फरीदाबाद: देश में कोरोना वायरस के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, कोरोना संक्रमित मामलों का आंकड़ा बढ़कर 70 हज़ार के पार हो गया है। देश की करीब 70 फीसदी आबादी घरो की चार दीवारी में बंद पड़ी है। लॉकडाउन का तीसरा भाग जारी है व्यापार ठप्प हो चुके है, गरीब सड़को पर है और मिडिल क्लास की जेबें केवल कोरे कागजो से भरी है। अर्थव्यवस्था पानी मांग रही है। प्राइवेट सेक्टर का बाज़ार सुन्न पड़ा है।
देशभर में त्रासदी का माहौल बना हुआ है, लेकिन प्राइवेट स्कूलों के व्यापार में कोई कमी नहीं आई है। फीस वसूली के नाम पर स्कूलों ने online class शुरू की हुई है। जिसमे स्कूल अपने शिक्षकों से नौनिहालों से लेकर बड़े बच्चो तक मोबाइल या कंप्यूटर के सहारे पढ़ाने को कहा है। क्लास का समय 20 मिनट्स से लेकर दो घंटे तक भी होता है। इस दौरान जिन नौनिहालों को फ़ोन के सही मायने भी नहीं पता उन्हें भी मोबाइल के सहारे बैज्ञानिक बनाने की होड़ लगी है।
हद्द तो तब हो जाती है जब छोटे-छोटे बच्चो की संगीत और खेल की कक्षा भी ऑनलाइन ली जाती है। यह बात समझ से परे है कि संगीत की क्लास में बच्चो को बिना संगीत के डांस करने को कहा जाता है। यकीन मानिये आपका बच्चा उस समय केवल कठपुतली नज़र आएगा। अब बच्चा भी परेशान है वह किस बात पर डांस कर रहा है लेकिन मोबाइल के उस पार बैठे बड़े आक़ा का फरमान है तो मानना तो पड़ेगा। अब चाहे उसे कितना भी नचा लो वह नाचता ही रहेगा।
30 मिनट्स की ऑनलाइन क्लास में आधा वख़्त तो गूगल मईया, ज़ूम भैया या माइक्रोसॉफ्ट अंकल आदि को मनाने में लग जाता है कि सही से क्लास में साथ दें। लेकिन गूगल, ज़ूम या माइक्रोसॉफ्ट अंकल कहाँ मानने वाले है. भाई! स्कूल के पद चिन्हो पर जो चल रहे है। कभी तो वीडियो गायब कर देते है तो कभी उन्हें आवाज़ पसंद नहीं आती है। कभी उनका तालमेल इंटरनेट चचा से नहीं मिलता। बची-कुची कसर क्लास को mute-unmute करने में निकल जाती है। लो भैया हो गयी क्लास पूरी। मैडम जी ने भी क्लास का स्क्रीन शॉट्स ले लिया और भेज दिया अपने बॉस को।
भैया स्कूल ने इतनी मेहनत का काम किया है तो मेहनताना भी बनता है अब बच्चे को क्लास समझ आई या ना आई हो। अब आपका बच्चा ऑनक्लास के दौरान ऊब रहा हो या परेशान हो रहा हो। उससे स्कूल को क्या मतलब। वह तो गीता में लिखे उस श्लोक पर काम कर रहे है। जिसमे लिखा है “कर्म किए जा फल की चिंता न कर”। अब स्कूल अपना कर्म निभा दिया आपको ऑनलाइन क्लास का लॉलीपॉप दिया है अब चाहे वह कड़वा हो या खट्टा। क्या जाता है उनकी जेब से!!!
अब भइया (अभिभावक) आपका भी तो फ़र्ज़ बनता है कि जब भी स्कूल ऑनलाइन क्लास के नाम पर आपसे पैसे की मांग करे तो आप भी अंधभक्तो की तरह जयकारे लगाते हुए पैसे उनकी झोली में डाल दें। यही तो स्कूल चाहते है कि आप अंधभक्त बने रहे और हम online class के नाम पर आपके नौनिहालों को भक्ति का पाठ पढ़ाते रहे।