नई दिल्ली. कर्नाटक में कांग्रेस ने बीजेपी को करारी मात देकर राज्य की सत्ता अपने नाम की है. कांग्रेस को यहां पर 135 सीटें मिली हैं जबकि बीजेपी को सिर्फ 66 पर ही जीत हासिल हुई है. ऐसे में राजनीतिक गलियारों में चर्चा की जा रही है कि क्या यह कांग्रेस का फिर से उदय है और अब कांग्रेस बीजेपी को 2024 में कड़ी टक्कर दे सकती है? अगर विपक्ष की तैयारी पूरी हुई तो कहा जा सकता है कि बीजेपी को अच्छी टक्कर दी जा सकती है.
बात अगर कर्नाटक और हिमाचल में कांग्रेस की जीत की करें तो हाल फिलहाल में हुए चुनावों में दो बड़े राज्यों पर कांग्रेस ने अपना कब्जा जमाया है. लेकिन राज्य के चुनाव से लोकसभा चुनाव को प्रिडिक्ट नहीं किया जा सकता है. इसके पीछे सीधा कारण है राजनीत मुद्दों को पूरी तरह से अलग होना. अगर बात केंद्र सरकार की हो तो मुद्दे पूरी तरह से राज्य के चुनाव से अलग हो जाते हैं. उदाहरण के तौर पर हम ओडिशा को लें तो राज्य की जनता विधानसभा चुनाव में बीजू जनता दल को अपना पूरा समर्थन देती है, लेकिन वहीं बात अगर केंद्र सरकार की हो तो लोकसभा 2019 के चुनावों में बीजेपी ने भी यहां से कुछ सीटों पर कब्जा जमाया था.
ठीक इसी तरह से दक्षिण भारत का हाल भी यही है, वहां पर भी विधानसभा के चुनाव के दौरान जनता का मूड किसी और तरफ जाता है लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को अच्छा खासा वोट शेयर मिलता है. यहां हम वोटर्स के व्यवहार की बात कर रहे हैं. इससे साफ होता है कि राज्य में चुनाव जीतना लोकसभा के लिए आसान रास्ता नहीं बनाता है.
कांग्रेस ने क्यों जीता कर्नाटक का दिल?
अगर कर्नाटक में कांग्रेस की जीत की बात करें तो इसके पीछे कई बड़े कारण है. सबसे पहले तो ध्रुवीकरण की राजनीति को प्रदेश की जनता ने नकारा है. दूसरा कांग्रेस ने यहां पर एक अच्छी लीडरशिप दिखाई है. राहुल गांधी समेत पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने रात दिन प्रचार किया है. पहले से शैली में भी काफी बदलाव हुआ है. स्थानीय नेताओं को बहुत तवज्जो दी गई है. इसके अलावा राज्य में कांग्रेस ने बीजेपी के उलट आम जनता से जुड़े मुद्दों को उठाया है.
इस हार से बीजेपी को भी यह सीख लेना चाहिए की फिलहाल नॉर्थ की पॉलिटिक्स साउथ में नहीं चलेगी. वहां पर विकास के मुद्दों पर ही चुनाव लड़े जाएंगे और आम जनता के हित की बात की जाएगी. दक्षिण भारत के आगामी चुनावों में भी शायद यह स्थिति देखने को मिल सकती है.
विपक्षी एकता पर होगी नजर
बीजेपी के सामने फिलहाल किसी दल को अकेले लड़ना फायदे का सौदा तो नहीं है. कांग्रेस के पास अभी भी कई बड़े नेता हैं और राष्ट्रीय स्तर पर पकड़ है लेकिन सिर्फ इससे बात नहीं बनेगी. अगर विपक्ष में एकता हुई सभी दलों के दिग्गजों ने बीजेपी के खिलाफ एक साथ आगाज करने की सोची तो बीजेपी को भी चुनाव जीतना इतना भी आसान नहीं होगा.
हालांकि विपक्षी दलों में एकता की बात फिलहाल बातों और मुलाकातों तक ही सीमित है. बीजेपी के खिलाफ सभी विपक्षी दल एक साथ आकर चुनाव लड़ना चाहते हैं लेकिन वह अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षा नहीं छोड़ पा रहे हैं. इसमें बिहार के सीएम नीतीश कुमार और महाराष्ट्र के एनसीपी के चीफ शरद पवार काफी एक्टिव हैं और लगातार दूसरे नेताओं से विपक्षी एकता पर बात कर रहे हैं.
कर्नाटक मॉडल हो सकता है कांग्रेस के लिए सक्सेस की
कर्नाटक में कांग्रेस की लीडरशिप की बात की जाए तो कई राजनीतिज्ञों ने कहा कि इसने कई विपक्षी दलों को पीछे छोड़ दिया है. बीजेपी से जीतना हाल-फिलहाल में बहुत मुश्किल माना जा रहा था. लेकिन कांग्रेस ने यहां पर स्थानीय नेताओं को खूब सपोर्ट किया है. प्रदेश में बैक सपोर्ट में रह कर स्थानीय नेताओं को आगे किया है. दूसरी बात है कि कांग्रेस ने आम आदमी के मुद्दे उठाए हैं और उन पर ही अपना फोकस रखा. तीसरा राहुल ने पिछले सभी चुनावों के उलट कर्नाटक में ग्राउंड पर कनेक्ट किया. अगर कांग्रेस इसी मॉडल पर लोकसभा में काम करे तो इससे बीजेपी को कड़ी टक्कर मिल सकती है.