नई दिल्ली: शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद को लेकर दायर अपीलों पर सुनवाई 10 जनवरी के लिए टाल दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले के लिए नई बेंच का गठन किया जाएगा. 3 जजों की यह नई बेंच तय करेगी कि अयोध्या विवाद की रोजाना सुनवाई हो या नहीं. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई इस नई बेंच का गठन करेंगे. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एक वकील की ओर से दायर की गई उस जनहित याचिका को भी खारिज कर दिया है, जिसमें अयोध्या विवाद की रोजाना और जल्द सुनवाई की मांग की गई थी. अभी यह मामला प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध था. इस पीठ द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई के लिए तीन सदस्यीय न्यायाधीशों की पीठ गठित किए जाने की उम्मीद है.
हाईकोर्ट ने इस विवाद में दायर चार दीवानी वाद पर अपने फैसले में 2.77 एकड़ भूमि का सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच समान रूप से बंटवारा करने का आदेश दिया था. शीर्ष अदालत ने पिछले साल 29 अक्टूबर को कहा था कि यह मामला जनवरी के प्रथम सप्ताह में उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध होगा जो इसकी सुनवाई का कार्यक्रम निर्धारित करेगी.
बाद में अखिल भारत हिन्दू महासभा ने एक अर्जी दायर कर सुनवाई की तारीख पहले करने का अनुरोध किया था परंतु न्यायालय ने ऐसा करने से इंकार कर दिया था. न्यायालय ने कहा था कि 29 अक्टूबर को ही इस मामले की सुनवाई के बारे में आदेश पारित किया जा चुका है. हिन्दू महासभा इस मामले में मूल वादकारियों में से एक एम सिद्दीक के वारिसों द्वारा दायर अपील में एक प्रतिवादी है.
इससे पहले, 27 सितंबर, 2018 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत से 1994 के एक फैसले में की गई टिप्पणी पांच न्यायाधीशों की पीठ के पास नए सिरे से विचार के लिए भेजने से इंकार कर दिया था. इस फैसले में टिप्पणी की गई थी कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है. अयोध्या प्रकरण की सुनवाई के दौरान एक अपीलकर्ता के वकील ने 1994 के फैसले में की गई इस टिप्पणी के मुद्दे को उठाया था. अनेक हिन्दु संगठन विवादित स्थल पर राम मंदिर का यथाशीघ्र निर्माण करने के लिये अध्यादेश लाने की मांग कर रहे हैं.