गुवाहाटी : पूर्वोत्तर राज्य असम के लिए आज का दिन बेहद अहम है। शनिवार को यहां राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का प्रकाशन होगा। इस अंतिम सूची को लेकर तमाम अटकलें लगाए जाने के मद्देनजर प्रशासन पूरी तरह सतर्क है। इस सूची से जिन लोगों का नाम नहीं होगा उनके लिए नागरिकता का संकट खड़ा हो जाएगा।
एनआरसी सूची पर राज्य के लोगों को कई तरह की आशंकाएं सता रही हैं। सबसे बड़ा सवाल है कि अगर सूची में उनका नाम नहीं हुआ तो उनके साथ क्या होगा? क्या उन्हें विदेशी माना जाएगा। असम में अंतिम एनआरसी का प्रकाशन शनिवार (31 अगस्त) को किया जाएगा। असम एकमात्र राज्य है जहां 1951 के बाद सूची में संशोधन किया जा रहा है।
दो जिलों से शुरुआत : असम में अवैध प्रवासियों को राज्य से हटाने के लिए 2010 में एनआरसी को अपडेट करने की शुरुआत बारपेटा और कामरूप जिले से शुरू हुई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने 2014 में राज्य को एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया। 2015 में शीर्ष अदालत की निगरानी में इसका काम फिर शुरू हुआ।
असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने शुक्रवार को कहा कि शनिवार को प्रकाशित होने जा रही अंतिम राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) से जो लोग छूट गये हैं उनकी चिंताओं पर राज्य सरकार ध्यान देगी और सुनिश्चित करेगी कि किसी का ‘अनावश्यक उत्पीड़न’ नहीं हो। मुख्यमंत्री ने यहां एक बयान में कहा कि जब तक अपीलकर्ता की याचिका विदेशी न्यायाधिकरण (एफटी) में विचाराधीन है तब तक उन्हें विदेशी नहीं माना जा सकता। इसलिए उन्होंने राज्य में बराक, ब्रह्मपुत्र, पर्वतीय तथा मैदानी क्षेत्रों के लोगों से अपील की कि अमन चैन बनाये रखें और परिपक्व समाज की मिसाल पेश करें।
सोनोवाल ने यह भरोसा भी दिलाया कि जिन लोगों के नाम एनआरसी में शामिल नहीं किये गये हैं, उन्हें अपील दाखिल करने का मौका मिलेगा और केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार विदेशी न्यायाधिकरण (एफटी) में उनका पक्ष सुना जाएगा। उन्होंने कहा, ”एफटी में अपील दाखिल करने की समयावधि 60 दिन से बढ़ाकर 120 दिन करने से सूची से छूट गये सभी लोगों को एक समान अवसर मिलेगा।” मुख्यमंत्री ने कहा, ”किसी का अनावश्यक उत्पीड़न नहीं किया जाएगा।” उन्होंने कहा कि एनआरसी हजारों लोगों के अथक प्रयासों का नतीजा है और असम की जनता के बिना शर्त समर्थन के कारण यह संभव हो पाया है।
असम के पुलिस प्रमुख ने कहा है कि पुलिस, सामुदायिक पुलिस प्रणाली का नवोन्मेषी मॉडल अपनाकर राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) की अद्यतन प्रक्रिया के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने की चुनौती से प्रभावी तरीके से निपट पायी है। पुलिस महानिदेशक कुलाधर सैकिया ने शुक्रवार को पीटीआई भाषा से कहा कि ”नागरिक समितियों का उपयोग पुलिस ने यह सुनिश्चित करने के लिए किया है कि एनआरसी सूची को तैयार करने के दौरान शांति बनी रहे। ये समितियां करीब 23 साल पहले राज्यभर में विभिन्न थाना क्षेत्रों में बनायी गयी थीं।”
समितियों का गठन सैकिया के दिमाग की उपज है जब वह 1996 में गुवाहाटी पुलिस के अगुवा थे। पुलिस महानिदेशक ने कहा, ”राज्य में एनआरसी अद्यतन का विशाल काम पिछले कुछ समय से चल रहा है और पुलिस नागरिक समितियों की मदद से भयंकर चुनौतियों के आलोक में कानून व्यवस्था प्रभावी तरीके से बनाये रखने में कामयाब रही है।” उन्होंने कहा कि इस अहम चरण में कानून व्यवस्था की स्थिति से निपटने की व्यापक प्रशंसा हुई है और दिसंबर, 2018 में गुजरात के केवडिया में आयोजित हुए अखिल भारतीय पुलिस महानिदेशक एवं पुलिस महानिरीक्षक सम्मेलन में भी यह सघन चर्चा का एक विषय था।
उन्होंने कहा कि ऐसी समितियों के गठन का उद्देश्य ज्यादा बेहतर तरीके से कानून व्यवस्था बनाए रखने में आम लोगों को भाग लेने के लिए एक साझा मंच प्रदान करना है। सैकिया ने कहा कि नागरिक समितियों के सदस्यों ने लोगों के साथ रोजाना संवाद के दौरान उपयोगी सूचनाएं जुटायीं और एनआरसी के अद्यतन से जुड़ी प्रासंगिक सूचनाएं पुलिस तक पहुंचायीं जिससे उसे बहुत मदद मिली। पुलिस ने यह पता चलने के बाद कि आम लोग एनआरसी प्रक्रिया के बारे में क्या सोच रहे है, उसके बारे में उनका भय दूर करने के लिए परामर्श सत्र आयोजित किया।