कोर्ट में पेश करने के साथ यह पूछा था कि क्या वन रैंक वन पेंशन के लिए के सुनिश्चित करियर प्रगति पर कोई दिशा निर्देश जारी किया गया है?कोर्ट ने पूछा था कि MACP के तहत कितने लोगों को इस सुविधा का लाभ दिया गया है

दरअसल इंडियन एक्स-सर्विसमैन मूवमेंट ने सुप्रीम कोर्ट में सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों की 5 साल में एक बार पेंशन की समीक्षा करने की सरकार की नीति को चुनौती दी वहीं केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष OROP पर अपना बचाव किया है. SC के 2014 में संसदीय चर्चा बनाम 2015 में वास्तविक नीति के बीच विसंगति के लिए पी चिदंबरम को जिम्मेदार ठहराया है.केंद्र ने 2014 में संसद में वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बयान पर विसंगति का आरोप लगाया है. केंद्र ने कहा कि चिदंबरम का 2014 का बयान तत्कालीन केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश के बिना दिया गया था.केंद्र ने SC में दायर अपने हलफनामे में कहा है. रक्षा सेवाओं के लिए OROP की सैद्धांतिक मंजूरी पर बयान तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा 17 फरवरी, 2014 को तत्कालीन केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश के बिना दिया गया था. दूसरी ओर, कैबिनेट सचिवालय ने 7 नवंबर, 2015 को भारत सरकार (कारोबार नियमावली) 1961 के नियम 12 के तहत प्रधानमंत्री की मंजूरी से अवगत कराया.

बता दें कि 16 फरवरी को पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र पर सवाल उठाए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केंद्र की अतिश्योक्ति OROP नीति पर आकर्षक तस्वीर प्रस्तुत करती है जबकि इतना कुछ सशस्त्र बलों के पेंशनरों को मिला नहीं है. SC ने केंद्र से पूछा था कि OROP कैसे लागू किया जा रहा है? OROP से कितने लोगों को लाभ हुआ है? सुनवाई के दौरान जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने संसदीय चर्चा और नीति के बीच विसंगति पर याचिकाकर्ताओं की दलीलों का हवाला दिया था. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि समस्या यह है कि पॉलिसी पर आपकी अतिशयोक्ति वास्तव में दिए गए लाभ तुलना में बहुत अधिक आकर्षक तस्वीर प्रस्तुत करती है. केंद्र ने अपना बचाव करते हुए कहा था कि नीति पर फैसला केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लिया है. SC ने केंद्र को बताया कि OROP की अभी तक कोई वैधानिक परिभाषा नहीं है. जैसा कि मैंने कहा कि OROP एक वैधानिक शब्द नहीं है, यह कला का एक शब्द है

केंद्र की ओर से ASG वेंकटरमन ने कहा था, ‘हां, यह कला का एक शब्द है जिसे हमने बारीकियों के साथ और बिना किसी मनमानी के परिभाषित किया है.. याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि एक मंत्री द्वारा सदन के पटल पर दिए गए बयान की नैतिकता क्या है? वर्ष 2014 में सेवानिवृत्त हुए वयोवृद्धों को 1965-2013 के बीच सेवानिवृत्त होने वाले पूर्व सैनिकों की तुलना में अधिक पेंशन प्राप्त होती है. केंद्र ने पेंशन में अंतर को संशोधित सुनिश्चित करियर प्रगति ( MACP) नामक प्रक्रिया को जिम्मेदार ठहराया है. याचिकाकर्ताओं का दावा है कि OROP को MACP (मॉडिफाइड एश्योर्ड करियर प्रोग्रेसन) से जोड़कर सरकार ने लाभ को काफी कम कर दिया है जिससे OROP का सिद्धांत पराजित हो गया है.दरअसल याचिका में याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि संसद के पटल पर आश्वासन के बावजूद, जो लागू किया जा रहा है, वह व्यक्ति के सेवानिवृत्त होने के आधार पर समान रैंक के लिए अलग-अलग पेंशन है. हर पांच साल में पेंशन बराबर करने से पिछले सेवानिवृत्त लोगों को गंभीर नुकसान होगा. याचिकाकर्ताओं ने OROP के तहत पेंशन के वार्षिक संशोधन और पूर्व सैनिकों के 2014 के वेतन के आधार पर पेंशन की गणना करने की मांग की है जबकि सरकार की 2015 की अधिसूचना के अनुसार, पेंशन की आवधिक समीक्षा पांच साल और पेंशन 2013 के वेतन के आधार पर तय की गई थी.

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