महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का कहना है कि गुजरात में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत में महाराष्ट्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है क्योंकि मूल रूप से महाराष्ट्र की विकास परियोजनाओं को चुनाव से पहले गुजरात में ले जाया गया. ठाकरे ने यह बात गुरुवार को कही. पार्टी के मुखपत्र, सामना के संपादकीय में लिखा गया है, “गुजरात में कई ग्लोबल मीट आयोजित की गई और दुनिया के लीडर ने पीएम मोदी की वजह से साबरमती, अहमदाबाद का दौरा किया. गुजरात के लिए महाराष्ट्र जैसे राज्यों से कई बड़ी परियोजनाएं छीन ली गई. इन सभी ने चुनाव में असर दिखाया. सरदार पटेल की मूर्ति भले ही गुजरात में है लेकिन पीएम मोदी गुजरात अस्मिता हैं.”
यह बयान गुजरात के ऐतिहासिक नतीजों पर एक दिलचस्प नजरिया पेश करता है, जिससे इस बात पर बहस छिड़ गई है कि क्या वास्तव में चुनाव जीतने में विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ठाकरे की कड़वाहट को देखकर आश्चर्य नहीं होता, लेकिन सवाल यह है कि क्या वास्तव में विकास, गुजरात मॉडल को परिभाषित करता है, जो अब दूसरे बीजेपी शासित राज्यों के अलावा केंद्र में भी शासन का एक तरीका बन गया है. कहने की जरूरत नहीं है कि गुजरात मॉडल और नरेंद्र मोदी पर्यायवाची हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि देश 2024 के चुनावों के लिए तैयार हो गया है और डेवलपमेंट इकनॉमिक्स के लिहाज से देखें तो हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों से क्या संकेत मिलते हैं? वास्तव में इसके मिश्रित निष्कर्ष हैं.
निष्कर्ष 1
सबसे पहले गुजरात को देखते हैं. बीजेपी की इस प्रचंड जीत को आम आदमी पार्टी के दांव को परिभाषित करने वाले रेवड़ी संस्कृति के खिलाफ वोट के रूप में देखा जा सकता है. आप का तर्क होगा कि 13 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर का मतलब है कि उसके दांव में आगे बढ़ने की क्षमता है. बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी के वादे गुजराती डीएनए और गुजराती अस्मिता के खिलाफ हैं.
निष्कर्ष 2
क्या इसका मतलब यह है कि फ्री बीज की बहस सुलझ गई है? वास्तव में नहीं. हालांकि, मोदी ने आप द्वारा प्रचारित रेवड़ी संस्कृति की तीखी आलोचना की, उन्होंने स्वयं कल्याणकारी अर्थशास्त्र के खाके को गढ़ा और सफलतापूर्वक निष्पादित किया है जिसने उन्हें लगातार वोट दिए हैं. भारत और दुनिया के कोविड की चपेट में आने के लगभग ढाई साल बाद, 80 करोड़ नागरिकों के लिए मुफ्त राशन योजना कायम है. इस चुनाव में भी, बीजेपी ने शौचालय, रसोई गैस, किफायती आवास और सभी के लिए पीने के पानी के वादे के साथ JAM योजना की विशेषता वाली अपनी अनूठी शासन पद्धति के बल पर प्रचार किया. परिणाम स्पष्ट हैं.
याद रखें कि 2013 में मोदी ने यूपीए सरकार द्वारा शुरू की गई मनरेगा योजना की मुखर रूप से आलोचना की थी, लेकिन यह जानते हुए भी कि यह एक पैसे को गटकने वाली योजना है, जिसका कोई ठोस आर्थिक लाभ नहीं है, वह इसे जारी रखे हुए हैं. लेकिन फिर भी वह जिस तरह के चतुर राजनेता हैं, उन्होंने इसमें भी चुनावी फायदा देखा.
निष्कर्ष 3
राज्य के खजाने पर चपत लगाने वाली एक और योजना की बात करें तो हिमाचल का फैसला खराब अर्थशास्त्र को अच्छी राजनीति बनाने की ओर इशारा करता है. पुरानी पेंशन योजना (OPS) को वापस लाने के वादे पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस ने इसे एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाकर जीत हासिल की है. यूपीए दौर के आर्थिक थिंक टैंक के आर्किटेक्ट और योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने पुरानी पेंशन प्रणाली को वापस लाने को सबसे बड़ी रेवड़ियों में से एक बताया है.
गुजरात में भी ओपीएस कांग्रेस और आप का चुनावी वादा था. कांग्रेस पहले ही राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पुरानी पेंशन योजना को वापस ला चुकी है और आप ने कहा है कि वह पंजाब में भी ऐसा ही करेगी. अहलूवालिया की चिंता, राजनीतिक गलियारे में राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए संवेदनशीलता की कमी को दिखाती है, जो कोविड के बाद के आर्थिक सुधार को तेजी से कमजोर बना रहा है.
निष्कर्ष 4
परंपरागत रूप से, भारत दुख के साथ यह स्वीकार करता आया है कि अच्छा अर्थशास्त्र खराब राजनीतिक परिणाम लेकर आता है और खराब अर्थशास्त्र से अच्छे राजनीतिक नतीजे मिलते हैं. 2012 को देखें जब मायावती यूपी चुनाव हार गईं, जबकि इस राज्य ने उस समय राष्ट्रीय औसत जीडीपी से बेहतर प्रदर्शन किया था, उनके शासन के दौरान राज्य को विशाल बुनियादी ढांचे मिले थे. या, यहां तक कि शीला दीक्षित, जिन्होंने 2010 के राष्ट्रमंडल के मद्देनजर दिल्ली की नई कल्पना की थी, लेकिन 2013 में बुरी तरह हार गईं.
हालांकि, गुजरात मॉडल या मोदित्व, गुजरात में एक खुशहाल समीकरण बनाता है. यह समीकरण 2024 के चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. यह नया विजयी संयोजन है, आर्थिक विकास और कल्याणकारी विकास अर्थशास्त्र का एक कलात्मक मिश्रण (अभी के लिए विचारधारा को छोड़कर). एक विकसित भारत बनाने के लिए मुफ्त राशन और बड़े उद्यम का समीकरण सटीक नजर आता है.
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री के इस आरोप में कुछ दम है कि चुनावों ने गुजरात में कुछ बड़ी औद्योगिक परियोजनाओं दिए हैं. याद करें कि जब मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने गुजरात में नैनो कार की फैक्ट्री लगाने के लिए रतन टाटा को फोन करके कॉर्पोरेट भारत को एक बड़ा संदेश दिया था. हालांकि, अनिच्छा से ही सही सामना के संपादकीय में अब उन्हें ‘गौरव पुरुष’ कहा गया है.
निष्कर्ष 5
अर्थशास्त्र से बिजनेस की ओर बढ़ते हुए, मोदित्व में इंडिया इंक के लिए एक मजबूत सबक है. दीर्घकालीन लाभदायक कंपनियों के निर्माण की तलाश में लगे मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के लिए बेजोड़ सहनशक्ति महत्वपूर्ण सीख प्रदान करती है.
अपने संदेश के अनुरूप बने रहने की मोदी की क्षमता के साथ-साथ वह और उनकी पार्टी का स्टैंड, आज के युग में बहुत महत्वपूर्ण है जहां मतदाता और उपभोक्ता समान रूप से ढुलमुलपन से दूर रहते हैं. ब्रांड की पहचान, चाहे वह व्यक्ति की हो या संस्था की, को कुछ निश्चित मूल्यों को प्रतिबिंबित करना चाहिए.
24×7 के इस युग में व्यापार जगत के नेताओं के लिए 24x7x365 दिन सक्रिय रहना महत्वपूर्ण है. सोशल मीडिया ने इसे मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के लिए अनिवार्य बना दिया है. काम में ईमानदारी सबसे जरूरी है. पार्टी का कार्यकर्ता स्वभाव से बेचैन होता है और साधारण कर्मचारी भी. चाहे राजनीति हो या कॉर्पोरेट जगत, लोगों को एक असेट के रूप में स्वीकार करना होगा.
मुनाफे की खोज और एक अच्छा कॉर्पोरेट नागरिक बनने की आवश्यकता एक दूसरे का विरोध नहीं करते. यदि सरकार के प्रमुख के रूप में आप कुछ मेगा हिट (बड़ा कारोबार) के साथ एक कल्याणकारी आर्थिक मॉडल बुन सकते हैं और नेशनल एंटरप्राइज वैल्यू को बढ़ा सकते हैं, तो कॉर्पोरेट लीडर इस मॉडल का अनुकरण कर सकते हैं.