1992 के सिस्टर अभया हत्या कांड की आरोपी सिस्टर सेफी के वर्जिनिटी टेस्ट को दिल्ली हाईकोर्ट ने गलत करार दिया है। हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा कि सिस्टर सेफी मुआवजे की सही हकदार है। वो इसके लिए संबंधित अथॉरिटी के समक्ष अपना दावा पेश कर सकती है।
सिस्टर अभया एक 20 साल की युवती थी। वो कोट्टायम के St.Pious Xth Convent में रहती थी। 27 मार्च 1992 को उसकी लाश एक कुएं के भीतर मिली थी। केरल पुलिस ने अपनी जांच में माना था कि अभया ने खुदकुशी की। लेकिन मामला जब सीबीआई के सुपुर्द किया गया तो इसमें ट्विस्ट आ गया। सीबीआई की जांच के मुताबिक सिस्टर सेफी दोषी साबित हुई।
वर्जेनिटी टेस्ट से हुआ था खुलासा
केरल पुलिस ने अपनी जांच के बाद अभया मामले को खुदकुशी मानकर बंद कर दिया था। लेकिन जब इसे लेकर हल्ला मचा तो जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई ने अपने हिसाब से विवेचना की। शक की सुईं सिस्टर सेफी की तरफ गई। सीबीआई की थ्यौरी के मुताबिक सिस्टर सेफी और मामले के दूसरे आरोपी फादर कुट्टूर के बीच शारीरिक संबंध थे। अभया की हत्या इस पर परदा डालने के लिए की गई थी। सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने सिस्टर सेफी को दोषी मानकर उम्र कैद की सजा सुनाई थी। लेकिन केरल हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। सिस्टर सेफी को दोषी मानने का केवल एक आधार था। उसका वर्जिनिटी टेस्ट।
सिस्टर सेफी ने 2009 में अदालत में अपील करके वर्जिनिटी टेस्ट पर सवाल उठाए। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में माना कि वर्जिनिटी टेस्ट संविधान के आर्टिकल 21 के अनुरूप नहीं है। अदालत का कहना था कि विवेचना के दौरान भी आर्टिकल 21 खत्म नहीं होता। सिस्टर सेफी का वर्जिनिटी टेस्ट चाहें पुलिस की कस्टडी में हुआ या फिर न्यायिक हिरासत में। वो सरासर गलत है। कोर्ट ने सिस्टर सेफी को आदेश दिया कि वो इसके खिलाफ मुआवजे की अपील करने की सही हकदार है। हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर केंद्र और सीबीआई ने एतराज किया लेकिन अदालत का कहना था कि NHRC दिल्ली में है। लिहाजा इसमें अतिक्रमण कहीं से भी नहीं होता।