हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 का संघर्ष इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच जोर आजमाइश से शुरू होगा और लड़ाई भी आर-पार की है। पिछले विधानसभा चुनाव में बहुमत की सरकार बनाने वाली भाजपा इस बार 75 प्लस का फार्मूला लेकर मैदान में है।
रोहतक की चुनावी रैली से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आशीर्वाद लेकर चुनावी
रण में उतरे मुख्यमंत्री मनोहर लाल यह मान कर चल रहे हैं कि भाजपा इस बार सारे
रिकार्ड तोड़ कर 75 से अधिक सीटें ला कर हरियाणा में एक बार फिर से दबदबा कायम
करेगी।
भ्रष्टाचार और नौकरियों में बंदरबाट का मुद्दा भुना कर चुनाव में विजय पताका
फहराना चाह रही भाजपा जनता के बीच जाकर भी यही बात कह रही है। सीएम मनोहर लाल जीत
के लिए यह आधार बना रहे हैं कि पर्ची-खर्ची की सरकार को अलविदा कह कर इस बार 75 सीटों से अधिक लाकर दिखाना
है।
ऐसे में यदि भाजपा 75 के आास-पास भी रहती है तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल हरियाणा की
जनता के बीच अपनी बड़ी साख बनाने में कामयाब होंगे। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी और
गृह मंत्री अमित शाह के सामने भी उनकी साख बढ़ेगी।
हुड्डा के सामने जीतने की चुनौती
उधर, चुनावी समर में देर से चौधर मिलने के बाद
कूदे पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सामने हरियाणा जीतने की चुनौती है। कभी
विरोधी रही कुमारी सैलजा के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रहे हुड्डा का मानना है
कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मुद्दे अलग-अलग होते हैं। लोकसभा चुनाव में
पिता-पुत्र दोनों की सीटें जाने के बाद हुड्डा के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल
बन गया है।
पड़ोसी राज्य
पंजाब में कांग्रेस सरकार होने के कारण भी हुड्डा के कंधों पर कांग्रेस की जितवाने
की जिम्मेदारी बढ़ गई है। पांच साल में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. अशोक तंवर के
खिलाफ मोर्चा खोले रहे हुड्डा खेमे की बात मान कर अंतत: आलाकमान ने चुनाव की कमान
तो उनके हाथ में दे दी है,
लेकिन देरी से
मिली कमान के दम पर हुड्डा कितने सफल होंगे, यह प्रदेश की जनता बताएगी।
पिछले विधानसभा
चुनाव में जाटलैंड की सीटों के सहारे विधानसभा में पहुंचने वाले हुड्डा इस समय
नेता विपक्ष बन चुके हैं,
लेकिन इस बार
चुनाव की वैतरणी पार करनी आसान नहीं है। जाटलैंड में भी भाजपा की सेंध लगाने की
तैयारी पूरी है।
इस बार चाचा-भतीजे की प्रतिष्ठा से जुड़ा है चुनाव
चाचा-भतीजे की पार्टियां भी चुनाव में पूरी ताकत के साथ उतरेगी। वजह साफ है चाचा-भतीजा की पार्टियों में भी इस बार अस्तित्व की जंग होनी है। इंडियन नेशनल लोकदल की कमान अभय चौटाला के कंधों पर है। अभी अभय चौटाला सदन में विपक्ष के नेता थे, लेकिन यह पद भी उनसे जाता रहा है।
परिवार में अंतर्कलह ही इसका कारण बनी। अब जेजेपी की कमान दुष्यंत के हाथ में हैं। दुष्यंत चौटाला को भी परिवार से अलग होने के बाद इस चुनाव में अपना दमखम दिखाना होगा। उनकी भविष्य की राजनीति भी इसी पर निर्भर करेगी।
बसपा ने किया 90 सीटों पर लड़ने का ऐलान
इस बार बहुजन समाज पार्टी भी प्रदेश की 90 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर रही है। सूबे में गठबंधन की राजनीति करने वाली बसपा इस बार अकेली है। सभी दलों से धीरे-धीरे बसपा का मोहभंग हो चुका है। जिसमें हजकां, इनेलो, जेजेपी, लोसुपा जैसे दल शामिल हैं। हाथी चुनाव में किसी का साथी नहीं बन पा रहा है। पार्टी का मानना है कि उनका हरियाणा में वोट बैंक है। ऐसे में चुनाव से पहले कोई समीकरण बन जाए तो कहना मुश्किल है।
दिल्ली के काम के भरोसे आप
हरियाणा में आम आदमी पार्टी लंबे समय से जगह बनाने के लिए सक्रिय है। हालांकि पार्टी को अभी तक मौका नहीं मिला है, लेकिन राज्य सभा सांसद सुशील गुप्ता और प्रदेश अध्यक्ष नवीन जयहिंद के माध्यम से पार्टी संघर्ष में जुटी है। कई जगह के प्रत्याशी भी पार्टी ने फाइनल कर दिए हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी अब दिल्ली में किए गए विकास कार्यो को लेकर जनता के बीच जाएगी।