छठ महापर्व का आज तीसरा दिन है. व्रती ने आज डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया. घर के पुरुष सदस्य दउरा लेकर छठ घाट तक आये. इस दउरा में फल और ठेकुआ भरा होता है. डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए देशभर के घाटों पर छठ व्रतियों की भीड़ उमड़ पड़ी. पटना से लेकर असम और गोरखपुर तक श्रद्धालु विधि-विधान से पूजा पाठ में जुटे व्रती आज शाम से ही जल में खड़े होकर भगवान भास्कर की आराधना करते दिखे.
छठी मइया का यह पर्व बिहार में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल में भी छठी मइया को पूजा जाता है. छठ पूजा के दिन घर के लगभग सभी सदस्य व्रत रखते हैं. साथ ही बदलते वक्त के साथ भोजपुरी के प्रसिद्ध छठ मइया के गीत सुने जाते हैं. मान्यता है कि छठ का व्रत रखने से संतान की प्राप्ति होती है और बच्चों से जुड़े कष्टों का निवारण होता है.
चार दिनों तक चलने वाले इस पूजा में घर के सभी सदस्य भाग लेते हैं. नए नए कपड़े पहन कर सभी लोग छठ घाट तक जाते हैं और वहां होने वाले पूजा में शामिल होते हैं. इस दौरान बच्चों में खासा जोश देखने को मिलता है. यह पर्व कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा की परंपरा है.
छठी मइया की कथा♦
पौराणिक कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम का एक राजा था. उनकी पत्नी का नाम था मालिनी. दोनों की कोई संतान नहीं थी. इस बात से राजा और रानी दोनों की दुखी रहते थे. संतान प्राप्ति के लिए राजा ने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. यह यज्ञ सफल हुआ और रानी गर्भवती हुईं.
लेकिन रानी की मरा हुआ बेटा पैदा हुआ. इस बात से राजा और रानी दोनों बहुत दुखी हुए और उन्होंने संतान प्राप्ति की आशा छोड़ दी. राजा प्रियव्रत इतने दुखी हुए कि उन्होंने आत्म हत्या का मन बना लिया, जैसे ही वो खुद को मारने के लिए आगे बड़े षष्ठी देवी प्रकट हुईं.
षष्ठी देवी ने राजा से कहा कि जो भी व्यक्ति मेरी सच्चे मन से पूजा करता है मैं उन्हें पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं. यदि तुम भी मेरी पूजा करोगे तो तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. राजा प्रियव्रत ने देवी की बात मानी और कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्ठी की पूजा की. इस पूजा से देवी खुश हुईं और तब से हर साल इस तिथि को छठ पर्व मनाया जाने लगा.