दिल्ली: CBI बनाम CBI विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को झटका दिया है. कोर्ट ने आलोक वर्मा को उनके अधिकारों से वंचित कर अवकाश पर भेजने के केन्द्र के फैसले को गलत बताकर वर्मा को बहाल कर दिया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि आलोक वर्मा कोई भी नीतिगत फैसला नहीं ले सकते है, इसके अलावा जांच का जिम्मा भी नहीं संभाल सकते. छह दिसंबर को सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने आलोक वर्मा और कॉमन कॉज की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा लिया था. सीजेआई रंजन गोगोई आज छुट्टी पर हैं, ऐसे में जस्टिस संजय किशन ने फैसला पढ़कर सुनाया है.
पीठ ने पूछा कि जब जुलाई में ही पता चल गया था तो सरकार को चयन समिति के पास जाने में क्या दिक्कत थी? ये ऐसा मामला नहीं है कि रातोंरात ऐसे हालात बन गए. चीफ जस्टिस ने कहा कि सरकार के कार्य संस्थान के हित में होने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई ऐसा कानून नहीं है कि सरकार बिना सेलेक्ट कमेटी के परमिशन के किसी सीबीआई डायरेक्टर को पद से हटाए. कोर्ट ने कहा कि नियुक्ति, पद से हटाने और ट्रांसफर को लेकर साफ नियम हैं. ऐसे में कार्यकाल खत्म होने से पहले आलोक वर्मा को पद से नहीं हटाना चाहिए था. यानी अब आलोक वर्मा अपने तय कार्यकाल यानी 31 जनवरी तक सीबीआई निदेशक के पद पर बने रहेंगे.
क्या था मामला: जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा और ब्यूरो के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच छिड़ी जंग सार्वजनिक होने के बाद सरकार ने पिछले साल 23 अक्टूबर को दोनों अधिकारियों को उनके अधिकारों से वंचित कर अवकाश पर भेजने का निर्णय किया था. दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे