UAPA एक्ट क्या होता है, जिसमें गिरफ्तारी के नाम से ही कांपने लगती है रूह, यह कब लगाया जाता है?

दिल्ली : केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ करीब दो महीने से जारी किसान आंदोलन अब अलग-थलग पड़ता दिखाई दे रहा है. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर निकाली गई ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा में पलिस ने कई प्राथमिकी दर्ज की है. किसान नेता राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, दर्शन पाल, बलदेव सिंह सिरसा, बलबीर सिंह राजेवाल समेत कई लोगों के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया गया है. इस बीच ऐसी चर्चा भी सामने आ रही है कि पुलिस इस मामले में UAPA एक्ट लगा सकती है.

गैरकानूनी गतिविधियों के खिलाफ लगाया जाने वाला यह एक्ट काफी खतरनाक होता है. इसमें काफी कड़ी सजाओं का प्रावधान है. इसका दायरा इतना व्यापक होता है कि न केवल अपराधी बल्कि वैचारिक विरोध और आंदोलन या दंगा भड़काने की स्थिति में भी यह एक्ट लगाया जा सकता है. दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में भी पुलिस ने UAPA एक्ट लगाया था और इसी एक्ट के तहत जेएनयू के छात्र रह चुके उमर खालिद की गिरफ्तारी की गई थी.

आइए जानते हैं कि आखिर यह यूएपीए एक्ट होता क्या है… यह कब लगाया जाता है और इसमें सजा के क्या प्रावधान होते हैं.

UAPA: गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम
सबसे पहले आपको बता दें कि UAPA का फुल फॉर्म Unlawful Activities (Prevention) Act होता है. इसका मतलब है— गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम. इस कानून का मुख्य काम आतंकी गतिविधियों को रोकना होता है. इस कानून के तहत पुलिस ऐसे आतंकियों, अपराधियों या अन्य लोगों को चिह्नित करती है, जो आतंकी ग​तिविधियों में शामिल होते हैं, इसके लिए लोगों को तैयार करते हैं या फिर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं.

इस मामले में एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को काफी शक्तियां होती है. यहां तक कि एनआईए महानिदेशक चाहें तो किसी मामले की जांच के दौरान वह संबंधित शख्स की संपत्ति की कुर्की-जब्ती भी करवा सकते हैं.

1967 में आया कानून, 2019 में संशोधन के बाद और मजबूत हुआ
यूएपीए कानून 1967 में लाया गया था. इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत दी गई बुनियादी आजादी पर तर्कसंगत सीमाएं लगाने के लिए लाया गया था. पिछले कुछ सालों में आतंकी गतिविधियों से संबंधी POTA और TADA जैसे कानून खत्म कर दिए गए, लेकिन UAPA कानून अब भी मौजूद है और पहले से ज्यादा मजबूत है.

अगस्त 2019 में ही इसका संशोधन बिल संसद में पास हुआ था, जिसके बाद इस कानून को ताकत मिल गई कि किसी व्यक्ति को भी जांच के आधार पर आतंकवादी घोषित किया जा सकता है. पहले यह शक्ति केवल किसी संगठन को लेकर थी. यानी इस एक्ट के तहत किसी संगठन ​को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाता था. सदन में विपक्ष को आपत्ति पर गृहमंत्री अमित शाह का कहना था कि आतंकवाद को जड़ से मिटाना सरकार की प्राथमिकता है, इसलिए यह संशोधन जरूरी है.

इस कानून के तहत किसी व्यक्ति पर शक होने मात्र से ही उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकता है. इसके लिए उस व्यक्ति का किसी आतंकी संगठन से संबंध दिखाना भी जरूरी नहीं होगा. आतंकवादी का टैग हटवाने के​ लिए उसे कोर्ट की बजाय सरकार की बनाई गई रिव्यू कमेटी के पास जाना होगा. हालांकि बाद में कोर्ट में अपील की जा सकती है.

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