गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में व्यभिचार कानून को असंवैधानिक करार देते हुए इसे अपराध मानने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि व्यभिचार कानून मनमाना और भेदभावपूर्ण है. यह लैंगिक समानता के खिलाफ है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि ये कानून 157 साल पुराना है, हम टाइम मशीन लगाकार पीछे नहीं जा सकते. हो सकता है जिस वक्त ये कानून बना हो इसकी अहमियत रही हो लेकिन अब वक्त बदल चुका है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा के संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कई देशों में व्यभिचार अब अपराध नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”पति पत्नी का मालिक नहीं है, महिला की गरिमा सबसे ऊपर है. महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है. पत्नी 24 घंटे पति और बच्चों की ज़रूरत का ख्याल रखती है.” कोर्ट ने कहा कि यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमयन्ते तत्र देवता, यानी जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शादी के बाद दोनों पक्ष शादी की मर्यादा को बनाए रखने के लिए बराबर के जिम्मेदार हैं. कोर्ट ने कहा था कि विवाहित महिला अगर अपने पति के अलावा किसी विवाहित पुरुष के साथ यौन संबंध बनाती है तो उसके लिए केवल पुरुष को ही क्यों सजा दी जाए? जबकि इसमें दोनों बराबर के भागीदार हैं.
आपको बता दे कि इस केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये आश्चर्च है कि अगर एक अविवाहित पुरुष किसी विवाहित महिला के साथ यौन संबंध बनाता है तो वो व्याभिचार की श्रेणी में नहीं आता है।
आइये जानते है क्या था यह मामला?
केरल के जोसफ शाइन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर IPC 497 को संविधान के लिहाज से गलत बताया था. याचिकाकर्ता के मुताबिक व्यभिचार के लिए 5 साल तक की सज़ा देने वाला ये कानून समानता के मौलिक अधिकार का हनन करता है. याचिका में कहा गया कि इस कानून के तहत विवाहित महिला से संबंध बनाने वाले विवाहित पुरुष पर मुकदमा चलता है. औरत पर न मुकदमा चलता है, न उसे सजा मिलती है.