इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा पत्र, हाईकोर्ट-सुप्रीमकोर्ट में जजों की नियुक्ति पर वंशवाद और जातिवाद के लगाये आरोप

दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रंगनाथ पांडेय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक शिकायती पत्र लिखा है. उन्‍होंने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के दौरान वंशवाद और जातिवाद के आरोप लगाए हैं. जस्टिस पांडे ने लिखा है कि लोकतंत्र के 3 स्‍तंभों में से सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण न्‍यायपालिका वंशवाद और जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्‍त है. न्यूज़ एजेंसी एएनआई के अनुसार उन्‍होंने लिखा कि यहां न्‍यायाधीशों के परिवार का सदस्‍य होना ही अगला न्‍यायाधीश होना सुनिश्चित करता है. जस्टिस पांडेय का कहना कि विभिन्‍न प्रतियोगी परीक्षाओं में अनेक मापदंड हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में ऐसी कोई निश्चित कसौटी नहीं है. यहां एक ही मापदंड है परिवारवाद और भाई-भतीजावाद.

जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव 2019 में पूर्ण बहुमत प्राप्‍त करने पर भी बधाई दी है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने वंशवाद की राजनीति को खत्‍म करने का महत्‍वपूर्ण काम किया है

प्रधानमंत्री से सख्त कदम उठाने की मांग
जस्टिस पांडेय ने कहा कि 34 साल के सेवाकाल में उन्हें कई बार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को देखने का अवसर मिला। उनका विधिक ज्ञान संतोषजनक नहीं है। जब सरकार द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक चयन आयोग की स्थापना का प्रयास किया गया तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया था। जस्टिस पांडेय ने पिछले 20 साल में हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विवाद और अन्य मामलों का हवाला देते हुए नरेंद्र मोदी से अपील की है कि न्यायपालिका की गरिमा को पुर्नस्थापित करने के लिए न्याय संगत कठोर निर्णय लिए जाएं।

‘कई न्यायाधीशों के पास विधिक ज्ञान तक नहीं’
जस्टिस पांडेय ने पत्र में लिखा, ”कई न्यायाधीशों के पास सामान्य विधिक ज्ञान तक नहीं है। कई अधिवक्ताओं (वकीलों) के पास न्याय प्रक्रिया की संतोषजनक जानकारी तक नहीं। कॉलेजियम के सदस्यों के पसंदीदा होने की योग्यता के आधार पर न्यायाधीश नियुक्त कर दिए जाते हैं। यह स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजो का चयन बंद कमरों में चाय की दावत पर वरिष्ठ न्यायाधीशों की पैरवी और पसंदीदा होने के आधार पर हो रहा है। इस प्रक्रिया में गोपनीयता का ध्यान रखा जाता है। प्रक्रिया को गुप्त रखने की परंपरा पारदर्शिता के सिद्धांत को झूठा करने जैसी है।”

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