प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी युनाइटेड अरब अमिरात के लिए रवाना हुए हैं. इससे पहले वह दो दिवसीय यात्रा पर फ्रांस में थे. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से राष्ट्रपति मैक्रों से मुलाकात की उसे भविष्य की कई योजनाओं के लिए काफी अहम माना जा रहा है. ऐसा पहली बार नहीं है जब पीएम मोदी किसी देश की यात्रा पर गए हैं और पूरी दुनिया की निगाहें उनके दौरे पर टिकी हुई हैं. इससे पहले जून में प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका के दौरे पर गए थे. उस वक्त चीन-पाकिस्तान से लेकर रूस तक पीएम मोदी के दौरे कि पल पल की खबर ले रहे थे. भारत का बाजार अब दुनिया के लिए बड़ा हब बन चुका है. यही कारण है कि पश्चिम से लेकर यूरोप तक के देश भारत को हाथों हाथ ले रहे हैं.
भारत को साधकर सभी देश अपना-अपना हित साधने में लगे हैं. अमेरिका को चीन से मुकाबला करना है तो उसे भारत का साथ जरूरी होगा. वहीं फ्रांस इस वक्त भारत का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा सहयोगी देश है. ऐसे में वह भारत से दूरी नहीं बना सकता है. वहीं रूस पश्चिमी देशों से मुकाबला करने के लिए भारत को साधे रखना चाहता है. यही नहीं अमेरिका से लेकर खाड़ी देशों तक जिस तरह से भारतीय समुदाय का वर्चस्व है उसे देखने के बाद भारत से दूरी बनाना किसी भी देश को पीछे धकेल सकता है.
भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था
दुनियाभर में जहां मंदी का साया है वहीं भारत की अर्थव्यस्था का ग्राफ तेजी से ऊपर जा रहा है. ऐसा अनुमान है कि साल 2028 तक भारत की जीडीपी जापान और जर्मनी जैसे देशों को पीछे छोड़ देगी. भारत दुनिया का सातवां सबसे बड़ा निर्यातक देश बन चुका है. यही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर तेजी से ग्रो कर रहा है. यही कारण है कि अमेरिका अब भारत के बेहद करीब रहना चाहता है. दोनों ही देश चीन को हमेशा से ही अपना खतरा मानते रहे हैं. ऐसे में चीन की ताकत को कमजोर करना है तो अमेरिका को भारत पर दांव लगाना ही होगा.
अमेरिका में भारत का वर्चस्व
अमेरिका में भारतीयों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है. बात चाहे आईबीएम की हो या फिर माइक्रोसॉफ्ट की. अमेरिका की ज्यादातर बड़ी कंपनियों को भारतीय मूल के सीईओ ही चला रहे हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका में भारतीयों का किस तरह से वर्चस्व बढ़ रहा है. यहां तक कि अमेरिका के 70 फीसदी लोग भारत को लेकर सकारात्मक सोच रखते हैं जबकि चीन को लेकर केवल 15 फीसदी लोग ही सकारात्मक हैं.
भारत को रूस से दूर करने की चाहत
रूस-यूक्रेन जंग में अमेरिका शुरू से ही यूक्रेन के साथ खड़ा है. अमेरिका रक्षा क्षेत्र में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के जरिए भारत को रूस से दूर करने की कोशिश कर रहा है. अमेरिका नहीं चाहता कि भारत रूस से किसी भी तरह का रक्षा सौदा करे. भारत और अमेरिका के बीच कभी भी व्यापार संबंध बहुत करीब के नहीं रहे हैं लेकिन जिस तरह से भारत का बाजार खड़ा हुआ है, उसे देखने के बाद अमेरिका भी भारत के करीब आने लगा है.
भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयतक देश
भारत के पड़ोसी मुल्क जिस तरह से उसे देखने में लगे हुए हैं उसे देखते हुए भारत अपनी सैन्य ताकत को तेजी से बढ़ा रहा है. फ्रांस ये बात बखूबी जानता है. यही कारण है कि रक्षा सहयोग के नाम पर फ्रांस लगातार भारत की ओर देख रहा है. फ्रांस ने भारत को राफेल से लेकर पनडुब्बी तक दी है. भारत भले ही रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की ओर कदम बढ़ा रहा हो लेकिन अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा रक्षा आयातक देश है. वहीं फ्रांस की बात करें तो दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा देश है जो दुनियाभर में हथियारों का निर्यात करता है.
भारत को हथियार देने में दूसरे नंबर पर है फ्रांस
भारत अपने सैन्य ताकत को तेजी से बढ़ाने में लगा हुआ है. यही कारण है कि दुनियाभर के देशों से भारत रक्षा सौदा करता रहता है. भारत सबसे ज्यादा हथियार रूस से खरीदता है जबकि फ्रांस इस मामले में दूसरे नंबर पर है. SIPRI के मुताबिक भारत को हथियार बेचने में रूस की हिस्सेदारी 45% है जबकि फ्रांस की 29 प्रतिशत है. इस मामले में अमेरिका तीसरे नंबर पर है और उसकी हिस्सेदारी 11 प्रतिशत है. पहले अमेरिका दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक था लेकिन साल 2018 से 2022 के बीच फ्रांस और भारत में जिस तरह से रक्षा सौदे हुए उसने अमेरिका को काफी पीछे छोड़ दिया.
न्यूक्लियर पावर क्षेत्र में भारत के साथ साझेदारी
रक्षा सौदों के साथ ही फ्रांस न्यूक्लियर पावर क्षेत्र में भी भारत का साझेदार देश बनना चाहता है. यही मकसद से साल 2018 में भारत और फ्रांस ने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर एक समझौता भी किया है. इसी समझौते के तरह फ्रांस महाराष्ट्र के जैतापुर में 6 न्यूक्लियर पावर रिएक्टर बनाने की योजना पर काम करना चाहता है. फ्रांस की कोशिश है कि जब इस प्लांट की शुरुआत हो तो भारत फ्रांसीसी ईपीआर न्यूक्लियर रिएक्टर ही खरीदे. हालांकि इस प्रोजेक्टर पर अभी दोनों देशों के बीच और बात होने की संभावना है.
पश्चिमी देशों से निपटने के लिए रूस को भारत की जरूरत
रूस-यूक्रेन की जंग के बाद पश्चिमी देशों ने जिस तरह से रूस पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, ऐसे में एशिया का बाजार रूस से लिए पूरी तरह से खुला हुआ है. यही कारण है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन चीन और भारत के नजदीकियां बढ़ाने में लगे हुए हैं. ऐसी जानकारी है कि पीएम मोदी अगस्त में पुतिन से मुलाकात कर सकते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका और फ्रांस के दौरे ने पुतिन की बेचैनी बढ़ा दी है. यही कारण है कि पुतिन पीएम मोदी से मुलाकात की कोशिश में लगे हुए हैं.