हरियाणा के चुनावी रण में बसपा का हाथी अब तक अपनी मदमस्त चाल ही चला है। उसने कई दलों को साथी जरूर बनाया, लेकिन गठबंधन लंबा नहीं चल पाया। अब एक बार फिर विधानसभा चुनाव की बिसात बिछ चुकी है और हाथी का कोई साथी नहीं है। बसपा अकेले ही चुनाव में उतरने जा रही है। पार्टी सुप्रीमो मायावती को किसी का साथ ज्यादा भाता भी नहीं है।
बसपा ने 1991 के विधानसभा चुनाव में पहली बार अपने प्रत्याशी उतारे थे। उसके बाद से अब तक पार्टी लगातार चुनाव लड़ती है। 1996 के चुनाव में ही ऐसा मौका आया जब बसपा का कोई विधायक नहीं जीता, अन्यथा हर चुनाव में बसपा का एक विधायक बनता आ रहा है। प्रदेश में पार्टी का अच्छा खासा कैडर है, बावजूद इसके मायावती कुछ ज्यादा करिश्मा नहीं दिखा सकीं।
पार्टी एक ही विधायक तक सीमित है। उससे आगे नहीं बढ़ पाई। 2014 विधानसभा चुनाव में पृथला से टेकचंद शर्मा बसपा विधायक बने थे। वह ज्यादा दिन तक सत्ता के मोह से दूर नहीं रह सके और सरकार के साथ उनकी नजदीकियां बढ़ गईं। नतीजा यह हुआ कि बसपा ने पार्टी से निष्कासित कर दिया।
प्रदेश में बसपा का वोट प्रतिशत 2014 के विधानसभा चुनाव में 4.4 प्रतिशत रहा था। 2009 में 6.74 प्रतिशत और 1996 व 2000 में क्रमश : 5.44, 5.74 प्रतिशत वोट पार्टी को मिले थे। बसपा का हर विधानसभा क्षेत्र में वोट बैंक है और पार्टी उम्मीदवार किसी भी बड़े दल के प्रत्याशी का चुनावी गणित बिगाड़ देते हैं। इस बार भी बसपा सभी विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने जा रही है। बसपा उम्मीदवार कड़े मुकाबले वाली सीटों पर जीत-हार में अहम भूमिका निभाएंगे। उन्हें मिलने वाले वोट भाजपा, कांग्रेस उम्मीदवारों में से किसी को भी विधानसभा पहुंचने से रोक सकते हैं।
अब तक बसपा के प्रदेश में रहे गठबंधन
हरियाणा में बसपा ने 1998 में इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन किया। बाद में तोड़ा।
2009 में कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। बाद में राहें जुदा।
मई 2018 में फिर इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन, एक साल से पहले ही टूटा। जींद उपचुनाव में करारी हार के बाद बसपा को इनेलो का अस्तित्व खतरे में नजर आने लगा।
इनेलो के साथ गठबंधन तोड़कर फरवरी 2019 में राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी का साथ पकड़ा। चंद महीने बाद गठबंधन खत्म।
लोसुपा के बाद बसपा ने 11 अगस्त 2019 को जजपा के साथ गठबंधन किया। छह सितंबर 2019 को जजपा से भी तोड़ा नाता।
जजपा के साथ भी जम नहीं पाई जोड़ी
विधानसभा चुनाव एक लड़ने के लिए बसपा ने बीते 11 अगस्त को दिल्ली में जजपा के साथ गठबंधन किया। जजपा नेता दुष्यंत चौटाला व बसपा नेता सतीश मिश्र ने 50-40 के फार्मूले पर सहमति जताई। महीने के भीतर ही रिश्ते टूट गए और मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की। अब सबकी निगाहें विधानसभा में बसपा के प्रदर्शन पर टिकी हुई हैं। एकला चलो की रणनीति के तहत बसपा क्या करिश्मा करेगी, यह भविष्य के गर्भ में है।