राम मंदिर मामले की सुनवाई फिर टली, एक जज़ के छुट्टी पर होने से 29 जनवरी को नहीं हो पाएगी सुनवाई..

मंगलवार यानी 29 जनवरी को होने वाले अयोध्या मामले की सुनवाई टल गई है. सुप्रीम कोर्ट में जिन पांच जजों की बेंच को इस मामले की सुनवाई करनी थी, उसके एक सदस्य जस्टिस एस ए बोबडे उस दिन उपलब्ध नहीं है. ऐसे में किसी और तारीख को अब यह मामला लगेगा. शुक्रवार, 25 जनवरी को 5 जजों की बेंच के बारे में नोटिस आया था. उस नोटिस के मुताबिक बेंच में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के साथ जस्टिस एस ए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नज़ीर को होना था. इस बेंच में 2 सदस्य, जस्टिस भूषण और नज़ीर नए थे. जस्टिस बोबडे पिछली बार बैठी 5 जजों की बेंच में भी थे.

शुक्रवार को जस्टिस बोबडे छुट्टी पर थे. सोमवार को भी उनके उपलब्ध न होने के चलते उनके सामने लगे मामले टल गए हैं. ऐसा लगता है कि या तो शुक्रवार को अयोध्या मामले की सुनवाई का नोटिस जारी करते वक्त इस बात पर गौर नहीं किया गया कि मंगलवार को जस्टिस बोबडे उपलब्ध नहीं हैं, या फिर उन्होंने किसी वजह से अपनी छुट्टी मंगलवार तक बढ़ाई है. अब इस बात की जानकारी होने के बाद 29 जनवरी को संविधान पीठ के न बैठने की सूचना डाली गई है.

किसी भी जज के उपलब्ध न होने पर सुनवाई टल जाना कोई असामान्य घटना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में अक्सर ऐसा होता है. चूंकि ऐसा अयोध्या मामले में हो रहा है, इसलिए ये चर्चा का विषय बन गया है. अगर, संविधान पीठ के सभी जजों के बुधवार या गुरुवार को उपलब्ध होने की जानकारी रजिस्ट्री को मिल जाती है, तो इसी हफ्ते अयोध्या मामला सुनवाई के लिए लग सकता है. यहां सभी जजों के उपलब्ध होने का मतलब ये है कि जज कोर्ट में उपस्थित भी हों और पहले से तय किसी और केस में व्यस्त न हों.

अगर ऐसा इस हफ्ते नहीं हो पाता है तो अगले हफ्ते सुनवाई की उम्मीद है. अब जिस भी दिन बेंच बैठेगी, वो आगे होने वाली विस्तृत सुनवाई की रूपरेखा तय करेगी. फिलहाल दस्तावेजों के अनुवाद का मसला फंसा हुआ है. पिछ्ली सुनवाई में कोर्ट ने रजिस्ट्री से कहा था कि वो कागज़ात को देख कर बताए कि वो कोर्ट में रखे जाने की स्थिति में हैं या नहीं. अगर रजिस्ट्री कोर्ट को ये बताता है कि दस्तावेजों के अनुवाद का काम पूरा नहीं हुआ है, तो सुनवाई एक बार फिर टल सकती है.

बता दें कि इस मामले में 10 जनवरी को भी सुनवाई होनी थी, लेकिन सुनवाई करने बैठी 5 जजों की बेंच में जस्टिस यु यु ललित की मौजूदगी पर मुस्लिम पक्ष के वकील ने एतराज़ जताया था. जिसके चलते जस्टिस ललित ने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया था.

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