दिल्ली: दिल्ली में बॉस कौन, मुख्यमंत्री या उपराज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट आज इस सवाल का जवाब साफ कर देगा. दिल्ली में अफसरों पर नियंत्रण और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के अधिकार किसका हो, इस पर सुप्रीम कोर्ट फैसला देगा. दिल्ली के अधिकार विवाद पर कोर्ट ने 1 नवंबर को फैसला सुरक्षित रखा था. 4 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दिल्ली सरकार बनाम एलजी अधिकार विवाद में सिर्फ संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या की थी. कोर्ट ने कहा था कि कानून व्यवस्था, पुलिस और जमीन को छोड़ कर बाकी मामलों में उप राज्यपाल स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकते.
कोर्ट ने विवाद की वजह बने मामलों पर अलग से कोई फैसला नहीं दिया था. कोर्ट ने ऐसे मामलों पर 2 जजों की बेंच गठित कर नियमित सुनवाई का फैसला किया था, आज इसी पर फैसला आएगा. जानकारी के मुताबिक फैसला सुबह 10.30 बजे तक आ सकता है.
दिल्ली सरकार की तरफ से केंद्र की अधिसूचनाओं को चुनौती
दिल्ली सरकार और केंद्र की कई अधिसूचनाओं/आदेशों का मसला कोर्ट तक पहुंचा. पहले बात करते हैं दिल्ली सरकार की तरफ से केंद्र की अधिसूचनाओं को दी गई चुनौती पर.
21 मई 2015 की अधिसूचना में दिल्ली में ‘सर्विसेस’ को एलजी के तहत करार दिया गया था. यानी दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार एलजी को दे दिया गया. दिल्ली सरकार का कहना है कि संविधान पीठ के फैसले के बाद ये अधिकार उसे मिलना चाहिए
दूसरी अधिसूचना 23 जुलाई 2014 की है. इसमें दिल्ली के एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) को केंद्र सरकार के अधिकारियों के ऊपर मामले दर्ज करने से रोका गया था. साथ ही एसीबी को एलजी के नियंत्रण में दे दिया गया था. दिल्ली सरकार चाहती है कि एसीबी को दिल्ली की सीमा में हुए भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में जांच का अधिकार मिलना चाहिए. इसके अलावा दिल्ली सरकार ने 100 करोड़ रुपए के सीएनजी फिटिंग घोटाले में एलजी की तरफ से विशेष सरकारी वकील नियुक्त करने के आदेश को भी चुनौती दी है.
केंद्र की तरफ से दिल्ली सरकार की अधिसूचनाओं को चुनौती
दिल्ली सरकार ने 4 अगस्त 2015 को कृषि भूमि का सर्किल एरिया रेट बढ़ाने का ऐलान किया. इसको अपनी उपलब्धि बताते हुए खूब प्रचार भी किया. लेकिन ये नोटिफिकेशन बिना एलजी की मंज़ूरी के जारी किया गया था. इसलिए, मामला फंस गया.
केजरीवाल सरकार ने दिल्ली की निजी बिजली वितरण कंपनियों में बिना एलजी की इजाज़त लिए अपने प्रतिनिधि डायरेक्टर नियुक्त कर दिए.
12 जून 2015 को दिल्ली सरकार ने बिजली कटने पर उपभोक्ताओं को वितरण कंपनियों की तरफ से हर्जाना देने की नीति बनाई. इसके लिए भी एलजी की मंज़ूरी नहीं ली गई.
इसके अलावा ट्रांसपोर्ट घोटाले में बिना एलजी की इजाज़त के जांच का आदेश देने जैसे मामले पर भी सुनवाई हुई हैं.
इन सभी मामलों में दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला एलजी के पक्ष में रहा था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अधिकारों की नई व्याख्या दी थी. अब संविधान पीठ के फैसले के बाद बनी स्थिति के मद्देनजर 2 जजों, जस्टिस ए के सीकरी और अशोक भूषण की बेंच इन पर अलग से फैसला देगी.