दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में आज नागरिकता संशोधन कानून (CAA) से जुड़ी 143 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने सीएए का मामला 5 जजों की बैंच को सौंपने का फैसला लिया है। इसके साथ ही केंद्र को 4 हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वह फिलहाल सीएए पर रोक नहीं लगा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक केंद्र की दलीलें न सुन ली जाएं, तब तक इस पर कोई फैसला नहीं लिया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि 99 फीसदी याचिकाएं मिलने के बाद ही इस मामले पर सुनवाई की जा सकती है।
आज सुनवाई के दौरान वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि सीएए पर 2 महीने की रोक लगाई जाए। वहीं अभिषेक मनु सिंघवी से कोर्ट से यह मामला संवैधानिक पीठ को भेजने की मांग की। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि असम की याचिकाओं पर दो हफ्ते में सुनवाई की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि असम और त्रिपुरा की याचिकाओं पर सुनवाई एक साथ होगी। नागरिकता बिल के विरोध और समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में कई व्यक्तियों और कई संस्थानओं ने याचिका दायर की है। तीन जजों की बेंच इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। शाहीन बाग में महिनों से बंद पड़े रास्ते पर भी आज सुनवाई हो सकती है।
नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देने और समर्थन करने वाली कुल 143 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। एक याचिका केंद्र सरकार की भी है जिसमें गुजारिश की गई है कि देश के सभी मामलों की सुनवाई एक साथ सुप्रीम कोर्ट में की जाए। याचिकाओं पर सीजेआई एस ए बोबड़े, जस्टिस अब्दुल नज़ीर और संजीव खन्ना की बेंच सुनवाई कर रही है। इन याचिकाओं में कुछ ऐसी भी हैं जिन्हें नागरिकता बिल के विरोध में हिंसा के दौरान दाखिल किया गया था, तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन याचिकाओं पर सुनवाई तभी होगी जब देश के अलग-अलग हिस्सों में हिंसक घटनाएं बंद हों। फिलहाल प्रदर्शन तो हो रहे हैं लेकिन हिंसा नहीं हो रही है, लिहाजा 143 याचिकाओं पर आज एक साथ सुनवाई होगी।
नागरिकता कानून के खिलाफ केरल सरकार, कांग्रेस नेता जयराम रमेश, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी, आरजेडी नेता मनोज झा, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और जमीयत उलेमा-ए-हिंद समेत लगभग 143 याचिकाएं दाखिल की गई हैं। ज्यादातर याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये कानून भारत के पड़ोसी देशों से हिंदू, बौद्ध, ईसाई, पारसी, सिख और जैन समुदाय के सताए हुए लोगों को नागरिकता देने की बात करता है लेकिन इस कानून में जानबूझकर मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस तरह का भेदभाव करने की भारत का संविधान इजाजत नहीं देता। अब इन याचिकाओं के जरिए विरोधियों की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट तुरंत इस कानून के अमल पर रोक लगा दे। कुछ याचिकाकर्ताओं ने नागरिकता के लिए कागज मांगने पर भी आपत्ति जताई है।
संशोधित कानून के अनुसार धार्मिक प्रताड़ना के चलते 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा और उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने गुरुवार की रात नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को स्वीकृति प्रदान कर दी थी जिससे यह कानून बन गया था।