देश की राजधानी दिल्ली प्रदूषण की वजह से एक बार फिर से हांफने लगी है. शनिवार को प्रदूषण बहुत खतरनाक स्तर में पहुंच गया. हवा की गुणवत्ता बेहद खराब श्रेणी की दर्ज की गई. दिल्ली से सटे नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भी एक जैसी स्थिति देखने को मिली है. शनिवार शाम को दिल्ली के कई इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 400 के खतरनाक स्तर को भी पार कर गया है.
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के बाद अब यह सवाल उठने लगा है कि आखिरी देश की राजधानी अक्टूबर-नवंबर में ही क्यों गैस चैंबर में तब्दील हो जाती है? क्या वजह है कि प्रदूषण को रोकने के लिए किए गए तमाम प्रयास धरे के धरे रह जाते हैं? क्या इसके लिए क्या कोई उपाय है जिससे हांफने वाली दिल्ली को निजात मिल सके? आज हम इन सभी सवालों के जवाब जानने का प्रयास करेंगे.
वायु प्रदूषण के स्तर का नीचे चले जाना
दिल्ली को गैस चैंबर बनाने में सबसे बड़ी भूमिका वायु प्रदूषण निभाता है. जिसकी वजह से यहां की हवा प्रदूषित हो जाती है. वायु प्रदूषण को बढ़ाने में वाहन से होने वाले कार्बन उत्सर्जन मदद करते हैं. दिल्ली में वाहनों की संख्या इतनी ज्यादा हो गई है कि उसका असर सीधे वायु प्रदूषण पर पड़ रहा है.
पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना
दिल्ली में अक्टूबर-नवंबर में प्रदूषण के खतरनाक स्तर में पराली जलाने की घटनाओं की भी अहम भूमिका मानी जाती है. खासकर पंजाब और हरियाणा में जब धान की फसल तैयार होती है तो उसकी कटाई के बाद पराली को खेत में ही जला दिया जाता है. पराली जलने के बाद उससे निकलने वाला धुंआ दिल्ली को अपनी चपेट में ले लेता है.
निर्माण कार्य से उठने वाली धूल
राजधानी में प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में निर्माण कार्य से उठने वाले वाली धूल भी बड़ी भूमिका निभाती है. राजधानी ऐसा क्षेत्र हैं जहां हर वक्त कोई न कोई निर्माण कार्य चलता ही रहता है. ऐसे में उससे निकलने वाली धूल हवा में मिल जाती है जिसकी वजह से वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. हालांकि, समय-समय पर निर्माण कार्यों पर रोक भी लगाई जाती रही है.
राजधानी की भौगोलिक स्थिति भी कुछ अलग
दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के लिए राजधानी की भौगोलिक स्थिति को भी जिम्मेदार बताया जाता है. दिल्ली थार मरुस्थल के उत्तर-पूर्व में स्थित है जबकि उत्तर-पश्चिम में मैदान है और दक्षिण में हिमालय है. ऐसे में अगर समुद्र से चलने वाली हवाएं आगे बढ़ती है तो वो हिमालय के पास अटक जाती है. हवा के अटकने की वजह से दिल्ली के ऊपर प्रदूषित हवा जमा हो जाती है जो धुंध का रूप ले लेती है.
हवा की रफ्तार हो जाती है धीमी
आमतौर पर ठंड के समय में दिल्ली में हवा की रफ्तार भी काफी धीमी हो जाती है. ऐसे में धूल में पहले से इकट्ठा कण एक ही जगह स्थिर हो जाते हैं. अगर हवा की रफ्तार तेज होती तो धूल के कण आगे बढ़ जाते, लेकिन ऐसा होता नहीं है. यही वजह है कि दिल्ली अक्सर अक्टूबर और नवंबर में ही गैस चैंबर का रूप ले लेती है.
इन तरीकों से मिल सकती है निजात
दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते स्तर से निजात पाने के लिए मात्र दो ही तरीके नजर आते हैं. इसमें पहला तो यह है कि बारिश हो जाए और हवा में मौजूद धूल के कण पानी के साथ जमीन पर बैठ जाएं. दूसरा उपाय यह है कि हवा की रफ्तार तेज हो जाए जिसकी वजह से धूल आगे बढ़ जाए और एक जगह स्थिर न रह पाए. इसके अलावा राजधानी में वाहनों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम से कम किया जाए.