सुप्रीम कोर्ट ने दिए तीन नाम जो सुलझाएंगे अयोध्या विवाद, जानिए कौन-कौन है

उच्चतम न्यायालय ने आज राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मामले पर सुनवाई करते हुए इसे मध्यस्थता पैनल के पास भेज दिया है. अदालत ने चार हफ्तों के अंदर मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है. साथ ही आठ हफ्तों के अंदर पूरी रिपोर्ट मांगी है. अदालत ने तीन लोगों का एक मध्यस्थता पैनल बनाया है जिसका नेतृत्व सेवानिवृत्त जस्टिस कलीफुल्लाह करेंगे. उनके अलावा इस पैनल में श्री श्री रविशंकर और श्रीराम पंचू होंगे.

आइये जानते है इन सबके बारे में:

जस्टिस कलीफुल्ला
सेवानिवृत्त जस्टिस कलीफुल्ला का पूरा नाम फकीर मोहम्मद कलीफुल्ला है. उनका जन्म 23 जुलाई 1951 को तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में हुआ था. उन्होंने 20 अगस्त, 1975 को वकील के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी. 2 मार्च 2000 को उन्हें मद्रास उच्च न्यायालय का जज नियुक्त किया गया था. फरवरी 2011 को वह जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के सदस्य बने थे और और दो महीने बाद उनकी नियुक्ति कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के तौर पर हुई थी. सितंबर 2011 को उन्हें जम्मू-कश्मीर का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया. 2 अप्रैल 2012 को उन्हें उचच्तम न्यायालय में नामित किया गया. वह 22 जुलाई 2016 को सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त हुए हैं.

श्री श्री रविशंकर
श्री श्री रविशंकर का जन्म 13 मई 1956 को हुआ था. पेशे से वह आध्यात्मिक गुरू हैं. उनकी संस्था का नाम आर्ट ऑफ लिविंग है. जिसकी स्थापना उन्होंने 1981 में की थी. उनकी संस्था लोगों को सामाजिक समर्थन प्रदान करती है. केवल चार साल की उम्र में रविशंकर श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों का पाठ किया करते थे. बचपन से ही उन्होंने ध्यान करना शुरू कर दिया था. वह वेद विज्ञान विद्यापीठ, श्री श्री सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज, श्री श्री कालेज और आयुर्वेदिक साइंस एंड रिसर्च, श्री श्री मोबाइल एग्रीकल्चरल इनिसिएटीव्स और श्री श्री रूरल डेवलेपमेंट ट्रस्ट चलाते हैं. उन्हें भारत सरकार ने 2016 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया था.

श्रीराम पंचू
श्रीराम पंचू एक वरिष्ठ वकील हैं और कई मामलों में मध्यस्थता की भूमिका निभा चुके हैं. वह मध्यस्थता चेंबर के संस्थापक हैं जो किसी भी मामले में मध्यस्थता की सेवा प्रदान करते हैं. वह एसोसिएशन ऑफ इंडियन मीडिएटर के अध्यक्ष और इंटरनेशनल मीडिएशन इंस्टीट्यूट के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के सदस्य हैं. उन्होंने 2005 में भारत का पहला अदालत द्वारा मध्यस्थता केंद्र स्थापित किया था और मध्यस्थता को भारत की कानूनी प्रणाली का हिस्सा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों में वाणिज्यिक, कॉर्पोरेट और अनुबंध संबंधी कई बड़े और पेचीदा मामलों में मध्यस्थता की भूमिका निभाई है.

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