दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बहुमत से भी अधिक सीट हासिल कर एक बार फिर सत्ता अपने नाम कर ली है. वहीं विपक्ष को जितनी सीटों की उम्मीद थी, उतनी भी नहीं मिल पाईं. ऐसे बहुत से कारण हैं, जिनसे भाजपा ने ये ऐतिहासिक जीत हासिल की है. 2014 की अगर बात करें तो गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, बिहार और दिल्ली की कुल 273 सीटों में से 240 सीटें ही भाजपा को मिली थीं. वहीं इस बार उसे 246 सीटें मिली हैं.
हैरानी की बात तो ये है कि करीब चार महीने पहले ही विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार गंवाने के बावजूद भाजपा को इन राज्यों में 61 सीटें मिली हैं। उत्तर प्रदेश में भले ही भाजपा की नौ सीटें घटी हों लेकिन वोट प्रतिशत 2014 के मुकाबले 7 फीसदी बढ़कर 50 फीसदी हुआ है. यहां पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 71 सीटें जीती थीं, जबकि इस बार भाजपा को यहां 62 सीटें मिली हैं.
यहां बेशक सपा-बसा गठबंधन के जाति आधारित वोट बंधे हुए हों लेकिन मोदी का राष्ट्रवाद का मुद्दा उसपर भारी पड़ गया. भाजपा ने यहां पहले ही 60 सीटें चुन ली थीं, लेकिन इस गठबंधन के होते हुए 40 सीटों पर नुकसान पहले से ही संभव था.
इन राज्यों में मिला उम्मीद से ज्यादा
अब बात करते हैं उन राज्यों की जहां क्षेत्रीय दलों का दबदबा अधिक रहता है. इस बार इन राज्यों में भाजपा को उसकी उम्मीद से ज्यादा मिला है. कर्नाटक में जहां कांग्रेस और जेडीएस की गठबंध सरकार है, वहां भाजपा ने 25 सीट हासिल कीं. जबकि बीते साल भाजपा ने यहां सरकार गंवाई थी. जेडीएस और कांग्रेस के खाते में इस बार यहां लोकसभा की एक-एक सीट आई है.
पश्चिम बंगाल जो टीएमसी का गढ़ है, वहां भाजपा को 18 सीटें मिलीं. वहीं पटनायक के ओडिशा में भाजपा ने इस बार 8 सीट हासिल की हैं. ओडिशा में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को अभी तक के रुझानों के अनुसार 16 सीट मिल चुकी हैं. वहीं 2014 में भाजपा ने बंगाल में 2 और ओडिशा में सिर्फ 1 सीट जीती थी.
120 सांसदों के टिकट कटे
भाजपा की इस जीत का एक सबसे बड़ा कारण था पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का प्रत्याशियों के बजाय सिर्फ मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने की सफल रणनीति बनाना. ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी के एक सर्वे में मोदी की लोकप्रियता महज 50 फीसदी थी, जो बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद बढ़कर 72 फीसदी पर पहुंच गई.
इस बार पार्टी ने 120 सासंदों के टिकट काटे. उनकी जगह 100 से अधिक प्रत्याशी जीत भी गए. टिकट उनके काटे गए थे जिनके प्रति अलग-अलग सर्वे में नाराजगी दिख रही थी. भाजपा की चुनावी रणनीति मोदी की लोकप्रियता की लहर में उम्मीदवारों के प्रति नाराजगी खत्म करने की भी थी. जिसके चलते उम्मीदवारों को पूरी तरह से अप्रासंगिक कर दिया गया. वोट मोदी के नाम पर मांगे गए. ऐसा भी हुआ कि मोदी ने रैलियों में उम्मीदवारों के नाम तक नहीं लिए.
बड़ी फौज खड़ी की
पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने एक तरह का नैनो मैनेजमेंट सिस्टम बनाया. सामाजिक समीकरण के लिहाज से हर बूथ पर 20-20 सदस्य (1.8 करोड़) जोड़े यानी 2 करोड़ 60 लाख कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी की गई. वहीं बूथों पर 90 लाख सक्रिय कार्यकर्ता थे. ये फौज छह महीने तक सक्रिय रही.
लाभार्थियों से संपर्क
केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के 24.81 करोड़ लाभार्थियों से संपर्क के लिए देशभर में 161 कॉल सेंटर बनाए गए. जिनमें 15682 कॉलर जोड़े गए, जो पार्टी से जुड़े हुए थे.
क्या रही बड़ी बातें
भाजपा की जीत के साथ ही इस बार की बातें ये थीं कि पहली बार 76 महिलाएं जीतकर संसद पहुंचीं. उत्तर प्रदेश और बंगाल समेत 5 राज्य जहां नए वोटर्स थे, वहां भाजपा ने भारी मत हासिल किए. मुस्लिमों वाली 96 सीटों में से भाजपा ने 46 जीतीं. अनुसूचित जाति के लिए 84 सीटों में से भाजपा को 45 मिलीं। वहीं अनुसूचित जनजाति की 37 में 31 सीट मिलीं.