दिल्ली: संकटग्रस्त यस बैंक (YES BANK) की मदद के लिए स्टेट बैंक आगे आया है. स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने शनिवार को प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि यस बैंक को संकट से निकालने के लिए 20 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है. स्टेट बैंक फिलहाल इसमें 2450 करोड़ रुपये निवेश करेगा. इसके साथ ही 49 फीसद शेयर भी खरीद सकता है. एसबीआई चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा कि यस बैंक की री-स्ट्रक्चरिंग का ड्राफ्ट प्लान तैयार है और वह पब्लिक डोमेन में है. हमारी निवेश और लीगल टीम उस पर काम कर रही है. आरबीआई को सोमवार को वह रिपोर्ट सौंपी जाएगी. कई निवेशकों ने निवेश की इच्छा जताई है. स्कीम को देखकर उन्होंने हमसे संपर्क किया है. यदि कोई भी 5 प्रतिशत से ऊपर का निवेश करना चाहता है तो उसे रिजर्व बैंक के मानकों का अनुपालन करना होगा.
ड्राफ्ट स्कीम के मुताबिक हम यस बैंक में 49 प्रतिशत निवेश कर सकते हैं. इस संबंध में 3 वर्षों के भीतर 26 प्रतिशत का निवेश बाध्यकारी है. जहां तक यस बैंक के जमाकर्ताओं की बात है तो इस तरह के हालात में असुविधा होना लाजिमी है लेकिन हम ग्राहकों को आश्वस्त करना चाहते हैं कि उनका पैसा बैंक में पूरी तरह सुरक्षित है.
इससे पहले आरबीआई ने गुरुवार को यस बैंक के बोर्ड का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था. उसके बाद निजी ऋणदाता यस बैंक के शेयर मूल्य में शुक्रवार को शुरुआती कारोबार के दौरान लगभग तीन-चौथाई गिरावट दर्ज की गई. सुबह 11.37 बजे, यस बैंक के शेयर 72 प्रतिशत से अधिक गिरकर 10.20 रुपये प्रति शेयर पर आ गए. एसबीआई बोर्ड ने सबसे बड़े ऋणदाता को पूंजी-विपन्न यस बैंक में निवेश करने को ‘सैद्धांतिक’ मंजूरी दी थी. केंद्रीय बैंक ने भी निजी ऋणदाता को तीन अप्रैल, 2020 तक की मोहलत दी है. प्रति जमाकर्ता बैंक से केवल 50 हजार रुपये की निकासी कर सकता है.
वित्त मंत्री ने ग्राहकों को दिलाया भरोसा
इससे पहले शुक्रवार को वित्त मंत्री वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने यस बैंक (Yes Bank) के ग्राहकों को भरोसा दिलाते हुए कहा कि किसी भी ग्राहक का पैसा नहीं डूबेगा. वित्त मंत्री ने ये भी कहा कि SBI यस बैंक में निवेश कर रहा है और हर एक ग्राहक के हित का सम्मान होगा, उनको नुकसान नहीं होने देंगे. यस बैंक में काम करने वाले कर्मचारियों की अगले एक 1 साल तक की सैलरी और नौकरी पर कोई असर नहीं होगा.
बैंक की हालत ऐसी क्यों हुई? इस पर निर्मला सीतारमण ने बताया कि यह कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मुद्दा है. लोन देने में सावधानी नहीं रखी गई. रिस्की लोन दिए गए, इनसाइडर ट्रेडिंग हुई. जब सीबीआई जांच हुई तब सच सामने आया. इसलिए आरबीआई 2018 से ही बैंक पर फाइन लगाना, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर बदलना, नया सीईओ लाना जैसे कदम उठा रहा था लेकिन इस जनवरी में तय हो गया था कि बड़ा कदम उठाना पड़ेगा.’