कोरोना की भेंट चढ़ सकता है संसद का शीतकालीन सत्र, सरकार ने अब तक नहीं लिया फैसला

दिल्ली: संसद का शीतकालीन सत्र कोरोना महामारी की भेंट चढ़ सकता है. सरकार साल के आखिरी सत्र पर अब तक फैसला नहीं ले पाई है. संसद का शीतकालीन सत्र आमतौर पर नवंबर के तीसरे हफ्ते से शुरू होता है. लेकिन दिल्ली में जिस रफ्तार से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं उससे लगता है कि सरकार सत्र को नहीं बुलाएगी और अगले साल जनवरी के अंत में सीधे बजट सत्र कराएगी.

इस साल संसद के दो सत्र हुए हैं. लॉकडाउन और कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए मार्च में बजट सत्र को समय से पहले ही समाप्त करना पड़ा था. वहीं, मानसून सत्र को भी तय समय से पहले समाप्त करने का फैसला लिया गया था.

आमतौर पर संसद का शीतकालीन सत्र तीन सप्ताह की अवधि का होता है. संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति सत्र के शुरू होने की तारीख और अवधि को तय करती है. इसके बाद उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. लेकिन समिति की अब तक कोई बैठक नहीं हुई है और सरकार के सूत्रों ने भी संकेत दिया है कि निकट भविष्य में कोई बैठक निर्धारित नहीं है.

एक मंत्री ने कहा कि बहुत कुछ महामारी की स्थिति पर निर्भर करेगा. यदि शीतकालीन सत्र नहीं होता है, तो सरकार बजट सत्र के लिए जा सकती है, जो नए साल का पहला सत्र होगा.

चूंकि नियम कहता है कि 6 महीन के अंदर सत्र को बुलाया जाना जरूरी होता है. ऐसे में सरकार किसी दबाव में नहीं है. हालांकि, बजट सत्र महत्वपूर्ण है, क्योंकि 31 मार्च से पहले केंद्रीय बजट पारित किया जाना है.

शीतकालीन सत्र के रद्द होने के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक महामारी होगी. इससे पहले मॉनसून सत्र के दौरान दोनों सदनों के 40 सांसद कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे.

मॉनसून सत्र की शुरुआत 14 सितंबर से हुई थी. इसे 1 अक्टूबर तक चलना था, लेकिन कुछ सांसदों के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद इसे 8 दिन पहले समाप्त करना पड़ा था. यदि शीतकालीन सत्र रद्द होता तो ये ऐसा चौथी बार होगा. इससे पहले 1975, 1979 और 1984 में भी शीतकालीन सत्र नहीं हुआ था. वर्ष 2020 के नाम सबसे कम समय तक सत्र चलने का रिकॉर्ड होगा.

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