दिल्ली हाईकोर्ट ने शनिवार को केंद्र और दिल्ली सरकार को कोरोना मरीजों के लिए बेड और वेंटिलेटर की संख्या बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। ताकि कोरोना मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें। इससे पहले शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने शुक्रवार को दिल्ली में कोरोना वायरस मरीजों के समुचित उपचार और शवों के साथ गरिमापूर्ण सलूक नहीं होने को लेकर सुनवाई की। बता दें कि, कोर्ट ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया था।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने राज्य सरकार से पूछा है कि दिल्ली में कोरोना जांच में कमी क्यों की गई है। न्यायमूर्ति शाह ने कहा है कि लाशों को अव्यवस्थित तरीके से रखा जा रहा है, आखिर ये हो क्या रहा है? उन्होंने इसके लिए दिल्ली सरकार को फटकार लगाई है।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में शवों की उचित देखभाल नहीं की जा रही है। मरीजों के परिवारों को भी मौतों के बारे में सूचित नहीं किया जा रहा है। कुछ मामलों में, परिवार अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाए हैं।
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में कुछ परेशानियां है। कोरोना जांच घट रही है। पहले 7000 तक जांच की जा रही थी, लेकिन अब सिर्फ 5000 तक जांच की जा रही है। शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार से पूछा कि आपने जांच क्यों घटा दी है।
सरकार ने दी सफाई
सुप्रीम कोर्ट द्वारा सख्त टिप्पणी करने के बाद शुक्रवार को दिल्ली सरकार ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को अत्यंत सम्मान के साथ स्वीकार करते हैं। दिल्ली सरकार सभी के लिए स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने और प्रत्येक कोरोना मरीज के लिए सर्वोत्तम संभव उपचार सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। अगर कोई अंतराल है जो अभी भी बना हुआ है और हमारे ध्यान में लाया जाता है, तो हम उस पर तुरंत कार्रवाई करेंगे।
सरकार ने आगे कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) एक स्वायत्त निकाय है और उनकी टीम ने गुरुवार को एनएनजेपी अस्पताल का दौरा किया। उन्होंने अस्पताल में सुविधाओं की जांच के बाद अपनी संतुष्टि व्यक्त की। हम इस बारे में सुप्रीम कोर्ट को भी जानकारी देंगे।
सरकार ने आगे बताया कि एलएनजेपी अस्पताल से अब तक 2100 से अधिक मरीज स्वस्थ होकर अपने घरों को लौट चुके हैं।