UP Panchayat Election 2021: पंचायत चुनाव को लेकर यूपी की योगी सरकार के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. समय से पंचायत चुनाव कराना सरकार के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा है. हाईकोर्ट ने वैसे तो सरकार को कहा है कि 25 मई तक चुनाव करा लें लेकिन आरक्षण के नियमों में बदलाव के आदेश के कारण समस्या गहरा गई है.
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि पंचायत चुनाव में आरक्षण के लिए आधार वर्ष 1995 को ना मानकर 2015 को माना जाए. सरकार आरक्षण कर चुकी थी. ऐसे में अब दोबारा से आरक्षण की प्रक्रिया पूरी करने में फिर से 1 महीने का समय लगेगा. जाहिर है हाईकोर्ट द्वारा दिए गए 25 मई की समय सीमा के भीतर पंचायत चुनाव संभव नहीं दिखाई दे रहा है. तो फिर सवाल उठता है कि राज्य सरकार के पास रास्ता क्या है?
पंचायती राज विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर इसके दो रास्ते बताएं. पहला रास्ता तो यह कि हाईकोर्ट के इस आदेश को हायर बेंच में सरकार चैलेंज करें यानी 2015 को आधार वर्ष मानकर आरक्षण किए जाने के हाईकोर्ट के आदेश को सरकार चुनौती दे और जिन नियमों के तहत आरक्षण किया गया है उसे बरकरार रखने की अपील करें. यदि इस मामले में सरकार को राहत मिल जाती है तब तो उसे बहुत बड़ी राहत मिलेगी लेकिन यदि राहत नहीं मिलती तभी सरकार के पास एक दूसरा रास्ता है. हालांकि इसमें थोड़ी मुश्किलें आएंगी.
सरकार कोर्ट से इस बात की अपील कर सकती है कि पंचायत चुनाव कराने की जो समय सीमा अदालत ने अभी तय की है उसे बढ़ाया जाए. इतने कम समय में सारी प्रक्रियाओं को पूरा करते हुए चुनाव नहीं कराए जा सकते, इस तर्क के आधार पर सरकार हाईकोर्ट से समय सीमा को थोड़ा बढ़ाने की अपील कर सकती है. यदि कोर्ट इससे संतुष्ट हो जाए और सरकार को समय बढ़ाने की इजाजत दे दे तो भी सरकार को बहुत बड़ी राहत मिलेगी.
बता दें कि सरकार यदि जून तक चुनाव करा लें तब भी उसके सामने कोई संवैधानिक संकट नहीं खड़ा होगा. पंचायतों में जिन अफसरों को प्रशासक बनाया गया है उनका 6 महीना जून में पूरा हो रहा है. ऐसे में जून तक यदि सरकार चुनाव कराए तब भी उसके सामने कोई मुश्किल नहीं होगी. अब देखना यह है कि राज्य सरकार की ओर से इस मामले में अगला कदम क्या होता है. बता दें कि पंचायत चुनाव के बीच में ही यूपी बोर्ड की परीक्षाएं भी करानी है. यह भी सरकार के लिए कम चुनौतीपूर्ण नहीं है. बोर्ड परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर उन्हीं लोगों की सेवाएं ली जाती है जो चुनाव में अपनी सेवाएं देते हैं. साथ ही उन्हीं संसाधनों का भी इस्तेमाल होता है जिन संसाधनों के दम पर चुनाव संपन्न कराए जाते हैं.