संसद में इस बार संविधान पर घमासान होने वाला है. 18 वीं लोकसभा सत्र के पहले दिन ही विपक्ष और सत्ता पक्ष ने इसके संकेत दे दिए. कांग्रेस ने NEET UG- एनटीए और लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों के बीच संविधान की प्रतियां लहराकर विरोध प्रदर्शन किया. इसके साथ ही विपक्ष ने जता दिया कि वह संविधान वाली स्ट्रेट जी के साथ ही मैदान में उतरने वाला है. उधर पीएम नरेंद्र मोदी ने आपातकाल की याद दिलाकर विपक्ष को आईना दिखाया. अपने संबोधन से पीएम मोदी ने कांग्रेस पर हमला बोलकर ये जाहिर कर दिया कि वह विपक्ष की हर बाउंसर का काउंटर करने के लिए तैयार हैं.
लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने संविधान को मुद्दा बनाकर भाजपा को तगड़ा नुकसान पहुंचाया है. ऐसे में कांग्रेस का मानना है कि इस मुद्दे को थामे रखकर सत्ता पक्ष पर हावी रहा जाए. विपक्ष को उम्मीद है कि इस मुद्दे से वह यूपी में होने वाले आगामी उपचुनाव और हरियाणा-महाराष्ट्र समेत अन्य प्रदेशों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को झटका दे सकती है. बीजेपी को भी इस बात का पूरी तरह अंदाजा है, कि अगर उसने विपक्ष के इस नरैटिव का जवाब नहीं दिया तो उसे नुकसान हो सकता है. इसीलिए संसद सत्र से पहले पीएम मोदी ने मीडिया से बातचीत में आपातकाल की याद दिलाकर संविधान का जिक्र किया ओर बताया कि 50 साल पहले कैसे संविधान को तार-तार कर दिया गया था.
संविधान पर विपक्ष Vs सरकार
विपक्ष इस बात से उत्साहित है कि लोकसभा चुनाव में संविधान का नरैटिव फैलाकर उसने 10 साल बाद बीजेपी को बहुमत पाने से रोक दिया. कहीं न कहीं बीजेपी भी इस बात को जानती है कि 2014 से उसने जो बसपा और सपा से वोट बैंक बटोरा था वह संविधान की वजह से ही छिटक गया है. इसीलिए बीजेपी लगातार संविधान के नरैटिव को काउंटर करने की कोशिश कर रही है. कहा तो ये भी जा रहा है कि भाजपा जगह जगह सम्मेलन आयोजित कर लोगों को ये बताना चाहती है कि संविधान बदलने का उसका कोई इरादा नहीं है.
भाजपा जानती है कि अगर इस मुद्दे का काउंटर नहीं किया गया तो भाजपा को नुकसान होगा, इसीलिए पार्टी सारी कवायद कर रही है. लोकसभा चुनाव परिणाम के तुरंत बाद ही इसकी शुरुआत हो गई थी जब एनडीए की बैठक में पीएम मोदी ने पहुंचकर सबसे पहले संविधान को सिर नवाया था. इससे ये संदेश देने की कोशिश की गई कि बीजेपी के लिए संविधान सर्वोपरि है. विपक्ष सिर्फ भ्रम फैला रहा है, जबकि विपक्ष उसी नरैटिव पर चल रहा है कि सरकार संविधान से छेड़छाड़ की कोशिश में है. इसीलिए कांग्रेस ने संसद सत्र के पहले दिन इसी स्ट्रैटज को अपनाया और ‘INDIA’ गठबंधन के सांसदों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए मार्च भी निकाला, जिसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे भी थे. विपक्ष ने सदन में संविधान की कॉपी भी लहराईं और कहा कि अब संसद में संविधान बोलेगा.
पीएम मोदी ने दिलाई आपातकाल की याद
पीएम नरेंद्र मोदी ने संसद सत्र शुरू होने से पहले आपातकाल का जिक्र कर याद दिलाया कि कैसे 50 साल पहले संविधान को पूरी तरह नकार दिया गया था. पीएम मोदी ने कहा कि आज हम 24 जून को मिल रहे हैं, कल 25 जून है. जो लोग संविधान की गरिमा के प्रति समर्पित हैं. भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं पर निष्ठा रखते हैं, उनके लिए 25 जून न भूलने वाला दिन है. 25 जून को भारत के लोकतंत्र पर जो काला धब्बा लगा था. उसके 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं, भारत की नई पीढ़ी इस बात को कभी नहीं भूलेगी कि भारत के संविधान को पूरी तरह नकार दिया गया था.
पीएम मोदी ने कहा कि 50 साल पहले देश को जेलखाना बना दिया गया था, लोकतंत्र को पूरी तरह दबोच दिया गया था. इमरजेंसी के ये 50 साल इस संकल्प के हैं कि हम गौरव के साथ हमारे संविधान की रक्षा करते हुए भारत के लोकतंत्र ओर लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा करेंगे. भारत में फिर कभी कोइ ऐसी हिम्मत नहीं करेगा जो 50 साल पहले की गई थी और लोकतंत्र पर काला धब्बा लगा दिया गया था. हम जीवंत लोकतंत्र के संकल्प के साथ भारत के संविधान के दिशा के अनुसार जन सामान्य के सपनों को पूरा करेंगे. पीएम मोदी ने विपक्ष को नसीहत दी, उन्होंने कहा कि देश विपक्ष से अच्छे कदमों की अपेक्षा रखता है, देश संसद में डिबेट, विजिलेंस चाहता है. लोगों को ये अपेक्षा नहीं है कि नखरे और ड्रामा होता रहे, डिस्टरबेंस होता रहे. देश को एक अच्छे और जिम्मेवार विपक्ष की आवश्यकता है.
कब और क्यों लगा था आपातकाल ?
देश में 25 जून 1975 को आपातकाल लगा था. तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के कहने पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इसका ऐलान किया था. इस दौरान नागरिक अधिकारों को समाप्त कर मनमानी की गई थी. राजनीतिक विरोधी कैद कर लिए गए थे. जयप्रकाश नारायण ने इसे ‘भारतीय इतिहास की काली अवधि बताया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव में इंदिरा गांधी को सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का दोषी पाते हुए 12 जून 1975 को हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल ने उन पर 6 साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी. 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा गांधी को पीएम की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दे दी. इसके बाद जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के इस्तीफा न देने तक विरोध प्रदर्शनों का ऐलान किया. इसके बाद ही इंदिरा गांधी ने अध्यादेश पास कर आपातकाल लगा दिया. 21 महीने बाद 23 मार्च 1977 को यह आपातकाल समाप्त किया गया था.