वक्त ने बदली करवट, कभी राहुल गांधी के लिए कहा था उजड़ी हवेली का पुराना जमींदार, अब दिया खास न्योता

लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की स्थिति में काफी बदलाव आ गया है. वो लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष तो बन ही गए हैं, साथ में उनके सहयोगियों में भी स्वीकार्यता नजर आने लगी है. साल 2019 में ममता बनर्जी और शरद पवार जैसे दिग्गज विपक्षी नेता भी राहुल को विपक्ष का नेता मानने को तैयार नहीं थे. लेकिन अब वक्त ने करवट बदल लिया है और विपक्ष को राहुल गांधी के रूप नई उम्मीद दिखने लगी है.

राहुल को लेकर नजरिया में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है. शरद पवार की ओर से राहुल गांधी को महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के नेता के तौर पर महाराष्ट्र में सुप्रसिद्ध पंढरपुर सालाना धार्मिक यात्रा में शामिल होने का न्योता दिया जा चुका है. सूत्रों की मानें तो कांग्रेस नेता 14 जुलाई (रविवार) को इस यात्रा में कुछ वक्त के लिए पैदल चलकर शामिल होने का मन बना रहे हैं.

250 किलोमीटर लंबी धार्मिक यात्रा
पंढरपुर की ये सालाना यात्रा समाज सुधारक संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर की पालकी के साथ भजन कीर्तन करते हुए करीब 250 किलोमीटर की है. महाराष्ट्र की सियासत में दलित उत्थान, समाज सुधार और विकासशील हिंदू समाज को समेटे ये यात्रा खासी अहम मानी जा रही है. महाराष्ट्र की सियासत के पुरोधा शरद पवार ने भांप लिया है कि दलित, मुस्लिम और मराठा का मेल ही अघाड़ी की जीत की कुंजी है. जो हाल के चुनावों में भी नजर आई है.

ऐसे में इस यात्रा को खुद पवार ने 7 जुलाई को अपने गांव कटेवाड़ी में स्वागत करके सियासी लकीर खींच दी. उसके बाद पवार ने आषाढ़ी एकादशी यानी 17 जुलाई को खत्म होने वाली इस यात्रा में शामिल होने के लिए अपने सहयोगी राहुल गांधी और उद्धव ठाकरे से इसमें शामिल होने का न्योता दिया.

2019 में शरद ने क्या कहा था
दरअसल, विट्ठल भगवान और रुक्मणि देवी के मंदिर में खत्म होने वाली ये यात्रा पंढरपुर की पवित्र चंद्रभागा नदी पर संपन्न होती है, जहां भक्त स्नान करके अपने पाप धोते हैं. ऐसी मान्यता है. इस पूरी यात्रा को राज्य में ‘वारी’ कहते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं.

ऐसे में मराठा क्षत्रप पवार ने दलित, आदिवासी, मुस्लिम, मराठा वर्ग के साथ ही दलितों को भी सहेजते हुए प्रगतिशील हिंदू वर्ग पर निशाना साध कर राज्य की राजनीति के बड़े वोटबैंक को साधने की कोशिश की है, लेकिन बड़ी बात यह है कि साल 2019 में शरद पवार ने जिस कांग्रेस को उजड़ी हवेली का पुराना जमींदार बता रहे थे,अब बदले हालात में उसी के राजकुमार की सरपरस्ती मान रहे हैं, वो भी अपनी सियासी मांद महाराष्ट्र में.

महाराष्ट्र की सियासत में हलचल तेज हो गई है क्योंकि यहां पर कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में शरद पवार अपने गठबंधन को जीत दिलाने के लिए अपने सियासी धार को तेज करने लगे हैं.

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