कौन है जैश-ए-मोहम्मद का सरदार मसूद अज़हर, जानिए उसका काला इतिहास..

गुरुवार को जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले में सीआरपीएफ के काफिले को निशाना बनाते हुए आतंकियों ने बड़ा हमला किया. जिसमें हमारे 40 जवान शहीद हो गए. इस हमले में पांच जवान घायल भी हुए हैं. हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है. जानते हैं इस संगठन और इसके सरगना मसूद अजहर से जुड़ी बड़ी बातें:

कहानी शुरू होती है अफगानिस्तान से.. वहां दिसंबर 1979 में कम्यूनिस्ट सरकार थी. जिसके खिलाफ मुजाहिदीन ने हथियार उठाये. सरकार को रूस का समर्थन प्राप्त था. वहीं अमेरिका, पाकिस्तान और सऊदी अरब मुजाहिदीन यानी भाड़े के लड़ाकों को छिपे तौर पर समर्थन देते थे. अफगान सरकार का तख्ता पलटने के बाद ये सभी लड़ाके बेरोजगार हो गए.

लड़ाकों का इस्तेमाल
अब पाकिस्तान ने इन बेरोजगार लड़ाकों का इस्तेमाल कश्मीर के लिए करने का फैसला लिया. कश्मीर में हमलों के लिए लश्कर-ए-तैयबा और हरकत-उल-अंसार नाम के आतंकी संगठनों की नींव रखी गई. हरकत-उल-अंसार का नाम बाद में बदलकर हरकत-उल-मुजाहिदीन (Hum-हम) रखा गया.

1994 में गिरफ्तार
जम्मू कश्मीर में आईएसआई ने ‘हम’ का इस्तेमाल करना शुरू किया. इसी संगठन का सदस्य था मौलाना मसूद अजहर. इस संगठन का सदस्य होने के नाते भारत ने इसे 1994 गिरफ्तार कर लिया.

बहावलपुर में हुआ जन्म
मसूद अजहर का जन्म पाकिस्तान के बहावलपुर में हुआ था. उसने कराची के जामिया उलूम उल इस्लामिया से पढ़ाई की. हरकत-उल-अंसार से जुड़ने के बाद उसने आतंकी गतिविधियां शुरू की.

विमान का अपहरण
आतंकी अजहर को कैद से छुड़ाने के लिए आतंकियों ने भारतीय विमान का अपहरण किया और उसे कंधार ले गए. विमान में तीन आतंकियों सहित 176 लोग सवार थे. इन लोगों ने अजहर समेत कई अन्य आतंकियों को रिहा करने की मांग की. जिसके बाद 31, दिसंबर 1999 को अजहर को रिहा किया गया. रिहा होने के बाद अजहर ने 31 जनवरी, 2002 को जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया. यूं तो इस नाम का मतलब होता है, पैगंबर मोहम्मद की फौज. लेकिन इसके सदस्यों ने इसके उलट काम कर आतंक फैलाया.

कई हमलों का जिम्मेदार
जैश-ए-मोहम्मद ने भारत में कई बड़े हमले किए हैं. चाहे पठानकोट हमला हो या फिर उरी हमला, सबमें इसी का हाथ रहा है. 14 फरवरी को जैश ने ही आतंकी आदिल अहमद डार का वीडियो जारी किया, जिसमें उसने पुलवामा हमले की पूरी जिम्मेदारी ली. जनवरी, 2016 को पठानकोट हमले में 7 भारतीय जवानों की जान भी इसी संगठन ने ली. इसके अलावा सितंबर 2016 में भी हुए उरी हमले के पीछे भी इस संगठन का हाथ था. इस हमले में 19 भारतीय जवान शहीद हुए थे.

आतंकी करतूतों की सूची
जैश-ए-मोहम्मद 19 अप्रैल, 2000 को सबसे पहले खबरों में उस वक्त आया जब उसने बादामी बाग, श्रीनगर स्थित भारतीय सेना के 15 कोर मुख्यालय पर हमला किया. जैश अंतरराष्ट्रीय जिहाद लीग का एक सदस्य बन गया. जिसके बाद ये आईएसआई के लिए लश्कर-ए-तैयबा की तरह ही कीमती बन गया.

जैश-ए-मोहम्मद का अक्तूबर 2001 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हुए हमले और 13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले के पीछे भी हाथ है.

2015 में जैश से संबंधित घटनाएं
15 जनवरी: दक्षिणी कश्मीर के केलर इलाके के गाडरू जंगल क्षेत्र में पांच जैश के आतंकियों को सेना द्वारा एक मुठभेड़ में ढेर किया गया. मारे गए आतंकियों में से एक जैश कमांडर मोहम्मद तोइब था जो पाकिस्तान मुल्तान का रहने वाला था जबकि बाकी के चार स्थानीय आतंकी थे.

20 मार्च: जम्मू संभाग के कठुआ जिले के राजबाग पुलिस थाने पर सेना की वर्दी में फिदायीन हमला हुआ, जिसमें तीन जवान शहीद हुए. इसके अलावा एक स्थानीय नागरिक की भी इसमें मौत हुई. जवाबी कार्रवाई में दो आतंकियों को भी ढेर किया गया, जबकि 10 लोग इस हमले में घायल हुए थे.

21 मार्च: दो आतंकियों ने जम्मू संभाग के सांबा जिले में सेना के एक कैंप पर हमला किया. सुरक्षा बलों ने दोनों को ढेर कर दिया.

27 जुलाई: हथियारों से लैस तीन आतंकियों ने गुरदासपुर के दीना नगर थाने पर धावा बोला. जिसमें दस लोगों सहित एक एसपी शहीद हो गए. मरने वालों में तीन आतंकी, तीन स्थानीय नागरिक और चार पुलिसकर्मी थे.

4 अक्तूबर: दक्षिणी कश्मीर के हारी परिगाम ट्त्राल में जैश के दो विदेशी आतंकियों को सेना ने मुठभेड़ के दौरान ढेर कर दिया. इनकी पहचान आदिल पठान और बर्मी के तौर पर हुई थी.

25 नवंबर: उत्तरी कश्मीर के टंगधार में सेना के कैंप पर हुए आत्मघाती हमले में एक स्थानीय नागरिक की मौत हुई, जबकि तीन आतंकियों को सेना द्वारा ढेर किया गया.

दुनिया का दुश्मन, पाक का हीरो
जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर अपने भाषणों के जरिए पाकिस्तान का फेमस चेहरा बन गया. वह अपने भाषण में गैर मुस्लिमों के प्रति जहर उगलता और अफगान युद्ध में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने की बात करने लगा.

किन्होंने की मदद
अजहर की आईएसआई, अफगानिस्तान की नई तालिबान सरकार और वहां शरण लिए हुए अल कायदा के आकाओं ने मदद दी. उसे पैसे, हथियार सबकुछ मुहैया कराया गया. इस संगठन की विचारधारा अल कायदा और तालिबान की विचारधारा पर आधारित है. आईएसआई ने हरकत-उल-मुजाहिदीन के कई आतंकियों को जैश-ए-मोहम्मद के साथ काम करने के लिए प्रेरित भी किया.

आतंकी संगठन की सूची में शामिल
17 अक्तूबर, 2001 को संयुक्त राष्ट्र ने जैश-ए-मोहम्मद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन घोषित कर दिया था. इसके बाद भी इसने भारत में हमले जारी रखे. जिसके बाद 26 दिसंबर, 2001 को अमेरिका ने भी इसे विदेशी आतंकी संगठन घोषित कर दिया.

पाकिस्तान में प्रतिबंध
आतंकी घटनाओं के बाद पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने लगा, जिसके बाद उसने जनवरी 2002 में जैश पर प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन संगठन ने अपना नाम बदलकर खुद्दाम-उल-इस्लाम रख लिया और आतंक फैलाता रहा. बाद में उसपर भी प्रतिबंध लग गया.

2002 में गैरकानूनी संगठन करार दिए जाने के बाद इसने अल-रहमत ट्रस्ट नाम का चैरिटेबल ट्रस्ट शुरू किया. फिर इसके अंदरूनी कलह के चलते जमात-उल-फुरकान नाम का एक और संगठन बना. वहीं मसूद खुद्दाम-उल-इस्लाम की आड़ में जैश का संचालन करता रहा.

पाकिस्तान में हमले
जब अमेरिका में 9/11 हमला हुआ तो इसका विरोध पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मुशर्रफ ने भी किया. जब इस बात का पता जैश को चला तो वो आग बबूला हो गया. उसने मुशर्रफ के इस्तीफे की मांग की. उसने इस्लामाबाद, मरी, तक्षशिला और बहावलपुर में भी हमले किए. इसके बाद 2003 में पाक सरकार ने खुद्दाम-उल-इस्लाम पर भी प्रतिबंध लगा दिया.

इससे आतंकी मसूद अहजर और भी बौखला गया और उसने 14 दिसंबर और 25 दिसंबर, 2003 को दो बार मुशर्रफ के काफिले पर हमला किया. हमले में जो आरोपी थे उन्हें मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान ही फांसी भी दी गई. वहीं मसूद अजहर पर सख्ती कर उसे नजरबंद किया गया.

चीन बचाता रहा है
भारत ने कई बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने की कोशिश की. लेकिन हर बार परिषद का स्थायी सदस्य चीन अड़ंगा बना. अहजर हर बार चीन की वजह से बच निकलता है. भारत ने 26/11 हमले के बाद भी इसके खिलाफ अभियान शुरू किया था. अब भारत एक बार फिर इसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने की मांग करेगा.

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