निकाय चुनाव में मिली करारी हार से बसपा सुप्रीमो मायावती काफी चिंतित हैं. आज वह चुनाव हार की समीक्षा करेंगी. इसके लिए बसपा के सभी छोटे-बड़े पदाधिकारी, मंडल और जिलाध्यक्ष के साथ-साथ पार्टी के वरिष्ठ नेता लखनऊ में जमा होंगे. दरअसल, आने वाले एक साल में लोकसभा चुनाव होंगे. उससे पहले मायावती पार्टी के कामकाज की कमजोर नब्ज को टटोलेंगी, ताकि निकाय चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन इसी तरह से न हो.
बता दें कि इस निकाय चुनाव में बसपा को करारी हार मिली है. मेरठ और अलीगढ़ की मेयर सीट भी बसपा के हाथ से निकल गई, जिस पर पिछले चुनाव में बसपा ने कब्जा जमाया था. वहीं पिछले चुनाव में बसपा ने 29 नगर पालिका परिषद अध्यक्ष, 45 नगर पंचायत अध्यक्ष, 62 पार्षद और 218 सभासद की सीटों पर कब्जा जमाया था, लेकिन इस चुनाव में इसकी भी संख्या घर गई. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह रहा कि पार्टी को पिछले चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में 5.49 प्रतिशत कम वोट मिले.
निकाय चुनाव में पार्टी को मिले सिर्फ 8.81 प्रतिशत वोट
2023 नगर निकाय चुनाव में बसपा को सिर्फ 8.81 प्रतिशत ही वोट मिला, जबकि पिछले चुनाव में 14.30 प्रतिशत वोट मिला था. इस बार नगर पालिका अध्यक्ष की सीटें भी घट गईं. सिर्फ 16 सीटों पर पार्टी ने जीत दर्ज की, जबकि पंचायत अध्यक्ष की 37 सीटों पर उसे जीत मिली. इसी वजह से मायावती काफी चिंतित हैं. वह पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर पार्टी के प्रदर्शन को सुधारने पर गहन चर्चा करेंगी.
लगातार गिरता जा रहा बसपा का जनाधार मायावती के लिए चिंता का सबब
साथ ही पार्टी नेताओं से यह भी जानकारी लेंगी कि आखिर कैसे बसपा का जनाधार लगातार गिरता जा रहा है. दरअसल, 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं. निकाय चुनाव को लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था. सपा, बसपा और सत्ताधारी पार्टी बीजेपी ने इसी वजह से निकाय चुनाव में पूरा जोर लगा दिया था. जब चुनाव के परिणाम आए तो सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के लिए तो काफी सुखद रहे, लेकिन बसपा और सपा के लिए निराशाजनक रहा.
बसपा का एक भी मेयर कैंडिटेट नहीं जीता चुनाव
ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी ने जहां मेयर की सभी 17 सीटों पर जीत दर्ज की तो वहीं सपा और बसपा को एक भी सीट नहीं मिली. पिछली बार बसपा ने मेरठ और अलीगढ़ की सीट पर कब्जा जमाया था, लेकिन इस बार वो भी बसपा के हाथ से निकल गई. अब पार्टी के पास एक भी मेयर की सीट नहीं है. बसपा ने 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को मेयर चुनाव में टिकट दिया था, लेकिन एक भी उम्मीदवार नहीं जीत पाया. पार्टी वहां भी हार गई, जहां मुस्लिम मतदाता अच्छी संख्या में हैं.