दिल्ली: क्या कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का मिनिमम इनकम गारंटी स्कीम का वादा देश के गरीबों को सही साबित होगा? क्या गरीबों को 72 हजार रुपए सालाना देने का दावा देश के ख़ज़ाने पर असर डालेगा? अर्थशास्त्रियों की माने तो इस योजना के लागू होने से देश के खजाने पर भारी प्रभाव होगा, क्योंकि इसकी सालाना लागत 3.6 लाख करोड़ रुपये आएगी. राहुल गांधी ने कहा है कि कांग्रेस ‘न्याय योजना’ के तहत कांग्रेस देश के 20 फीसदी सबसे गरीब परिवारों को सालाना 72,000 रुपये प्रदान करेगी. उन्होंने कहा कि इस योजना से सीधे तौर पर पांच करोड़ परिवार और 25 करोड़ लोग लाभान्वित होंगे
कांग्रेस अध्यक्ष ने आरंभ में कहा कि न्यूनतम आय रेखा 12,000 रुपये मासिक है और इस योजना का लाभ इससे कम आय वालों को मिलेगा. उन्होंने बाद में स्पष्ट किया कि अगर किसी व्यक्ति की आय 12,000 रुपये मासिक से कम है तो इस योजना के तहत उस कमी की पूर्ति की जाएगी. गांधी ने कहा, “अगर किसी व्यक्ति की आय 6,000 रुपये मासिक है तो हम उसे बढ़ाकर 12,000 रुपये करेंगे. जिनकी आय 12,000 रुपये से कम है हम उनकी आय बढ़ाकर 12,000 रुपये करेंगे”
अर्थशास्त्रियों की राय है कि पार्टी को योजना का ब्योरा देना चाहिए. उनका मानना है कि इस योजना से अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव आएगा. वही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि सुनने में ये भले ही अच्छा लगे लेकिन स्कीम का हकीकत से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है. कांग्रेस और राहुल गांधी आंकड़ों की बाजीगरी कर रहे हैं. वित्त मंत्री ने समझाया कि मोदी सरकार पहले से ही अलग-अलग स्कीम के जरिए हर साल गरीब परिवारों को 5.34 लाख करोड़ सब्सिडी डीबीटी के जरिए खातों में डाल रही है. अगर इसका हिसाब लगाया जाए तो देश के सबसे गरीब बीस फीसदी परिवारों में से हर परिवार को औसतन एक लाख रुपये से ज्यादा मिलेगा जबकि कांग्रेस की मिनिमम गारंटी स्कीम के जरिेए गरीबों को महज 72 हजार ही मिलेंगे.
जाहिर है राहुल गांधी की स्कीम में कई पेच हैं, सियासी मकसद भी और इसकी वजह भी साफ है. चुनावी समर में मोदी से महागठबंधन को सबसे ज्यादा खतरा है लेकिन सबसे ज्यादा बेचैनी कांग्रेसी खेमे में है तभी तो रविशंकर प्रसाद कहते हैं राहुल गांधी गरीबी दूर करने का नोट फॉर वोट फॉर्मूला लेकर आए हैं. ऐसा लगता है कि राहुल को उम्मीद है कि जैसे मनरेगा प्लान काम कर गया था उसी तरह ये नोट फॉर वोट आइडिया मोदी को मात देने में कामयाब होगा.