दिल्ली: जम्मू कश्मीर में एक बार फिर से भारी तादात में सुरक्षाबलों की तैनाती की जा रही है। चार दिन पहले पैरीमिलिट्री फोर्सेस की 100 कंपनियों को तैनात किया गया था। अब नए आदेश के मुताबिक 250 कंपनियों को और तैनात किया जाएगा। माना जा रहा है कि सरकार जम्मू कश्मीर में बड़ा कदम उठाने वाली है। यहां चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाबलों की तैनाती की जा रही है। पूरी घाटी को छावनी में तब्दील किया जा रहा है। हर उस जगह पर जवान तैनात किए जा रहे हैं जहां गड़बड़ी की आशंका है। इस बार जारी नए आदेश के मुताबिक जम्मू कश्मीर में अर्धसैनिक बलों की 250 और कंपनियां भेजी जाएंगी।
इसका मतलब ये हुआ कि 25 हज़ार जवानों को और तैनात किया जाएगा। 7 अगस्त से पहले 250 कंपनियां जम्मू कश्मीर भेजी जानी हैं। 100 कंपनिया चार दिन पहले ही भेजी गई हैं। खबरों के मुताबिक इस तरह अचानक 250 कंपनियों को देर शाम तैनात किये जाने का कोई कारण नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि शहर में प्रवेश और बाहर निकलने के सभी रास्तों को केन्द्रीय सशस्त्र अर्धसैनिक बलों को सौंप दिया गया है। स्थानीय पुलिस की महज प्रतीकात्मक उपस्थिति है।
इतनी बड़ी तैनाती के पीछे मोदी सरकार का बड़ा प्लान काम कर रहा है। एक योजना बनाकर जम्मू कश्मीर में इतनी भारी तादात में सुरक्षाबलों की तैनाती की जा रही है। खबरों के मुताबिक जम्मू कश्मीर में जल्द ही परिसीमन किया जा सकता है। बताया जा रहा है कि यहां होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले परिसीमन किया जाना है। जम्मू, कश्मीर और लद्दाख डिविज़न में परिसीमन किया जाना है। अंदेशा है कि परिसीमन को लेकर स्थानीय स्तर पर विरोध के सुर उठ सकते हैं।
सुरक्षाबलों की तैनाती से जम्मू कश्मीर की सियासी पार्टियां भड़की हुई हैं। परिसीमन को लेकर महबूबा मुफ्ती से लेकर उमर अब्दुल्ला तक दोनों भड़के हुए हैं। दरअसल नए परिसीमन के बाद महबूबा मुफ्ती और उमर अबदुल्ला की राजनीति पर संकट खड़ा हो सकता है। फिलहाल कश्मीर में विधनसभा की 46 सीटें आती हैं, जबकि जम्मू में 37 और लद्दाख में केवल 4 सीटें आती हैं। परिसीमन के बाद स्थितियां बदल जाएंगी क्योंकि नए नक्शे में जनसंख्या के हिसाब से नए विधानसभा क्षेत्र बनेंगे।
इस वक्त कश्मीर डिविज़न का एरिया 15.8 फीसदी है जबकि आबादी 54.9 फीसदी है, जिसमें 96 फीदसी मुस्लिम हैं, जम्मू डिविज़न का एरिया 25.9 फीसदी है और आबादी 42.9 फीसदी है जिसमें 62 फीदसी डोगरा हैं, वहीं लद्दाख डिविज़न का एरिया 58.2 फीसदी है जबकि आबादी केवल 2.2 फीसदी है, जिसमें 46 फीसदी मुस्लिम हैं। जम्मू कश्मीर में उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की पार्टियां नहीं चाहतीं कि परिसीमन किया जाय क्योंकि जम्मू कश्मीर में पिछला परिसीमन 1992-95 में हुआ था। 2002 में फारुख अब्दुल्ला सरकार ने परिसीमन को 2026 तक रोकने के लिए बिल पास करवा दिया लेकिन राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल के पास ताकत होती है कि वो परिसीमन करवा सकें क्योंकि 1992-95 के बीच परिसीमन राष्ट्रपति शासन के दौरान ही हुआ था।
इतनी भारी तादात में सुरक्षाबलों की तैनाती इसी परिसीमन को देखते हुए की जा रही है। महबूबा मुफ्ती परिसीमन का विरोध करते हुए कह चुकी हैं कि जम्मू कश्मीर में विधानसभाओं के परिसीमन के भारत सरकार की योजना के बारे में सुनकर व्यथित हूं। जबरन परिसीमन राज्य में सांप्रदायिक आधार पर एक भावनात्मक विभाजन की कोशिश है। पुराने ज़ख्मों को भरने की बजाय भारत सरकार कश्मीरियों को और दर्द दे रही है। मोदी सरकार के इस प्लान के आगे न तो महबूबा कुछ कर पा रही हैं और न ही उमर अब्दुल्ला। आम कश्मीरी को भी इस परसीमन से फर्क नहीं पड़ता लेकिन जिनकी सियासत इस पर अटकी है उनकी तड़प उनके बयानों से झलक रही है