उद्धव ठाकरे को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं, महाराष्ट्र में बनी रहेगी एकनाथ शिंदे की सरकार

महाराष्ट्र में शिवसेना विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ किसी नतीजें पर नहीं पहुंच पाई है. गुरुवार को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाते हुए संविधान पीठ ने सुनवाई के लिए इसे बड़ी बेंच के पास भेज दिया है. अब सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच इस मुद्दे पर सुनवाई करेगी. पीठ ने कहा कि विधायकों की अयोग्यता पर स्पीकर फैसला लें. हम इस फैसला नहीं लेंगे और न ही हम पुरानी स्थिति को बहाल कर सकते हैं.

संविधान पीठ ने मामले को बड़ी बेंच के पास भेजते हुए तीखी टिप्पणी भी की है. कोर्ट ने कहा कि स्पीकर को दो गुट बनने की जानकारी थी. भरत गोगावले को चीफ व्हिप बनाने का स्पीकर का फैसला गलत था.स्पीकर को जांच करके फैसला लेना चाहिए था. स्पीकर को सिर्फ पार्टी व्हिप को मान्यता देनी चाहिए. उन्होंने सही व्हिप को जानने की कोशिश नहीं की.

कोर्ट ने कहा कि आंतरिक मतभेदों का हल फ्लोर टेस्ट से संभव नहीं है. फ्लोर टेस्ट कराने से पहले गर्वनर को सलाह लेनी चाहिए थी. पार्टी के कलह में राज्यपाल को दखल नहीं देना चाहिए. असली पार्टी का दावा सही नहीं है. चुनाव आयोग को सिंबल जारी करने से नहीं रोका जा सकता है. विश्वासमत के लिए अंदरूनी कलह का आधार काफी नहीं है.

‘ठाकरे इस्तीफा नहीं दिए होते तो राहत मिल सकती थी’
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि गर्वनर ने जो फैसला लिया था वो संविधान के खिलाफ था. कोर्ट ने कहा कि सरकार बहाल नहीं हो सकती थी क्योंकि सीएम पहले ही इस्तीफा दे चुके थे. उद्धव ठाकरे इस्तीफा नहीं दिए होते तो राहत मिल सकती थी. स्वेच्छा से दिए गए इस्तीफे को कोर्ट निरस्त नहीं कर सकता है.

उद्धव गुट ने की है विधायकों को अयोग्य करने की मांग
दरअसल, एकनाथ शिंदे के साथ 15 विधायकों के बागी होने के बाद उद्धव गुट ने याचिका दायर इनकी अयोग्यता की मांग की थी.दूसरी ओर से बागी नेता एकनाथ शिंदे की ओर से भी याचिका दायर की गई थी. जिसमें डिप्टी स्पीकर द्वारा जारी किए गए अयोग्यता नोटिस को चुनौती दी गई थी. याचिका में डिप्टी स्पीकर को इस मामले में अयोग्यता याचिका पर कोई कार्रवाई करने से रोकने की मांग की गई जब तक डिप्टी स्पीकर को हटाने का प्रस्ताव तय नहीं हो जाता है.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने की थी तीखी टिप्पणी
मामले को लेकर हुई पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को लेकर तीखी टिप्पणी करते हुए कई सवाल किए थे. अदालत ने पूछा था कि क्या किसी राजनीतिक दल में आंतरिक विद्रोह को आधार मानकर राज्यपाल फ्लोर टेस्ट करा सकते हैं? क्या विधानसभा के सदन को बुलाते समय राज्यपाल को इस बात का अंदाजा नहीं था कि इससे तख्तापलट हो सकता है?

सुप्रीम कोर्ट की जिस संविधान पीठ ने यह फैसला दिया है उसमें चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल रहे. नौ दिनों तक चली सुनवाई के बाद 16 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

पिछले साल जून में शुरू हुआ विवाद
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में सियासी उठापटक की शुरुआत पिछले साल जून में शुरू हुई. एकनाथ शिंदे ने 15 विधायकों के साथ बगावत कर दी. विधायकों के बगावत के बाद महा विकास अघाड़ी के सामने मुश्किल खड़ी हो गई. इस बीच में उद्धव ठाकरे की ओर से एक टेबल पर बैठकर बातचीत करने का प्रस्ताव भी दिया गया लेकिन शिंदे गुट तैयार नहीं हुआ.

विधायकों के बागी होने के बाद इसमें बीजेपी की एंट्री हो गई. बीजेपी ने शिंदे गुट के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बना ली और एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन गए. बीजेपी नेता और पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बना दिया गया.

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