क्या केंद्र सरकार दिल्ली सरकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अध्यादेश ला सकती है?

दिल्ली: दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मिले अधिकार को लेकर केंद्र सरकार में माथा पच्ची शुरू हो गई है. अब मसला यह है कि इस फैसले पर क्या सरकार अध्यादेश ला कर इस फैसले पर रोक लगाएगी या संसद में कानून बनाकर नए रूप में पेश किया जाए. सुप्रीम कोर्ट के 105 पेज के फैसले पर माथा पच्ची दोनों तरफ से शुरु हो चुकी है . दिल्ली सरकार में केंद्र की दखलअंदाजी कम हो जाएगी. अब सारा फैसला दिल्ली सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री ले सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अनुपम मिश्र ने अध्यादेश लाने के मसले पर पुछे जाने वाले सवाल का जवाब टीवी9 को देते हुए कहा कि सरकार जब चाहे अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को नलीफ्लाई कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले हैं जिसमें सरकार ने ऐसा किया है. कुछ साल पहले ही एससीएसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. क्योंकि इस जजमेंट के बाद ही उनके सहयोगी दलों नें हंगामा करना शुरु कर दिथा . बिहार से इनके सहयोगी राम विलास पासवान ने इसका विरोध शुरु किया . उसके बाद काफी दलों ने विरोध करना शुरु कर दिया. उसके बाद केंद्र सरकार ने आर्डिनेंस लाकर उस आदेश को नलिफाई किया था

कानून के जानकारों की माने तो सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बैंच ने सर्विसेज को लेकर अपने जजमेंट में दो महत्वपूर्ण मुद्दों शामिल किया है इसमें एक कंस्टीट्यूशन के बेसिस स्ट्रक्चर की और दूसरी प्रादेशिक सरकारों की अधिकार का. लेकिन केंद्र के पास संविधान की धारा 239AA3(b) में पूरा अधिकार है कि इसपर आर्डिनेस लाकर नलिफाई करे या फिर पार्लियामेंट के जरिए कानून में ससोधन कर नए ला बना दे.

पूरे मामले पर क्या कहते हैं अधिवक्ता
अधिवक्ता अनुपम मिश्र बताते हैं कि शाहबानो केस में जब सुप्रीम कोर्ट ने जजमेंट दिया तब मुस्लमानों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने आर्डिनेंस के जरिए ही नलिफाई किया था. इसलिए सरकार के पास पूरा अधिकार और संविधान में व्यवस्था है कि संशोधन करके संसद से कानून बनाकर कहानी बदल सकती है.

सरकार और केंद्र के बीच खींचतान का खामिया अफसरों को ही भुगतना पड़ता
रिटायर्ड ब्यूक्रेट और पेशे से सर्विस मामले के वकील डीएन सिंह बताते हैं कि सरकार और केंद्र के बीच खींचतान का सबसे अधिक खामिया सरकारी अधिकारियों को ही भुगतना पड़ता है. दिल्ली में तो सालों से ऐसी स्थिति रही है जिसमें गृहमंत्रालय और स्थानीय सरकार के कई फैसले से अधिकारी टारगेट होते रहे हैं. अब फिर सवाल उठता है कि इनका कैडर कंट्रोलिंग बोडी तो एमएचए है.

मसला यह है कि अब है कि केंद्र सरकार अध्यादेश के जरिए इस जजमेंट को नलिफाई कर सकती है या नहीं , तो कुछ फैसले सुप्रीम कोर्ट के रहे हैं जिसमें डबल बैंच के फैसले हैं उनको सरकार ने पटल दिया है. लेकिन अब संवैधानिक बैंच का फैसला है इसमें कई सारे प्वाइंट का भी जीक्र किया गया है. जिससे की संवैधानिक कवरेज मिली है स्टेट की सरकारों को या यू कहिए चुने हुए सरकारों को , ऐसे में केंद्र सरकार संविधान संशोधन कर इस फैसला को लिमिट में कर सकती है.

इसके लिए सरकार के पास संसद के दोनों सदनों दो तिहाई बहुतम चाहिए ताकि पास हो सके और संसद में पास होने के बाद राष्ट्रपति भवन से मुहर लगने के साथ ही नए कानून बन जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को दिल्ली सरकार को सर्विसेज के साथ साथ कई सारे अधिकार दे दिया. अब तक गृहमंत्रालय के जरिए, दिल्ली के एलजी और चीफ सेक्रेटरी यह सारा काम किया करते थे .

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