58 साल के इंतजार के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारी भी आधिकारिक तौर पर शिरकत कर सकेंगे. हाल ही में केद्र सरकार की ओर से लिए गए फैसले से यह संभव हुआ है. हालांकि, सरकार के इस फैसले का कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं, लेकिन इस बात पर चर्चा हो रही है कि सरकार ने संघ के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारियों पर लगे प्रतिबंध को क्यों हटाया?
- प्रशासनिक ढांचे में एंट्री होगी
सरकारी कर्मचारियों को संघ के कार्यक्रमों में जाने पर से रोक हटने पर देश की प्रशासनिक ढांचे में भी संघ की एंट्री होगी. संघ को करीब 6 दशक तक कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन शर्मा कहते हैं- राजनीतिक ढांचे में संघ की एंट्री 1950 में ही हो गई थी, जब जनसंघ का गठन किया गया था. अब सरकार के हालिया फैसले से संघ की एंट्री प्रशासनिक ढांचे में भी हो जाएगी.
शर्मा के मुताबिक सरकारी कर्मचारी पहले भी संघ के कार्यक्रमों में जाते थे, लेकिन छिप-छिपकर. उन्हें अपने करियर का डर रहता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. अब सरकारी कर्मचारी खुलकर संघ के साथ जा सकेंगे. चूंकि केंद्र और 10 से ज्यादा राज्यों में बीजेपी की सरकार है तो संघ को इसका भी फायदा होगा.
कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रम में जाने से संघ के स्वयंसेवकों और उनके बीच संवाद स्थापित होगा, जिससे नेटवर्किंग भी मजबूत होगी. इसका असर संघ को अपने विचार को लागू करने में आसानी होगी. प्रशासनिक स्तर पर पहुंच बढ़ने से कई अन्य चीजों को भी आसानी से लोगों तक पहुंचाया जा सकता है. क्योंकि, भारत की कार्यपालिका में ब्यूरोक्रेसी एक अहम हिस्सा है.
- स्वीकारता बढ़ाने की कोशिश
गठन के बाद से अब तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर 3 बार बैन लग चुका है. पहली बार बैन गांधी की हत्या के बाद लगा था. दूसरी बार आपातकाल और तीसरी बार बाबरी विध्वंस के वक्त लगा था. हालांकि, तीनों ही बार संघ की एक्टिविटी पर से बैन हटा लिया गया, लेकिन सरकारी कर्मचारियों को संघ के कार्यक्रम से दूर रहने का आदेश अब तक लागू था.
यह आदेश 2 तरह से संघ को प्रभावित कर रहा था. 1. जो सरकारी कर्मचारी थे, वो संघ के कार्यक्रम से दूर रहते थे और 2. सरकारी कर्मचारी बनने वाले युवक/युवती भी भविष्य के डर से संघ के कार्यक्रम में शामिल नहीं होते थे.
देश की सत्ता में वर्तमान में संघ समर्थित भारतीय जनता पार्टी सरकार में है और संघ शताब्दी की ओर बढ़ रहा है. अगले साल यानी 2025 में संघ की स्थापना के 100 साल पूरे हो जाएंगे. आरएसएस इस अवसर पर बड़े स्तर पर कार्यक्रम की तैयारी कर रहा है.
संघ ऐसे में नहीं चाहेगा कि उस पर किसी भी तरह के बैन हो. संघ अपने शताब्दी वर्ष पर सियासी या किसी भी तरह की अस्पृश्यता का दंश नहीं झेलना चाहता है.संघ के कार्यक्रम में सरकारी कर्मचारियों की एंट्री देने का यह एक मुख्य कारण है.
संघ से जुड़े लोगों का कहना है कि संगठन की कोशिश अब यह है कि भारतीय लोकतंत्र में सभी वर्ग उसे आसानी से स्वीकार करे. शताब्दी वर्ष के मौके पर संघ नए सिरे से रणनीति तैयार कर सकता है. ऐसे में पुराने प्रतिबंध के फैसले उसकी राह में रोड़ा बना हुआ था.
सरकार के इस फैसले से अब संघ की स्वीकारता सभी वर्गों में बढ़ेगी. खासकर उन वर्गों में, जो देश के डिसिजन मेकिंग में शामिल हैं या होने वाले हैं.
यह 3 फायदा भी संघ को होगा…
- संघ की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक इस साल मार्च तक संघ की 73 हजार शाखाएं चल रही थीं. संघ ने 2025 में शताब्दी वर्ष होने पर 1 लाख शाखाएं लगाने का लक्ष्य रखा है. शताब्दी वर्ष होने में सिर्फ 15 महीने का वक्त बचा है. ऐसे में सरकारी कर्मचारियों पर से बैन हटने पर संघ को शाखाओं की संख्या बढ़ाने मे फायदा मिल सकता है.
- भारत में केंद्रीय स्तर पर 33 लाख सरकारी कर्मचारी हैं. अगर राज्यों के अधीन आने वाले कर्मचारियों की संख्या भी जोड़ दिया जाए तो यह 1 करोड़ से ज्यादा है. इस आदेश से संघ के लिए इन 1 करोड़ लोगों तक पहुंचने में आसानी होगी.
- देश की सरकारी नौकरी में करीब 17 प्रतिशत दलित हैं. इन्हें समाज में डिसिजन मेकर के तौर पर भी देखा जाता है. लंबे वक्त से संघ दलितों में पैठ बनाने की कोशिशों में जुटा है. कई स्तर पर उसे कामयाबी भी मिली है, लेकिन अभी भी बहुजन का एक बड़ा वर्ग संघ से कटा हुआ है. इस आदेश के बाद संघ के लिए इन्हें साधने में आसानी होगी.
संघ के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारियों पर क्यों लगा था बैन?
इंदिरा गांधी के वक्त केंद्र सरकार ने इस संबंध में आदेश पास किया था. केंद्र सरकार का कहना था कि सरकारी कर्मचारी अगर किसी राजनीतिक संगठन में जाएंगे, तो वो अपनी तटस्था खो सकते हैं. संघ पर यह बैन सिविल सेवा (आचरण) नियम 1964 के तहत किया गया था.
हालांकि, संघ लगातार कहता रहा है कि वो राजनीतिक संगठन नहीं है. संघ खुद को सांस्कृतिक और समाजिक संगठन बताता रहा है. संघ की स्थापना साल 1925 में नागपुर में हुई थी. यह वर्तमान में देश और दुनिया के 900 से ज्यादा जिलों में फैल चुकी है.