AAP सांसद राघव चड्ढा की बढ़ी मुश्किलें, खाली करना पड़ेगा सरकारी बंगला!

आम आदमी पार्टी से राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा की मुश्किलें बढ़ गई हैं. अपने सरकारी बंगले को बचाने के लिए कोर्ट पहुंचे राघव चड्ढा को झटका लगा है. दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने राज्यसभा सचिवालय के लिए AAP सांसद राघव चड्ढा को सरकारी बंगला खाली कराने का रास्ता साफ कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि सरकारी आवास का आवंटन उन सांसदों को दिया गया विशेषाधिकार है जिनके पास आवंटन रद्द होने के बाद भी उस पर कब्जा जारी रखने का कोई निहित अधिकार नहीं है.

दरअसल, दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने गुरुवार को अपने पहले के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें राज्यसभा सचिवालय को आम आदमी पार्टी नेता और राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा को उनके सरकारी आवास से बेदखल करने से रोक दिया गया था.

पटियाला हाउस कोर्ट के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज सुधांशु कौशिक ने कहा कि राघव चड्ढा को बंगले पर कब्जा जारी रखने का कोई निहित अधिकार नहीं है, क्योंकि यह केवल एक सांसद के रूप में उन्हें दिया गया विशेषाधिकार था.

जानें कोर्ट ने आदेश में क्या कहा
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि वादी यह दावा नहीं कर सकता कि उसे राज्यसभा के सदस्य के रूप में अपने पूरे कार्यकाल के दौरान आवास पर कब्जा जारी रखने का पूर्ण अधिकार है. सरकारी आवास का आवंटन केवल वादी को दिया गया एक विशेषाधिकार है और उसे इस पर कब्जा जारी रखने का कोई निहित अधिकार नहीं है. आवंटन रद्द होने के बाद भी वही स्थिति है.

सितंबर 2022 में, राघव चड्ढा को दिल्ली के पंडारा रोड पर टाइप-VII आवास बंगला आवंटित किया गया था, लेकिन इस साल मार्च में राघव को बंगले का आवंटन रद्द कर दिया गया है क्योंकि टाइप-VII उनकी पात्रता से ऊपर था और उन्हें दूसरा फ्लैट आवंटित किया गया था. राजसभा सचिवालय के नोटिस के खिलाफ राघव चड्ढा ने कोर्ट का रुख कर आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी. जिसपर कोर्ट ने 18 अप्रैल को राज्यसभा सचिवालय के आवंटित आवास से बेदखल करने पर रोक लगाकर राघव चड्ढा अंतरिम राहत दी थी.

हालांकि इस आदेश की समीक्षा की मांग करते हुए, सचिवालय ने तर्क दिया कि चड्ढा को अंतरिम राहत देते समय सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 80 (2) के तहत प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था, क्योंकि मुकदमा दायर करने की अनुमति नहीं दी गई थी.

सचिवालय की ओर से दलील दी गई कि सरकार के खिलाफ तत्काल राहत की मांग करने वाला मुकदमे के लिए सरकार को 2 महीने का नोटिस देकर CPC की धारा 80(2) के तहत कोर्ट की इजाज़त से शुरू किया जा सकता है. हालांकि, सरकार या सार्वजनिक अधिकारी को पहले सुना जाना जरूरी है. CPC की धारा 80(1) किसी सरकार या सार्वजनिक अधिकारी के खिलाफ मुकदमा शुरू करने से पहले 2 महीने का नोटिस देने की पूर्व शर्त निर्धारित करती है.

अंतरिम आदेश निरस्त को किया निरस्त
राजसभा सचिवालय के वकील ने कोर्ट को बताया कि वो राघव चड्ढा के खिलाफ सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) अधिनियम, 1971 के तहत कार्यवाही पर विचार कर रहा है क्योंकि वह बंगले के अधिकृत कब्जेदार बन गए हैं.

राघव चड्ढा के वकील ने तर्क दिया कि राज्यसभा सचिवालय ‘सरकार’ या ‘सार्वजनिक अधिकारी’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है. हालांकि कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया. कोर्ट ने यह भी कहा कि राघव चड्ढा ने मुकदमा दायर करने की अनुमति के लिए CPC की धारा 80(2) के तहत एक आवेदन दायर किया था, लेकिन बाद में उन्होंने अपना बयान बदल दिया और दावा किया कि CPC की धारा 80(1) के तहत सचिवालय को कोई नोटिस देने की जरूरत नहीं थी.

राजसभा सचिवालय ‘सरकार’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता. राघव चड्ढा का यह तर्क कि एक बार संसद सदस्य को दिया गया आवास उनके पूरे कार्यकाल के दौरान किसी भी परिस्थिति में रद्द नहीं किया जा सकता है, कोर्ट ने खारिज करती है. वादी यह दावा नहीं कर सकता कि उसे राज्यसभा के सदस्य के रूप में अपने पूरे कार्यकाल के दौरान आवास पर कब्जा जारी रखने का पूर्ण अधिकार है.

कोर्ट ने माना कि जब राज्यसभा सचिवालय को मुकदमा शुरू करने के लिए आवेदन का नोटिस जारी किया गया था, तो कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना अंतरिम राहत भी एक साथ दी गई थी. यह निश्चित रूप से रिकॉर्ड पर स्पष्ट त्रुटि है और इसे ठीक करने की जरूरत है.

इसलिए ये कोर्ट अपने 18 अप्रैल 2023 का आदेश वापस लेते हुए अंतरिम आदेश निरस्त को निरस्त करती है. कोर्ट ने यह भी कहा कि राघव चड्ढा इस मामले में किसी भी तत्काल राहत की जरूरत को साबित करने में विफल रहे, जिसके लिए CPC की धारा 80(2) के तहत छुट्टी दी जा सकती थी.

दूसरी ओर राघव चड्डा ने जारी बयान में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने शुरू में मेरी याचिका स्वीकार कर ली थी और मुझे अंतरिम राहत दी थी. इसने अब मेरे मामले को कानूनी तकनीकीता पर लौटा दिया है, जिसके बारे में मुझे कानूनी रूप से सलाह दी गई है कि यह कानून की गलत समझ पर आधारित है. मैं उचित समय पर कानून के तहत उचित कार्रवाई करूंगा. यह बताने की जरूरत नहीं है कि मैं पंजाब और भारत के लोगों की आवाज निडरता से उठाना जारी रखूंगा, चाहे इसमें कोई भी कीमत चुकानी पड़े.

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