पुतिन का दबदबा कायम, 2036 तक बने रहेंगे राष्ट्रपति, संविधान संशोधन को मिली मंजूरी

रूस में संविधान संशोधन के लिए कराया गया जनमत संग्रह राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए बड़ी खुशखबरी लेकर आया है। दरअसल, जनता ने संविधान संशोधन के लिए कराए गए जनमत संग्रह में पुतिन की दावेदारी का समर्थन किया है। इस तरह व्लादिमीर पुतिन अब 2036 तक सत्ता में काबिज रह सकेंगे।

हाल ही में, रूस के राष्ट्रपति पुतिन को 2036 तक पद पर बने रहने का प्रावधान करने वाले संविधान संशोधन कानून पर जनता की राय मांगी गई थी। इस मतदान में जनता ने संशोधन को मंजूरी दी। कोरोना संकट और विरोध के बीच यह जनमत संग्रह सात दिनों तक चला और बुधवार को जाकर समाप्त हुआ।

2036 तक राष्ट्रपति बने रहेंगे पुतिन
संविधान संशोधन कानून के जरिए पुतिन का वर्तमान कार्यकाल समाप्त होने के बाद उन्हें छह-छह साल के दो अतिरिक्त कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति पद मिलेगा। कोरोना वायरस महामारी की वजह से मतदान प्रक्रिया काफी धीमी रही। चुनाव बूथ पर लोगों की भीड़ ज्यादा नहीं रही। इसलिए मतदान को पूरा होने में एक सप्ताह का वक्त लगा।

बता दें कि, संविधान में किए गए संशोधनों के लिए जनता का विश्वास जीतने के लिए पुतिन ने बड़े पैमाने पर अभियान चलाया था। पुतिन ने कहा था कि हम उस देश के लिए मतदान कर रहे हैं, जिसके लिए हम काम करते हैं और जिसे हम अपने बच्चों और पोते-पोतियों को सौंपना चाहते हैं

मतदान को लेकर उठे सवाल
राजनीतिक विश्लेषक और क्रेमलिन के पूर्व राजनीतिक सलाहकार ग्लेब पाव्लोव्स्की ने कहा कि कोरोना संक्रमण के खतरे को दरकिनार करते हुए राष्ट्रपति ने यह मतदान करवाया है। इससे उनकी कमजोरी का पता चलता है। उन्होंने कहा कि पुतिन को अपने करीबी नेताओं का विश्वास हासिल नहीं है और वह भविष्य को लेकर चिंतित हैं। यह मतदान इसलिए करवाया गया ताकि इस बात का पता लगाया जा सके कि जनता उन्हें पूरा समर्थन देती है या नहीं। वहीं, विपक्ष ने मतदान को लेकर गड़बड़ी का आरोप लगाया है। विपक्ष का आरोप है कि पुतिन आजीवन राष्ट्रपति बने रहना चाहते हैं।

पुतिन पर लगे कई आरोप
पुतिन रूस की सत्ता में साल 2000 में आए थे। हाल ही में, एक निजी सर्वे एजेंसी लेवाडा के मुताबिक अभी भी उनकी लोकप्रियता रेटिंग 60 फीसदी बनी हुई है। चुनाव निगरानी समूह गोलोस ने आरोप लगाया है कि मतदान की ऑनलाइन प्रक्रिया संवैधानिक मानकों को पूरा नहीं करती। मतदान के लिए दबाव, मतपत्रों में गड़बड़ी, अधिकार के दुरुपयोग और अवैध प्रचार के मामले भी सामने आए हैं।

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