सुप्रीम कोर्ट ने एक 82 साल की महिला की अर्जी पर विचार करते हुए उनके पति की ओर से दाखिल तलाक याचिका खारिज कर दी है. महिला के पति एयर फोर्स के रिटायर्ड अफसर हैं और इस समय 89 साल के हैं. उनके द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका का विरोध करते हुए 82 वर्षीय महिला ने कहा कि वह तलाकशुदा नहीं मरना चाहती. कोर्ट ने भी उनकी भावनाओं का सम्मान किया और 23 साल तक तलाक के लिए चली मुकदमे की कार्रवाई को रद्द कर दिया.
पति की ओर से दाखिल तलाक अर्जी का विरोध करते हुए महिला ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि साल 1963 में वह वैवाहिक बंधन में बंधे थे. इस बात के 60 साल हो चुके हैं. शुरुआत में उनका वैवाहिक जीवन नार्मल रहा, लेकिन 1984 में उनके पति का ट्रांसफर मद्रास हो गया. इसके बाद उनके रिश्ते में कड़वाहट आती चली गई. उसके बाद से ही दोनों अलग अलग रह रहे थे. उसी समय से वह अपने बेटे के साथ मायके में रह रही है.
महिला ने बताया कि वह शिक्षक रही हैं और दांपत्य जीवन का महत्व समझती हैं. इसलिए पति पत्नी के बीच रिश्ता सुधारने के लिए कई प्रयास भी हुए, लेकिन परिणाम हमेशा निगेटिव रहा. आखिर में 1996 में उसके पति ने लोवर कोर्ट में पत्नी पर उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए तलाक की अर्जी लगा दी. हालांकि वह कोर्ट में उत्पीड़न की बात को प्रमाणित नहीं कर पाए. ऐसे में मामला खारिज हो गया और फिर हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट आया. जहां महिला की दलील को सुनने के बाद कोर्ट ने उनकी भावनाओं का सम्मान किया है.
सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ में हुई. इस मुकदमे में सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या विवाह के अपूरणीय विघटन के परिणामस्वरूप संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत तलाक का फैसला दिया जा सकता है? हालांकि हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 में इसे तलाक का आधार माना ही नहीं गया है. ऐसे में कोर्ट ने पूरे मामले को सुनने और महिला की भावनाओं को मान देते हुए कहा कि इस मामले में तलाक का फैसला नहीं हो सकता