दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का आज जन्मदिन है. 16 अगस्त, 1968 को हिसार में जन्मे केजरीवाल आज दिल्ली ही नहीं देश की सियासत में बड़ा नाम हैं. एक दशक की राजनीति में उनके जीवन में काफी उतार चढ़ाव आए हैं. एक आंदोलनकारी से सियासी-जादूगर तक के जीवन के कई किस्से हैं. आइए जानते हैं, अरविंद केजरीवाल के आम से खास होने का पूरा सफर.
16 अगस्त, 1968 को केजरीवाल का जन्म हरियाणा के हिसार में हुआ था. सुनीता उनकी पत्नी हैं. केजरीवाल की तरह वो भी आईआरएस अधिकारी रही हैं. दोनों का एक बेटा और एक बेटी है. केजरीवाल ने आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक की पढ़ाई की है. देश की नामी कंपनी टाटा स्टील में काम किया. इसके बाद उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास की. 1995 में आयकर के एसोसिएट निदेशक रहे. इसके बाद नौकरशाही को अलविदा कह दिया.
लोगों की सेवा के लिए संगठन
केजरीवाल ने इसके बाद लोगों की सेवा के लिए एक संगठन बनाया. सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्होंने मुहिम छेड़ी. उनकी मुहिम और प्रयासों को ख्याति मिली. साल 2006 में इसके लिए उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया. लंबे समय तक इस में काम करने के बाद वो अन्ना आंदोलन ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ से जुड़े आंदोलन ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ ने उन्हें नई पहचान दी. साल 2011 में इस आंदोलन ने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंका था. जन लोकपाल विधेयक की मांग थी. इसका मकसद नौकरशाहों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए स्वतंत्र लोकपाल का गठन था.
अन्ना आंदोलन और केजरीवाल
अन्ना आंदोलन में अरविंद केजरीवाल एक अहम चेहरा था. राजनीतिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार के खिलाफ खासकर कांग्रेस को निशाना बनाते हुए उन्होंने आवाज बुलंद की. इससे वो आंदोलन का अहम किरदार बने और देश में पहचान मिली. यही वजह है कि आंदोलन के बाद अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़े. उन्होंने जनता से भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने का वादा किया.
अन्ना आंदोलन के प्रमुख चेहरे
किसन बाबूराव हजारे उर्फ अन्ना हजारे, के नाम से जाना जाता है, इस आंदोलन का प्रमुख चेहरा था.
किरण बेदी, पूर्व पुलिस अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता.
प्रशांत भूषण, प्रसिद्ध वकील और कार्यकर्ता.
संतोष हेगड़े, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश.
मेधा पाटकर, सामाजिक कार्यकर्ता.
रामदेव, योग गुरु और सामाजिक कार्यकर्ता.
कुमार विश्वास, कवि और लेखक
आप का ‘आम’ से ‘खास’ होने का सफर
आंदोलन के बाद 26 नवंबर, 2012 को केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी (आप) का गठन किया. भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी अब दिल्ली और देश की सियासत में खास हो चुकी है. पहले चुनाव में 28 सीटें जीतने वाली पार्टी की अब दो जगह (दिल्ली और पंजाब) सरकारें हैं. अपने नाम से लोगों को कनेक्ट करते हुए और चुनाव चिन्ह ‘झाड़ू’ से भ्रष्टाचार के खात्मे का संकेत देने वाली पार्टी का दायरा दिल्ली की सीमाएं लांघ चुका है.
अरविंद केजरीवाल ने पहली बार 28 दिसंबर 2013 को दिल्ली के सीएम पद की कुर्सी संभाली थी. उनकी पार्टी की इस जीत ने राजनीति की नई परिभाषा गढ़ी थी, क्योंकि नई नवेली पार्टी ने सत्तारूढ़ दल को उंखाड़ फेंका था. उन्होंने लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को हराया था. बेशक सीटें कम थीं लेकिन हौंसले बुलंद थे. लोगों से जुड़ने की इस पार्टी की खास स्ट्रैटजी थी.
28 से 67 सीटों का सफर
हालांकि, 28 सीटों की वजह से केजरीवाल की सरकार का पहला टर्म काफी छोटा रहा. उनके पास पूर्ण बहुमत का आंकड़ा नहीं था. हालांकि, इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी. जिस आंदोलन की वजह से वो सत्ता में आए थे, वो भ्रष्टाचार विरोधी कानून पारित नहीं हो सका था. इसके बाद महज 49 दिन बाद 14 फरवरी 2014 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. इसके अगले साल चुनाव हुए. पिछले चुनाव में अपनी मजबूत मौजूदगी का अहसास करा चुकी आम आदमी पार्टी इस चुनाव में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी. 2015 के चुनाव में आप ने दिल्ली की सियासत में इतिहास लिखा. 70 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज की. इसके बाद 14 फरवरी को वो दूसरी बार दिल्ली के सीएम चुने गए. अगले विधानसभा चुनाव यानी कि 2020 में केजरीवाल की पार्टी ने अपना दबदबा बरकरार रखा. हालांकि बीते चुनाव के मुकाबले उन्हें
केजरीवाल सरकार के पहले टर्म (49 दिन की सरकार) के दावे:
आम आदमी पार्टी के मुताबिक, AAP सरकार ने विकास कार्यों से दिल्ली को बदला.
हर घर में रोजाना 667 लीटर पानी मुहैया कराया गया.
बिजली के बिल में 50 फीसदी सब्सिडी.
सरकारी कारों पर लगने वाली लाल और नीली बत्ती को अलविदा. इससे वीआईपी कल्चर खत्म हुआ.
सरकारी स्कूलों में बुनियादी ढांचे की कमी के लिए सर्वे. मरम्मत के लिए हर स्कूल को 1 लाख रुपये.
भ्रष्टाचार विरोधी और नर्सरी एडमिशन के लिए हेल्पलाइन शुरू.
5 हजार 500 ऑटो को नए परमिट दिए गए.
विधानसभा में जन लोकपाल विधेयक पारित ने होने की वजह से इस्तीफा दे दिया.
2014 के लोकसभा चुनाव में 4 सीटें जीतीं.