आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी किए जाने, जम्मू कश्मीर को हासिल विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने और राज्य को 2 केद्र शासित प्रदेशों (जम्मू कश्मीर और लद्दाख) में बांटने वाले भारत सरकार के 5 अगस्त 2019 के ऐतिहासिक संविधान संशोधन और प्रस्ताव पर आज सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाने जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि भारत सरकार का तब का फैसला संविधान के आईने में किस हद तक सही था? ऐसे में यह सही समय है याद करने को कि तब किन राजनीतिक दलों ने इस बिल का समर्थन और किन्होंने इसका विरोध किया था.
5 अगस्त को राज्यसभा में अनुच्छेद 370 को बेअसर करने को लेकर लाए गए भारत सरकार के प्रस्ताव और राज्य पुनर्गठन बिल को लंबी बहस के बाद ऊपरी सदन से पारित करा लिया गया. समर्थन में 125 तो विरोध में 61 सांसदों ने वोटिंग की थी. वहीं अगले दिन 6 अगस्त को लोकसभा में यह प्रस्ताव और विधेयक चर्चा के लिए रखा गया. दिन भर की बहस के बाद जम्मू कश्मीर को 2 केंद्र शासित प्रदेश में विभाजित करने वाला बिल यहां 370 के समर्थन से पारित हो गया. विरोध में इसके 70 लोगों ने मतदान किया था. वहीं 370 को लगभग निरस्त करने और राज्य को मिले विशेषाधिकार को छीनने वाले प्रस्ताव को निचले सदन में 351 सांसदों का साथ मिला जबकि 72 सांसदों ने सरकार के कदम को अनुचित बताते हुए रिजॉल्यूशन के खिलाफ मतदान किया था.
किसने समर्थन किया था?
भारतीय जनता पार्टी की सरकार को तब कुछ ऐसे भी दलों का साथ मिला था जो परंपरागत तौर पर बीजेपी की पार्टी लाइन के खिलाफ वोटिंग करते रहे हैं या फिर वह थोड़ा तटस्थ रुख अपनाते हैं. मायावती की बहुजन समाज पार्टी, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, नवीन पटनायक की बीजू जनता दल, जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस, एन चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी, के चंद्रशेखर रॉव की तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब की भारत राष्ट्र समिति) ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को लेकर लाए गए बिल का समर्थन किया था. इनके अलावा ऑल इंडिया अन्ना द्रमुक यानी एआईएडीएमके, शिवसेना, शिरोमणी अकाली दल ने भी सरकार का साथ दिया था.
जिन्होंने विरोध का रास्ता चुना!
भारत सरकार के कदम का विरोध करने वाली सबसे प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस थी लेकिन समय के साथ कांग्रेस पार्टी का इस मुद्दे पर पुराना स्टैंड थोड़ा नरम पड़ता चला गया. कांग्रेस के अलाव ज्यादातर जम्मू कश्मीर के क्षेत्रीय दल जिनमें नेशनल कांफ्रेंस, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), पीपल्स कांफ्रेंस ने पुरजोर तरीके से भारत सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक करार दिया था. साथ ही सीपीआई, सीपीआईएम, डीएमके, एमडीएमके और राष्ट्रीय जनता दल ने भी बेधड़क बिल के खिलाफ वोटिंग की थी.
विरोध मगर वोटिंग के दौरान गैरहाजिर
नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (भारतीय जनात पार्टी की सहयोगी होते हुए भी) ने संसद में लाए गए प्रस्ताव का विरोध किया था लेकिन पार्टी वोटिंग में शामिल नहीं हुई. जदयू ने वोटिंग के समय संसद से वॉकआउट कर दिया था. ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भी जदयू ही की तरह दोनों सदनों में सरकार का इस मुद्दे पर खिलाफत की थी लेकिन बिल पर वोटिंग के दौरान टीएमसी के सांसद सदन से बाहर चले गए. नेशनल कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी ने भी विरोध का रास्ता चुना और सदन से बाहर चली गई. हालांकि यह भी ध्यान रहे कि तब कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बसपा, जदयू, समाजवादी पार्टी और एनसीपी से कुछ ऐसी भी आवाजें आईं थीं जिन्होंने अपनी पार्टी के स्टैंड से इतर सरकार के कदम की तारीफ की थी.