शादी-विवाह को पंजीकृत करने वाले रजिस्ट्रार आर्य समाज पद्धति से हुई शादी को वैध नहीं मानते. जबकि आर्य समाज हिंदू धर्म का ही एक सुधार आंदोलन रहा है. आर्य समाज ने कभी नहीं कहा कि वे हिंदू नहीं हैं. उलटे वे तो कहते हैं कि हम लोग ही शुद्ध रूप से वैदिक हैं और कालांतर में इस वैदिक धर्म में घुस आई कुरीतियों को दूर करने के लिए ही आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद ने 1875 ईस्वी में की थी. ऐसी स्थिति में रजिस्ट्रार क्या कहना चाहते हैं कि शादी सिर्फ वही सही हैं, जिनमें पुरोहित आधे-अधूरे श्लोक बोल कर भांवरें डलवा देते हैं.
कभी किसी आम हिंदू शादी में देखिए, तो पाएंगे कि पुरोहित किसी भी श्लोक को शुद्ध नहीं बोल पा रहा है. सच बात तो यह है कि आम तौर पर पुरोहितों को हिंदू समाज के षोडश संस्कारों की व्याख्या तक पता नहीं होती. नतीजा यह होता यह है, कि शादी-विवाह, मुंडन में वह वही श्लोक बोलता है, जो मृत्यु के समय बोलता है. तब आर्य समाज की परंपरा पर यह कुठार क्यों?
आर्य समाज में शादी वेद मंत्रों से संपन्न होती है
दूसरी तरफ आर्य समाज पद्धति से हुई शादी में वेद मंत्रों का शुद्ध पाठ होता है. यहां यजुर्वेद मंत्रों का पाठ करते हुए शास्त्री समस्त विधि-विधानों के साथ शादी संपन्न कराते हैं. आर्य समाज मंदिर में हुई शादी को आर्य समाज वैलिडेशन एक्ट 1937 और हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के अंतर्गत मान्यता भी दी जाती हैं. हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख आदि सभी लोग आर्य समाज मंदिर में शादी कर सकते हैं. दोनों हिंदू हैं तो हिंदू मैरिज एक्ट और अलग धर्म के हैं तो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत उनकी शादी को मान्यता दी जाती हैं. जबकि इसके विपरीत आर्य समाज मंदिर की ओर से बड़े पैमाने पर जारी किए जाने वाले विवाह प्रमाण पत्रों की वैधता को इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार ने मानने से इनकार कर दिया है. रजिस्ट्रार ने कहा है कि सिर्फ आर्य समाज मंदिर की ओर से विवाह प्रमाण पत्र जारी होने से विवाह साबित नहीं होता है.
अलग-अलग जातियों के बीच शादी का सेतु
आर्य समाज पद्धति से विवाह को मान्यता 1937 में मिल गई थी. उस समय भारत में ब्रिटिश राज था. अंग्रेजों ने तब आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट बनाया था. इस कानून के तहत अलग-अलग जातियों के युगल परस्पर शादी कर सकते थे. साथ ही अलग-अलग धर्मों के लोग भी आर्य समाज मंदिर में इस पद्धति से शादी कर सकते थे. होता यह था कि जहां कहीं भी मां-बाप अपने बच्चों की पसंद की शादी नहीं करने देते थे, वे युगल आर्य समाज विधि से शादी कर लेते थे और इस तरह की शादियों को वैधानिक मान्यता थी. आर्य समाज शादी का रिकार्ड रखता है तथा एक प्रमाण पत्र भी जारी करता है. लेकिन पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, कि आर्य समाज को शादी का प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार नहीं है. उनके प्रमाण पत्रों की वैधता नहीं है.
शादियों का पंजीकरण अनिवार्य
परंतु सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद स्थिति यह है कि रजिस्ट्रार द्वारा जारी किया गया विवाह प्रमाणपत्र ही एकमात्र वैध दस्तावेज है. यदि दोनों पक्ष हिंदू हैं, तो आर्य समाज विवाह को संबंधित कार्यालय में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत किया जा सकता है. 25 अक्टूबर 2007 को, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि सभी विवाहों को बिना किसी धर्म के अपवाद के पंजीकृत किया जाना चाहिए. अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य बनाने के लिए तीन महीने के भीतर कानून बनाने का निर्देश दिया. स्त्री के अधिकारों को सुरक्षित करने के उद्देश्य से विवाह का पंजीकरण अनिवार्य किया गया था. विवाह के रजिस्ट्रेशन से पत्नी को पति की संपत्ति में पूरा हक़ आसानी से हासिल हो जाता है.
सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को समझा नहीं गया
ताजा मामला एडवोकेट शिवानी के एक क्लाइंट का है. उनके क्लाइंट ने शादी को रजिस्टर्ड कराने के लिए ऑन लाइन आवेदन किया था. पर बताया गया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार ने शादी का प्रमाण पत्र देने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि शादी का प्रमाण पत्र आर्य समाज ने जारी किया था. इस संदर्भ में एडवोकेट शिवानी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर अपने क्लाइंट के हवाले से लिखा है कि मैं जब इलाहाबाद हाई कोर्ट में ऑनलाइन मैरिज रजिस्ट्रेशन के बाद रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट लेने गयी तो वहां मुझसे रजिस्ट्रार ने साफ कह दिया कि हम आर्य समाज रीति-रिवाज से की गयी शादियों को वैलिड नहीं मानते हैं. आर्य समाज में कोई शादी-वादी नही होती.
मैंने उनको हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 7 में प्रावधानित सप्तपदी तथा धारा 8 में मैरिज रजिस्ट्रेशन की बात कही तो उन्होंने मुझे सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट दिखा दिया. जबकि सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट यह है कि वह आर्यसमाज के सर्टिफिकेट को वैध मैरिज प्रमाणपत्र नहीं मानता. आर्य समाज की शादी को कहीं से भी अवैध नही किया गया है. इससे स्पष्ट है, कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को ठीक से समझा नहीं गया.
आर्य समाज रीति की शादियां अवैध तो बच्चे भी वैध नहीं माने जाएंगे
शिवानी के अनुसार लोगों को बुरा लगेगा परन्तु आर्यसमाज या आर्यसमाजी यजुर्वेद के मंत्रों से पूर्ण विधि-विधान से विवाह करते हैं. जबकि पौराणिक लोग या गैर आर्यसमाजी एक घंटे में श्लोक बोलकर या गणेशजी के मंत्र बोलकर शादी निपटा देते हैं. आर्यसमाजी रीति-रिवाज से विवाह पूरी एक रात में अनुष्ठापित हो पाता है. यजुर्वेद के मंत्रों से विवाह होता है. शास्त्री जी उस विवाह को सम्पन्न करते हैं और जिन-जिन का विवाह हुआ है, उनका नाम रजिस्टर में दर्ज किया जाता है. रजिस्ट्रार को समझाया गया कि आप मैरिज को आर्यसमाजी रीति-रिवाज से विवाह करने की वजह से रजिस्टर्ड नही कर रहे. इस लिहाज से तो अब तक इस रीति से हुई सारी शादियाँ अवैध हुईं और उनके बच्चे अवैध संतानें.
आर्य समाज प्रतिनिधि सभा चुप क्यों?
एडवोकेट शिवानी ने बताया कि हम आर्य समाज प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश, लखनऊ के समक्ष एक प्रत्यावेदन प्रस्तुत करने जा रहे हैं कि हमारे माता-पिता का विवाह 15 जून 1986 को अलीगढ़ में आर्यसमाज रीति-रिवाज के द्वारा अनुष्ठापित हुआ था, जो टिपिकल अरेंज मैरिज थी. ऐसी स्थिति में इनके विवाह को विवाह वैधानिक समझा जाए? है ? और यदि आर्यसमाज रीति-रिवाज से किया गया विवाह वैध है तो आर्य समाज प्रतिनिधि सभा ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष क्यों नही रखा? सरकार के समक्ष अपना पक्ष क्यों नही रखा? क्यों आपने आर्यसमाज मैरिज वैलिडेशन का हवाला नही दिया? क्यों आर्य समाज मत का अनुसरण किया जाए? जब आपके पास एक सही विज़न नही है. आपके पास करैक्ट लीडरशिप नही है.